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Updated: 29 मई, 2018 06:36 PM
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पेट्रोल और डीजल पर इतने दिनों से चल रही बहस में एक और मुद्दा जुड़ गया है. अब सीएनजी के दाम भी बढ़ रहे हैं. आज ही की खबर है कि सीएनजी भी 1.36 रुपए महंगी हो गई है. कुल मिलाकर ईंधन महंगा हो रहा है और लोग पेट्रोल और डीजल को लेकर रो रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच एक छुपा हुआ दानव है जो हमारे बजट बिगाड़ने के लिए बैठा है.

दरअसल, पेट्रोल और डीजल की महंगाई का सीधा नहीं बल्की उल्टा असर हमारी जिंदगी पर पड़ता है. ईंधन महंगा होते ही ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो जाता है और इसके कारण किराने का सामान, खाना, फल, सब्जियां सब कुछ महंगा होने लगता है. अब एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर पेट्रोल और डीजल की कीमतें इसी तरह बढ़ती रहीं तो मामला गंभीर हो सकता है.

पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम से कम 4-5% असर डालेंगी खाद्य सामग्री और किराने के सामान पर. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मैरिको (सफोला कुकिंग और पैराशूट हेयर ऑयल बनाने वाली कंपनी) के एमडी सौगात गुप्ता का कहना है कि अगर डीजल और पेट्रोल इसी तरह से बढ़ता रहा तो यकीनन घरेलू उत्पादों के सेक्टर में कीमतें 4-5% बढ़ सकती हैं.

पेट्रोल, नरेंद्र मोदी, डीजल, सरकार, चुनाव 2019, वर्ल्ड बैंक, एसबीआई, महंगाई

अच्छे मॉनसून के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में भी मांग बढ़ेगी. अगर मांग बढ़ेगी तो कंपनियों को इसी हिसाब से अपना काम करना होगा और पेट्रोल और डीजल की महंगी कीमतों के आधार पर ही प्रोडक्शन और ट्रांसपोर्टेशन देखना होगा. ऐसे में कीमतों का बढ़ना तय हो सकता है.

जीएसटी के बाद नवंबर में ही 178 आइटम्स पर टैक्स 28% से कम होकर 18% रह गया जिससे महंगाई में थोड़ी राहत की गई, लेकिन पिछले साल से ही कच्चे तेल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. वो 80 डॉलर प्रति बैरल का आंकड़ा क्रॉस करके आया है और अभी भी 75 डॉलर पर चल रहा है. मार्च में क्रूड ऑयल की इम्पोर्ट ड्यूटी 30% से बढ़ाकर 44% कर दी गई. इस सबका असर अब धीरे-धीरे किराना बाज़ार में पड़ सकता है.

रिफाइन्स palm oil (ताड़ का तेल) जो कई खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होता है उसकी ड्यूटी भी 40% से बढ़कर 54% तक हो गया है. आम लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पाद न सिर्फ प्रोडक्शन पर बल्कि ट्रांसपोर्टेशन, पैकेजिंग पर भी असर डालते हैं. ऐसे में यकीनन महंगाई बढ़ने की गुंजाइश ज्यादा है.

पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों पर लगाया जा सकता है अंकुश..

SBI की एक रिपोर्ट ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों को कम करने के कुछ तरीके बताए हैं. एसबीआई की रिपोर्ट कहती है कि राज्य पेट्रोल की कीमतें 2.65 रुपए और डीजल की कीमतें 2 रुपए तक कम कर सकते हैं. इससे रेवेन्यू पर उतना असर नहीं पड़ेगा और घाटे के हालात भी नहीं पैदा होंगे. ये रिपोर्ट सोमवार 28 मई को आई है जब लगातार 15 दिन सरकारी तेल कंपनियों ने दाम बढ़ा दिए हैं.

मुंबई में पेट्रोल 86 रुपए प्रति लीटर का आंकड़ा पार कर गया है और अभी अच्छी खबर बस यही कही जा सकती है कि कच्चे तेल के दाम अब गिर गए हैं.

क्यों ये है खराब पॉलिटिक्स और इकोनॉमिक्स...

पेट्रोल और डीजल के बढ़े हुए दामों से भारतीय अर्थव्यवस्था को सपोर्ट करने का आशवासन देना उस समय सही लग रहा था जब कच्चे तेल के दाम बाज़ारों में कम थे और जब पेट्रोल और डीजल के दाम आम आदमी की कमर तोड़ने के लिए काफी नहीं थे.

अब नोटबंदी और जीएसटी की मार झेल चुका आम आदमी कच्चे तेल के बढ़ते हुए दाम अपने सिर क्यों ले. अगर आर्थिक व्यवस्था को देखें तो ये यकीनन सरकार को रेवेन्यू लाने में मदद करेगा. इस वित्तीय वर्ष का रेवेन्यू 2.579 लाख करोड़ होने की उम्मीद की गई है, लेकिन 2013/14 में यही पेट्रोल और डीजल वाला रेवेन्यू 88600 करोड़ रुपए था.

ये कलेक्शन कुछ हद तक जीएसटी के दौर में अर्थव्यवस्था को काबू रखने में मदद कर रहा था, लेकिन आखिर कब तक रेवेन्यू के चक्कर में सरकार दाम बढ़ाएगी? आखिर कितने और टैक्स भरेंगे लोग?

अगर देखा जाए तो इसका सीधा फायदा सरकार को दिखता है कि सरकारी खजाने में पैसा आ रहा है, लेकिन इससे महंगाई बढ़ने की गुंजाइश भी अब बन गई है. जैसा कि पहले भी कहा गया है कि इससे 4-5% महंगाई बढ़ सकती है तो क्या ये सही है? आरबीआई पहले ही इंट्रेस्ट रेट घटाने को मना कर रहा है और साथ ही साथ महंगाई बढ़ने की गुंजाइश भी जता रहा है.

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एक्सपर्ट्स का भी ये मानना है कि टैक्स के तौर पर ये पैसा देना फिर भी ठीक है, लेकिन रेवेन्यू बढ़ाने के लिए महंगाई बढ़ाना बहुत खराब साबित हो सकता है. महंगाई ज्यादा बढ़ती है तो सरकार को भी किसी भी प्रोजेक्ट को पूरा करने पर घाटा ही होगा. ये सिर्फ पब्लिक के लिए ही नहीं बल्कि सरकार के लिए भी बुरी बात है.

अगर इसका राजनैतिक पहलू देखें तो 11 महीने में लोकसभा इलेक्शन हैं और इस समय भाजपा के लिए इतना बड़ा रिस्क लेना सही नहीं है. किसी भी पार्टी के लिए इस समय पेट्रोल प्याज की तरह ही इलेक्शन गिराने वाला साबित हो सकता है.

अगर ये माना जा रहा है कि भाजपा का वोट बैंक अब मिडिल क्लास से शिफ्ट होकर दलित और गरीब वर्ग हो गया है और उन्हें पेट्रोल की कीमतों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता तो ये गलत होगा. महंगाई उन्हें ज्यादा परेशान कर सकती है और अब बाज़ी मोदी जी के हाथ में ही है.

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