पीएफ पर टैक्स से उपजा एक सवाल, एक जवाब
यह पैसा तो सोशल सिक्योेरिटी के लिए है. ताकि कर्मचारी को बुढ़ापे में नियमित आय होती रहे और उसे किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े.
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पीएफ का पैसा निकालने पर टैक्स. इस बजट प्रस्ताव पर मचे हंगामे में शशि थरूर की आपत्ति गौर करने लायक थी. उन्होंने सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कि पीएफ पर टैक्स लगाने से पहले वित्त मंत्री को यह सोचना चाहिए कि यह पैसा निकाला क्यों जाता है. इसके तीन प्रमुख कारण हैं- बीमारी का इलाज कराने के लिए, बच्चों की शादी के लिए या मकान खरीदने के लिए. थरूर की ये आपत्ति अक्षरश: सही है. लेकिन इस आपत्ति का विश्लेएषण भी जरूरी है.
नाकाफी हेल्थ सिक्योररिटी- आखिर ऐसी सूरत ही क्यों आती है कि जिस पैसे को एक कर्मचारी अपने बुढ़ाने की आर्थिक सुरक्षा के लिए जमा करता है, उसे इलाज के खर्च के लिए निकाल लेता है. यानी स्वास्थ बीमा जैसे टूल नाकाफी साबित हो रहे हैं. इसी तरह यदि मकान खरीदने के लिए किसी कर्मचारी को बुढ़ापे में पीएफ का पैसा उपयोग करना पड़ रहा है तो एक नागरिक की इस बुनियादी जरूरत को पूरा करने में सरकार की ही नाकामी है. सरकार को पीएफ पर टैक्स लगाने से पहले इसका प्रबंध करना चाहिए था.
यदि उम्मींद करें कि सरकार इन उपायों पर काम करेगी तो उसका पीएफ का पैसा निकालने पर टैक्स लगाना एकदम जायज है. क्योंकि, यह पैसा तो सोशल सिक्योेरिटी के लिए है. ताकि कर्मचारी को बुढ़ापे में नियमित आय होती रहे और उसे किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े.
पीएफ पर लगने वाला टैक्स यदि यह संदेश दे रहा है कि इस पैसे को सबसे अंत में ही हाथ लगाएं तो यह बजट प्रस्ताव अपने उद्देश्यस में कामयाब है.
पीएफ के 40 फीसदी हिस्सेद को इस टैक्स के दायरे से बाहर रखते हुए सरकार ने उस मानवीय पहलू को ध्यान में रखा है, कि वाकई किसी कर्मचारी को इमरजेंसी में इस पैसे की जरूरत पड़ सकती है. लेकिन 60 फीसदी हिस्सा हर कीमत पर उसके बुढ़ापे के लिए पीएफ अकाउंट में होना ही चाहिए. इस पैसे को सुरक्षित रखने के लिए सरकार यदि टैक्स की दर और बढ़ा दे तो भी जायज है.
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