खाद्य तेलों की कीमतों में क्यों हो रही है बढ़ोत्तरी? जानिए पूरी गणित...
देश में अप्रैल के महीने में थोक महंगाई दर (WPI) ने 'ऑल टाइम हाई' का रिकॉर्ड बना दिया है. फरवरी 2021 में थोक महंगाई दर 4.17 फीसदी थी, जो अप्रैल में 10.49 फीसदी पर आ गई. पिछले एक साल में खाद्य तेलों (edible oil) के दामों में 50 फीसदी से ज्यादा की बेतहाशा तेजी देखने को मिली है. लगातार बढ़ रही महंगाई (inflation) का असर केवल पेट्रोल-डीजल तक ही सीमित नहीं है.
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कोविड-19 महामारी का असर केवल लोगों के स्वास्थ्य ही नहीं उनकी जेबों पर भी पड़ने लगा है. पेट्रोल-डीजल के दाम एक बार फिर से 'सौ पार' जा चुके हैं. राजस्थान के एक शहर में तो डीजल ने भी शतक लगा दिया है. देश में अप्रैल के महीने में थोक महंगाई दर (WPI) ने 'ऑल टाइम हाई' का रिकॉर्ड बना दिया है. फरवरी 2021 में थोक महंगाई दर 4.17 फीसदी थी, जो अप्रैल में 10.49 फीसदी पर आ गई. पिछले एक साल में खाद्य तेलों (edible oil) के दामों में 50 फीसदी से ज्यादा की बेतहाशा तेजी देखने को मिली है. लगातार बढ़ रही महंगाई (inflation) का असर केवल पेट्रोल-डीजल तक ही सीमित नहीं है. घर की रसोई से जुड़ा सामान भी अब इसकी जद में आने लगा है. किराने के सामान के साथ ही खाद्य तेलों पर भी महंगाई का प्रभाव दिखने लगा है. आइए जानते है कि आखिर वे क्या वजहें हैं, जिनकी वजह से खाद्य तेलों के दामों में इतनी तेजी दर्ज की जा रही है.
भारत में हर साल करीब 25 मिलियन टन खाद्य तेलों की खपत का अनुमान है.
भारत में कितनी है खाद्य तेलों की खपत?
भारत में हर साल करीब 25 मिलियन टन खाद्य तेलों की खपत का अनुमान है. इसमें से भारत में करीब 8 मिलियन टन तक का ही उत्पादन हो पाता है. बाकी बचा पूरा हिस्सा अन्य देशों से आयात किया जाता है. भारत में खाद्य तेलों की कुल खपत का करीब दो-तिहाई हिस्सा आयात किया जाता है. बीते सालों में भारत में बढ़ती आबादी और खान-पान की आदतों में बदलाव के लिहाज से खाद्य तेलों की मांग लगातार बढ़ी है. अगर ये कहा जाए कि खाद्य तेलों का आयात ही इनके दामों में तेजी का प्रमुख कारण है, तो गलत नहीं होगा. दरअसल, कोरोना महामारी की वजह से पूरी दुनिया प्रभावित हुई है और लगभग हर देश में महंगाई का यही हाल है. बीते कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें लगातार बढ़ी हैं.
कोरोना और खराब मौसम की मार
भारत में खाद्य तेल में करीब 40 फीसदी हिस्से के साथ सबसे ज्यादा खपत पाम ऑयल की होती है. भारत में मलेशिया और इंडोनेशिया से पाम ऑयल का आयात किया जाता है. बीते साल भारत ने मलेशिया से पाम ऑयल के आयात पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद इंडोनेशिया और अन्य देशों से इसे आयात किया जा रहा है. इन देशों के ऑयल प्लांट में ज्यादातर लेबर बाहर के देशों की होती है. कोरोना महामारी की वजह से इन देशों में लेबर की कमी हो गई है. वहीं, भारत सरकार ने बीते साल सितंबर में सरसों के तेल में किसी अन्य तेल की मिलावट पर रोक लगा दी थी. जिसकी वजह से सरसों के तेल के दामों में तेजी आई है और पाम ऑयल की मांग में भी कमी आई है. भारत में करीब 2.5 मिलियन टन सूरजमुखी के तेल का आयात किया जाता है. ये तेल रूस और यूक्रेन से आयात होता है. बीते कुछ सालों में ये दोनों ही देश सूखे की मार झेल रहे हैं, जिसकी वजह से सूरजमुखी के तेल के उत्पादन में कमी आई है. भारत में सोयाबीन के तेल का आयात अर्जेंटीना और ब्राजील से होता है. लेकिन, ये देश भी सूखे की मार से त्रस्त है.
सभी तेलों के दाम बीते एक साल में अलग-अलग तेल के हिसाब से 20 से 60 फीसदी बढ़े हैं.
एक साल में कितने बढ़े दाम?
भारत में आमतौर पर मूंगफली, सरसों, वनस्पति, सोया, सूरजमुखी और पाम ऑयल को खाद्य तेल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इन सभी तेलों के दाम बीते एक साल में अलग-अलग तेल के हिसाब से 20 से 60 फीसदी बढ़े हैं. एसईएआई (SEAI) के अनुसार, पाम ऑयल का दाम एक साल पहले 533 डॉलर/प्रति टन था, जो इस साल अप्रैल में बढ़कर 1,173 डॉलर तक पहुंच गया. सूरजमुखी और पाम ऑयल के दाम करीब 60 फीसदी तक बढ़े हैं. मूंगफली के तेल में पिछले एक साल में 20 फीसदी, सरसों के तेल में करीब 50 फीसदी और वनस्पति तेल के दामों में 45 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. मई के महीने में इन सभी तेलों के दाम बीते 11 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए थे. जून महीने में खाद्य तेलों की मांग में कमी की वजह से दामों में कुछ गिरावट आई है. लेकिन, यह स्थिति कब तक रहेगी, इस पर अभी से कुछ कहा नहीं जा सकता है.
क्यों बढ़ी खाद्य तेलों की खपत?
कोरोना महामारी के बावजूद भी खाद्य तेलों की मांग में कोई कमी नहीं आई है. दरअसल, दुनिया के कई देशों में अब खाद्य तेलों का इस्तेमाल केवल खाने में नहीं किया जा रहा है. खाद्य तेलों का उपयोग अब बायो फ्यूल बनाने में भी किया जाने लगा है. जिसकी वजह से दुनिया भर में इसकी कमी हो रही है. वहीं, खपत बढ़ने की एक बड़ी वजह चीन द्वारा खाद्य तेलों की बंपर खरीद भी है. विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला चीन बड़े स्तर पर खाद्य तेलों की खरीद कर रहा है. जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य तेलों की कीमतों में काफी उछाल आया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दाम बढ़ने का सीधा असर भारत पर पड़ता है, जिसकी वजह भारत का खाद्य तेलों के आयात पर निर्भर होना है. कोरोना महामारी के दौरान भारत में खाद्य तेलों की मांग में कमी आई है, लेकिन यह इतनी नही है कि इसका असर घरेलू बाजार में कीमतों पर पड़े.
भारत को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश
केंद्र सरकार द्वारा पाम ऑयल व सोयाबीन के तेल पर क्रमश: 32.5 और 35 फीसदी आयात कर लगाया जाता है. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार कुछ समय के लिए खाद्य तेलों पर लगने वाले आयात शुल्क को घटा सकती है. खाद्य तेल के व्यापारियों की मांग है कि खाद्य तेलों की कीमतें काबू में आने तक सरकार इस पर लगने वाले आयात शुल्क, जीएसटी और अन्य सेस को हटा दे. व्यापारियों का मानना है कि इसकी वजह से दाम कम हो जाएंगे. अगर सरकार ऐसा करती है, तो खाद्य तेलों की कीमतों में कमी आ सकती है और मांग भी बढ़ेगी. वहीं, कृषि मंत्रालय की ओर से बीते महीने कहा गया था कि आगामी खरीफ (गर्मी) की फसल में तिलहन के लिए 6.37 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त रकबा लाने की रणनीति बनाई गई है. जो आने वाले समय में तेल के आयात को कम करने में मदद करेगा. इसके साथ ही किसानों को उपज बढ़ाने के लिए बीज भी बांटे जाएंगे. भारत में खाद्य तेलों के दाम पूरी तरह से अंतराराष्ट्रीय बाजार के दामों पर निर्भर करते हैं. जब तक अंतराराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कमी नहीं आएगी, भारत में तेल के दाम कम होना एक मुश्किल काम नजर आता है. हालांकि, सरकार टैक्स हटाकर काफी हद तक कीमतों को कम कर सकती है. लेकिन, कोरोना महामारी से जूझ रही सरकार शायद ही ये फैसला लेगी. कृषि मंत्रालय की ओर से जारी किया बयान इसकी ओर साफ इशारा कर रहा है.
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