7वां वेतन आयोग: लो बंट गया पेट्रोल-डीजल में बचत का पैसा
केन्द्र सरकार का अनुमान है कि केन्द्रीय कर्मचारियों को यह लाभ देने के लिए उसे खजाने से लगभग एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. इसे इत्तेफाक ही कहें कि लगभग इतनी ही रकम मौजूदा सरकार ने बीते दो साल में कच्चे तेल की गिरावट के दौरान अपने खजाने में जमा कर ली है.
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बीते दो साल में केन्द्र सरकार का सबसे बेहतरीन पल बीता मंगलवार था जब मोदी कैबिनेट ने केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए अच्छे दिन लाने का बटन दबा दिया. कैबिनेट ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी. इस मंजूरी से केन्द्र सरकार के अधीन लगभग एक करोड़ कर्मचारियों को 23 फीसदी अधिक वेतन और भत्ता मिलेगा. खास बात यह है कि वेतन और भत्ते में 23 फीसदी बढ़ोत्तरी जनवरी 2016 के वेतन से प्रभावी होगी और सभी कर्मचारियों को जुलाई से बढ़ा हुआ वेतन मिलने लगेगा. वहीं जनवरी 2016 से जून 2016 तक का बढ़ा हुआ पैसा कर्मचारियों को एरियर के तौर पर अगले कुछ महीनों में मिल जाएगा. नतीजा, यह कि दो साल की इस सरकार से केन्द्र सरकार के कर्मचारी खुश हो गए हैं क्योंकि वाकई उनके अच्छे दिनों का काउंट डाउन शुरू हो गया है.
केन्द्र सरकार को 2014-15 वित्त वर्ष के दौरान पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर लगभग 75,000 करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी. यह एक साल पहले हुई आमदनी से लगभग 25,000 करोड़ रुपये अधिक है. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 107 डॉलर प्रति बैरल के दर से गिरकर 50 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गई थी. जैसा कि आंकड़ों से जाहिर है कि कच्चे तेल में सरकार का खर्च इस एक साल के दौरान आधा हो गया था और उसकी कमाई एक साल पहले की अपेक्षा दोगुना हो गई थी. इसके बाद अगले वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान कच्चे तेल की कीमत में और गिरावट देखने को मिली और अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें 20-25 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में आ गई थी. इस गिरावट के दौरान केन्द्र सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से कई मर्तबा पेट्रोल-डीजल पर लग रहे टैक्स में इजाफा भी कर दिया था.
बीते दो साल में सरकार को पेट्रोल-डीजल से बढ़ी कमाई |
अब देखिए न, केन्द्र सरकार के एक करोड़ कर्मचारी, जिसमें 50 फीसदी से अधिक रिटायर्ड कर्मचारी हैं, जिनके पेंशन और महंगाई भत्ते में वृद्धी हुई है, वह देश की अर्थव्यवस्था के लिए कितने अहम हैं. सरकार और आर्थिक मामलों के जानकारों का तर्क है कि 7वें वेतन आयोग से लगभग एक लाख करोड़ रुपये का कैपिटल इंफ्यूजन होगा जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आने के आसार बढ़ जाएंगे है. कह सकते हैं कि देश की लगभग 0.7 फीसदी से 0.8 फीसदी जनसंख्या को वेतन आयोग से मिली इस सौगात से देश की अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ने जा रही है.
गौरतलब है कि इससे पहले 2008 में आए 6वें वेतन आयोग ने केन्द्रीय कर्मचारियों को वेतन और भत्ते में 50 फीसदी से अधिक की सौगात दी थी. नतीजतन देश में दोपहिया और चार पहिया गाड़ियों की बिक्री में तेजी दर्ज की गई थी. यह वही वक्त था जब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के प्रभावों को झेल रही थी और केन्द्र सरकार के इस कैपिटल इंफ्यूजन ने देश को कई वैश्विक मंदी के कई कुप्रभावों से रक्षा की थी.
हालांकि मौजूदा रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि 2008 में वेतन आयोग की सिफारिशों के चलते देश ने अगले पांच साल तक उच्च ब्याज दरों का दौर देखा. राजन के मुताबिक अब 7वें वेतन आयोग की 24 फीसदी बढ़ोत्तरी की सौगात, जिसमें खासतौर पर केन्द्रीय कर्मचारियों के हाउस रेंट अलाउंस में बड़ी बढ़ोत्तरी को अंजाम दिया गया है, से एक बार फिर देश पर महंगाई का खतरा आ सकता है. राजन के मुताबिक इस बढ़ोत्तरी से रियल स्टेट सेक्टर में डिमांड पैदा होने और फलस्वरूप किराए में बढ़ोत्तरी के आसार हैं जिससे खुदरा महंगाई में बढ़ोत्तरी दर्ज हो सकती है.
बहरहाल, महंगाई के इस डर के अलावा एक बात तय है कि 2008 की तरह इस बार भी वेतन में बड़ी बढ़ोत्तरी के चलते अर्थव्यवस्था के कई सेक्टर जैसे ऑटो, रियल स्टेट, सीमेंट, स्टील, कंज्यूमर गुड्स में मांग पैदा होगी जिसके सहारे देश में कारोबार मौजूदा सुस्ती की स्थिति से बेहतर हो जाएगा.
अब केन्द्र सरकार के लिए 7वें वेतन आयोग को लागू करने में एक और खास बात यह है कि इससे सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ पड़ेगा. केन्द्र सरकार का अनुमान है कि केन्द्रीय कर्मचारियों को यह लाभ देने के लिए उसे खजाने से लगभग एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. गौरतलब है कि सरकार को अकेले पिछले वित्त वर्ष में कच्चे तेल से लगभग 75,000 करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी और मौजूदा वित्त वर्ण में हो रही आमदनी को इसमें जोड़ दिया जाए तो उसके खजाने में अकेले पेट्रोल-डीजल की कमाई से 1 लाख करोड़ रुपये की रकम मौजूद है.
लिहाजा, अब आप जानना चाहें कि आखिर केन्द्र सरकार ने बीते दो साल कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का सीधा लाभ आम आदमी को क्यों नहीं पहुंचाया तो अब आपके पास इस सवाल का जवाब खुद ब खुद मौजूद है. केन्द्र सरकार ने इस कमाई को देश की भलाई और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास का हवाला देते हुए आम आदमी को महंगा पेट्रोल और डीजल खरीदने पर मजबूर किया. अब जब देश की 0.7 फीसदी से 0.8 फीसदी जनसंख्या को इस कमाई का फायदा मिलने जा रहा है तो दलील लाजमी है कि इसमें पूरे देश की भलाई शामिल है. एक बात और है कि ये अच्छे दिन महज केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए नहीं आए हैं. केन्द्रीय कैबिनेट से मिली इस मंजूरी के बाद अब सभी राज्य सरकारें भी इसी तर्ज पर अपने कर्मचारियों को वेतन और भत्ते की सौगात बांट देगी. गौरतलब है कि पेट्रोल-डीजल में आम आदमी से कमाई करने में राज्य सरकारें भी कम नहीं है. मोटे हिसाब से देखें तो केन्द्र सरकार और राज्य सरकार लगभग एक बराबर टैक्स जनता से इस इंधन के लिए वसूल लेते हैं. लिहाजा, एक बड़ी रकम ज्यादातर राज्य सरकारों की खजाने में भी बंटने के लिए तैयार है.
इस बंटवारे के बाद आम आदमी को इंतजार रहेगा कि देश में जल्द से जल्द कारोबारी तेजी आए, विकास दर कई फीसदी का इजाफा दर्ज करे जिससे देश में रोजगार बढ़ाने में मदद मिले और आम आदमी तक भी अच्छे दिनों को पहुंचाया जा सके.
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