साइरस मिस्त्री के हटाए जाने का टाटा ग्रुप पर असर
टाटा ग्रुप ने कल अपने चेयरमैन 48 साल के साइरस मिस्त्री को हटाकर 78 साल के रतन टाटा को वापस से इन्ट्रीम चेयरमैन बना दिया है. धीरे-धीरे तैयार किया गया ये बम आखिर ब्लास्ट हो ही गया. बोर्ड ने आखिर ये फैसला लिया क्यों?
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आने वाली दिवाली कुछ बड़ी होती नजर आ रही है. अब देखिए दिवाली आने से पहले ही ब्लॉस्ट पर ब्लॉस्ट हो रहे हैं. एक तरह राजनीती में यूपी में सुतली बम फोड़े जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर व्यवसायिक बाजार में टाटा ग्रुप ने तो पूरा का पूरा टाइम बम ही फोड़ दिया. टाटा ग्रुप ने कल अपने चेयरमैन 48 साल के साइरस मिस्त्री को हटाकर 78 साल के रतन टाटा को वापस से चेयरमैन बना दिया है. अब अगर देखा जाए तो इसे टाइम बम ही कहेंगे. धीरे-धीरे तैयार किया गया ये बम आखिर ब्लास्ट हो ही गया.
ऐसा नहीं है कि कोई फैसला हाल में ही लिया गया और 8 लाख करोड़ मार्केट कैप वाली कंपनी के चेयरमैन को यूं ही हटा दिया गया. बहरहाल इसका नतीजा हाल फिलहाल में कंपनी के लिए दिवाली से तुरंत पहले कुछ अच्छा साबित नहीं हुआ. आज मार्केट खुलने पर टाटा ग्रुप की लिस्टेड 13 कंपनियों के शेयर में 4 प्रतिशत तक की गिरावट हुई और इसी के साथ मार्केट कैप में भी 7 हजार करोड़ की गिरावट दर्ज हुई. अब अगर बोर्ड का फैसला सही है तो ये छोटी सी कीमत है जो लंबे अंतराल में कंपनी के लिए फायदेमंद साबित होगी.
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'रतन' नाम धन पायो..
अगर सभी के मन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर रतन टाटा की वापसी क्यों हुई तो इसके लिए पिछले आंकड़ों पर नजर डालनी पड़ेगी. जब रतन टाटा 1991 में चेयरमैन बने थे तब मार्केट कैप 8000 करोड़ रुपए था और उनके कार्यकाल के अंत तक ये 4.62 लाख करोड़ हो गया. इसके एवज में मिस्त्री ने चार साल में बिजनेस को 4.62 लाख से 8 लाख करोड़ तक कर दिया. अब सवाल ये उठता है कि क्या कंपनी का प्लान इतना अच्छा नहीं था कि वो अपने चेयरमैन पर भरोसा कर पाए और आगे क्या प्लान होगा? रतन टाटा की लीडरशिप में कंपनी किस तरह और किस लेवल तक जा पाएगी? कंपनी ने पहले 3 साल की मेहनत के बाद नया चेयरमैन चुना था अब अगर जल्दी फैसला नहीं लिया गया तो आखिर कब तक रतन टाटा के भरोसे कंपनी चलेगी? क्या फिर रीस्ट्रक्चर होगी कंपनी?
रतन टाटा और साइरस मिस्त्री: फाइल फोटो |
आखिर क्यों किया गया मिस्त्री का निकाला?
इसके पीछे कई कारण हैं. सबसे पहले तो मिस्त्री की परफॉर्मेंस से ग्रुप खुश नहीं था. ग्रुप में 17 कंपनियां लिस्टेड हैं और इनमें से सिर्फ 10 ही प्रॉफिट दे रही हैं. 4 ने तो निगेटिव रिटर्न दिए और 3 कंपनियां एवरेज रहीं. अब जिन कंपनियों में प्रॉफिट हो रहा था उन्हीं पर मिस्त्री का ज्यादा ध्यान था. टीसीएस जो पहले से ही फायदे में थी वो चेयरमैन के रेडार पर थी, लेकिन टाटा स्टील को यूरोपियन मार्केट में काफी घाटा हुआ.
दूसरा कारण डोकोमो साबित हुई. कंपनी के खिलाफ पिछले साल में अमेरिकी कोर्ट में कई केस चले और डोकोमो के विवाद में तो बात हर्जाने की भी है. तीसरा कारण बना टाटा मोटर्स. कंपनी को देखें तो मिस्त्री ने उसे लेकर कई वादे किए थे और पिछली दो कारें टिएगो और बोल्ट लॉन्च हुईं जो एवरेज रहीं.
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दो महीने पहले ही मिस्त्री ने टाटा पावर के 1.4 बिलियन डॉलर के एक्युजिशन वेल्सपून सोलर फार्म को बिना किसी शेयरहोल्डर से सलाह लिए क्लियर कर दिया. अब ये थोड़ा बड़ा मामला बन गया. पिछले कुछ समय में सायरस के स्टेटमेंट्स से ये कई बार लगा कि उन्हें कुछ धंधों पर ही ध्यान है और बाकी को बंद करने की बात की जा रही है. कंपनी को स्लिम डाउन करने की जरूरत है ऐसे स्टेटमेंट कई बार साइरस की तरफ से आए. शायद सायरस की यही कुछ चीजें टाटा बोर्ड को सही नहीं लगी हों, लेकिन क्या ग्रुप ने पहले पूरी रिसर्च के बिना सायरस को लिया था. क्या कंपनी के चेयरमैन को फ्यूचर प्लानिंग के बारे में नहीं बताया गया था?
क्या मिस्त्री के बिना ही चलेगा बॉम्बे हाउस?
साइरस मिस्त्री को फिलहाल सिर्फ चेयरमैन पद से हटाया गया है. इसका मतलब मिस्त्री टाटा ग्रुप के साथ रहेंगे और टाटा ग्रुप के हेडक्वार्टर बॉम्बे हाउस में भी आएंगे. खास बात ये है कि मिस्त्री को टाटा सन्स की बोर्ड मीट के दौरान ये फैसला सुनाया गया. मीटिंग में बोर्ड के 8 में से 6 मेंबर्स ने चेयरमैन को हटाने का फैसला लिया था और दो ने इसमें हिस्सा नहीं लिया. ये मामला इतनी जल्दी थमता नहीं दिख रहा क्योंकि शापूरजी एंड पालोनजी ग्रुप ने एक स्टेटमेंट में कहा कि मिस्त्री को हटाने का फैसला सबकी सहमति से नहीं लिया गया और वो इसके खिलाफ हाईकोर्ट में भी जा सकते हैं. आपको बता दूं की साइरस मिस्त्री शापूरजी ग्रुप के शहजादे हैं और ये ग्रुप टाटा ग्रुप के सबसे बड़े शेयरहोल्डर्स में से एक है.
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