मेक इन इंडिया: विदेशी निवेश या वर्गीस कुरियन फॉर्मूले से?
सरकार मेक इन इंडिया पर जोर दे रही है. इस अभियान के लिए पूरा ध्यान ज्यादा से ज्यादा विदेशी निवेश लाने पर है. जबकि श्रमशक्ति से भरपूर इस देश में यह काम वर्गीज कुरियन जैसे लोग ही कर सकते हैं. एक नहीं, सौ सौ वर्गीज कुरियन चाहिए.
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वर्गीज कुरियन को ‘देश का दूधवाला’ टाइटल से नवाजा गया है. भारत सरकार के वजीफे पर कुरियन ने अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. वजीफे के लिए भरे बॉन्ड को पूरा करने के लिए 1949 में कुरियन ने गुजरात के आनंद शहर में मात्र 600 रुपये प्रतिमाह की तनख्वाह पर डेयरी में नौकरी शुरू की. इस नौकरी को महज कुछ साल तक करके वह स्वतंत्र हो जाते लेकिन यहां मौजूद दो चुनौतियों ने उन्हें कुछ और ही करने पर अमादा कर दिया. पहला, बाजार में बिक रहे दूध के पूरे पैसे किसानों को नहीं दिए जा रहे थे और दूसरा किसानों को सीधे डेयरी पर दूध बेचने की मनाही थी.
किसानों पर हो रहे इस अत्याचार और देशभर में दूध सप्लाई चेन में व्याप्त अनियमितताओं के चलते कुरियन ने गुजरात के कायरा जिले में अमूल कोऑपरेटिव सोसाइटी की नींव रखी. इस सोसाइटी का पहला उद्देश्य दूध के कारोबार में आ रहे मुनाफे का 75 फीसदी हिस्सा देश के किसानों को देना था. इसके लिए उन्हें एक नया और क्रांतिकारी सप्लाई चेन स्थापित करना था जिससे दुग्ध उत्पादन कर रहे किसानों को इस चेन में अहम स्थान मिल सके. कुरियन के इजात किए इस नए सप्लाई चेन ने गुजरात में दो कोऑपरेटिव सोसाइटी और 247 लीटर दूध प्रतिदिन एकत्रित कर काम करना शुरू कर दिया. हालांकि, इस काम को आगे बढ़ाने में कुरियन को असली सफलता तब मिली जब उनके एक मित्र एच एम दलाया ने अपना एक अविष्कार इस डेयरी के साथ जोड़ दिया. दलाया ने गाय के दूध की अपेक्षा भैंस के दूध को तरजीह देना शुरू किया और अमूल के हांथ में नई टेक्नोलॉजी सौंपी जो भैंस के दूध को मिल्क पाउडर में बदलने लगा.
इस खोज ने अमूल के प्रोडक्ट को इतना लोकप्रिय बना दिया कि जल्द भारत सरकार का ध्यान इस ओर गया और यहीं से देश में ऑपरेशन व्हाइट फ्लड की शुरुआत हुई. इस सफलता के चलते जहां हम अमेरिका को दूग्ध उत्पादन में पीछे छोड़ दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक बन चुके हैं वहीं आज अमुल से 1 लाख 44 हजार से ज्यादा कोऑपरेटिव सोसाइटी देशभर में काम कर रही हैं. भारत में तैयार दूध और दूध उत्पाद पूरी दुनिया में सप्लाई किया जा रहा है और पूरे कारोबार का 75 फीसदी मुनाफा देश के किसानों को हो रहा है.
लिहाजा, देश में ‘मेक इन इंडिया’ की यह पहली मिसाल है और मौजूदा केन्द्र सरकार के फ्लैगशिप प्रोग्राम के लिए एक बड़ी नसीहत भी. देश की अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सरकार ने मेक इन इंडिया कार्यक्रम का सहारा लिया है. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी समेत देश के कई मंत्रालयों के मुखिया और अग्रणी कंपनियां दुनिया के हर कोनो में जाकर भारतीय मूल के लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वे भारत में आकर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में बड़ा निवेश कर देश को ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की योजना को सफल करें. वर्गीज कुरियन साबित कर चुके हैं कि मेक इन इंडिया को सफल किया जा सकता है तो आज इस पूरे कार्यक्रम को सफल करने के लिए हमें एक नहीं, दो नहीं बल्कि सौ-सौ वर्गीज कुरियन की जरूरत है.
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