बैंकों के एक लाख करोड़ डुबे, माल्या ने खरीदा सबसे महंगा क्रिकेटर
रिजर्व बैंक ने बताया कि बीते तीन साल में सरकारी बैंकों के 1 लाख 14 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया गया है. यह लोन विजय माल्या और उन जैसे कॉरपोरेट जगत के लोगों को दिया गया था जो अब डिफॉल्टर हैं. लेकिन जरा इनकी खरीदारी तो देखिए...
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अर्थशास्त्री सुरजीत सिंह भल्ला का मानना है कि दुनिया में अगर 4 सबसे भ्रष्ट संस्थाओं का नाम लिया जाए तो उनमें 3 भारत से हैं. इन तीन में सबसे ऊपर एक खेल संस्था है- बीसीसीआई. तो बाकी दोनों बहुत बड़े खेल की संस्थाएं हैं- पीडीएस और मनरेगा. खास बात यह है कि फेसबुक के ‘फ्री-बेसिक’ की तरह बड़े खेल की ये दोनों संस्थाएं देश से गरीबी हटाने के लिए लंबे समय से काम कर रही हैं और करती ही जा रही हैं. लिहाजा, आज जब हम वर्चुअल दुनिया में नेट न्यूट्रलिटी की बात कर रहे हैं तो क्या ये जरूरी नहीं हो जाता कि पहले हमें रियल दुनिया में न्यूट्रलिटी स्थापित करना चाहिए.
बीते तीन साल में सरकारी बैंकों के 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा स्वाहा हो चुके हैं. सरकारी बैंको ने प्राइवेट कंपनियों को कर्ज दिया. प्राइवेट कंपनियों ने बैंक के पैसों का न जाने क्या किया कि और बैंकों ने इन कंपनियों को डिफॉल्टर बना दिया, यानी कर्ज चुकाने के लिए इनके पास पैसे नहीं हैं. ऐसी कंपनियों में सबसे अग्रणी विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइन्स निकली. बैंक, वित्त मंत्रालय और संबंधित दर्जनों संस्थाओं को इस बात का इल्म ही नहीं कि किंगफिशर एयरलाइन्स के लिए कर्ज का क्या हुआ और पैसे कहां हैं. कंपनी डिफॉल्टर हुई, रजिस्टर्ड ऑफिस सील हो गया, रजिस्टर्ड बैंक खाता सील हो गया, कुछ डिपार्टमेंट सैकड़ों विदेशी गाड़ियों का काफिला उठा ले गए. इन सब के बावजूद रॉयल चैलेंजर्स का खेल बदस्तूर जारी है.
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किंगफिशर के लोन के कर्ता-धर्ता विजय माल्या न सिर्फ शाही जन्मदिन मना रहे हैं बल्कि कंपनी की बियर की चुस्कियां लगाते हुए क्रिकेट के खेल में चल रही नीलामी में सबसे बड़ी बोली भी लगा रहे हैं. जिसके पैसे के बारे में किसी को कुछ नहीं पता वह 22 करोंड रुपये का चेस्ट लेकर आईपीएल में बोली लगा रहा हैं और खेल के सबसे बड़े सौदे को अंजाम देते हुए 9.5 करोड़ रुपये में साल के सबसे महंगे खिलाड़ी शेन वॉटसन को खरीदा है. खरीदे भी क्यों न? आखिर अर्थशास्त्रीर सुरजीत भल्ला यही तो कह रहे हैं कि देश में भ्रष्ट्राचार का सबसे बड़ा खेल क्रिकेट की संस्था में हो रहा है.
विजय माल्या की ये खरीददारी भारत तक ही सीमित नहीं है. वह वेस्टइंडीज के कैरिबियन प्रीमियर लीग (सीपीएल) में सबसे महंगे क्लब बारबाडोज ट्राइडेंट को भी खरीद कर रहे हैं. साथ ही यह दावा कर रहे हैं कि उस देश में टैक्स नियमों की कुछ खामियों को दूर करने के लिए वह जल्द वहां के प्रधानमंत्री से भी बात करेंगे जिससे आईपीएल की तर्ज पर सीपीएल में भी कमाई की जा सके. इन सबके बीच सबसे खास बात यह है कि विजय माल्या भी फेसबुक की तरह दावा करते हैं कि क्रिकेट को वह दुनियाभर में गरीबों तक पहुंचा देंगे. लिहाजा यह विजय माल्या का ‘फ्री-बेसिक’ नहीं है तो क्या है?
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अब कॉर्पोरेट ‘फ्री बेसिक’ के बाद जरूरत है सरकार के ‘फ्री-बेसिक’ को देखने की. देश में समय-समय पर गरीबी हटाने के लिए कई कार्यक्रम घोषित किए जाते रहे हैं. कुछ कार्यक्रम जैसे ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड, प्रौढ़ शिक्षा आए और चले गए. वहीं कुछ जैसे पीडीएस और मनरेगा लंबी पारी खेल रहे हैं. इसमे कोई दो राय नहीं है कि यह कार्यक्रम गरीबों को ‘फ्री’ में बहुत कुछ दे रहे हैं और इसी के चलते ये पारी खेलते जा रहे हैं. लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं है कि देश में क्रिकेट के बाद सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का खेल इन्हीं कार्यक्रमों में खेला जा रहा है. ये कार्यक्रम देश से गरीबी को दूर करने के नैतिक लक्ष्य के साथ चलाए जा रहे है और इनकी वास्तविकता क्या है. क्या ये भी फेसबुक की तरह सरकार का ‘फ्री-बेसिक’ नहीं है.
अब सूचना के अधिकार के तहत रिजर्व बैंक यह जानकारी दे रहा है कि देश के सरकारी बैंकों ने पिछले तीन साल में 1 लाख 14 हजार करोड़ रुपये के कॉरपोरेट लोन को माफ कर दिया है. मतलब यह कि ये लोन लेने वाली कंपनियों के पास इन सरकारी बैंकों का कर्ज चुकाने के लिए पैसे नहीं है और सभी कंपनियां डिफॉल्टर घोषित हैं. लिहाजा, बैंकों के नुकसान की भरपाई हमारी सरकार देश में लिक्विडिटी बढ़ाकर कर रही है क्योंकि इन कंपनियों के पैसे का कोई अतापता नहीं चल पाया. इसलिए उन पैसे के एवज में सरकार नई नोट छापकर बैंकों को थमा रही है जिससे वह अपना घाटा पूरा करले और देश में कारोबारी तेजी के लिए नए लोन बांटना शुरू कर दे. अब यह भी फेसबुक की तर्ज का ‘फ्री-बेसिक’ ही है- देश में रोजगार बढ़ाने के लिए सरकारी खजाने से कॉरपोरेट को सस्ता लोन देना.
टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी (ट्राई) ने फेसबुक के ‘फ्री-बेसिक’ पर अपत्ति जताते हुए देश में इंटरनेट को बड़े चुंगल से बचाने का काम कर दिखाया है. देश में वर्चुअल स्पेस में नेट न्यूट्रलिटी कायम है. क्या इसे और आगे ले जाने की जरूरत नहीं. क्या केन्द्र सरकार और सरकारी बैंकों के साथ-साथ देसी कॉरपोरेट को भी अपने-अपने ‘फ्री-बेसिक’ पर लगाम नहीं लगाना चाहिए. आखिर कब तक बैंकों के इन गायब पैसों से दुनिया का सबसे बड़ा पॉप सिंगर विजय माल्या का जन्मदिन मनाएगा, या दुनिया का सबसे महंगा खिलाड़ी खरीदा जाएगा और पूरे खेल पर दुनिया की बेहतरीन चीयरलीडर्स का जलवा कायम रहेगा. फिलहाल, फ्री-बेसिक के इस खेल को देखकर तो यही लगता है कि यहां आंख में धूल की जगह लाल मिर्च झोंकी जा रही है.
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