जीडीपी में आधा फीसदी के घाटे की यह रही भरपाई
बड़े आर्थिक रिफॉर्म की रफ्तार कितनी हो और विकास दर को मजबूत स्तर पर ले जाने में सरकार की नीतियों में कहां चूक हो रही है, इन कमजोर जीडीपी आंकड़ों के बाद यह जान लेना जरूरी हो गया है.
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अप्रैल-जून तिमाही के जीडीपी आंकड़े 7 फीसदी पर सिमटने से केन्द्र सरकार की कोशिशों पर दोहरा प्रहार हुआ है. बड़े आर्थिक रिफॉर्म की रफ्तार कितनी हो और मौजूदा स्तर से विकास दर को मजबूत स्तर पर ले जाने में सरकार की नीतियों में कहां चूक हो रही है, इन आंकड़ों के बाद यह जान लेना जरूरी हो गया है. एक तरफ जहां विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए ग्लोबल रेटिंग एजेंसियों को देश में मजबूत आर्थिक ढांचे का प्रचार करना है, वहीं दूसरी तरफ भारतीय रिजर्व बैंक को भी एक बार गंभीरता से सोचना होगा कि ब्याज दरों को कम न करने के उसके फैसले का कहीं देश की आर्थिक गति पर ब्रेक का काम तो नहीं कर रही है.
कैसे विफल हुआ आंकड़ों का अनुमान
मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ महज 7 फीसदी पर सिमटने का साफ मतलब है कि देश में आर्थिक गति कमजोर पड़ रही है क्योंकि पिछली (जनवरी-मार्च) तिमाही में विकास दर 7.5 फीसदी पर थी. आर्थिक मामलों के जानकारों को इस दौरान 7.5 फीसदी की विकास दर दिखने की उम्मीद थी.
एग्रीकल्चर, मैन्यूफैक्चरिंग के साथ कोर सेक्टर आंकड़े कमजोर
• मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ सुस्त होकर 7.2 फीसदी रही.
• एक साल पहले की समान अवधि में ग्रोथ 8.4 फीसदी रही थी.
• इलेक्ट्रिसिटी, गैस, वाटर सप्लाई अन्य यूटिलिटी सर्विसेज में ग्रोथ सिमट कर 3.2 फीसदी हुई.
• पिछले साल इन क्षेत्रों में 10.1 फीसदी ग्रोथ दर्ज हुई थी.
• माइनिंग सेक्टर का आउटपुट 4 फीसदी रहा जबकि पिछले साल 4.3 फीसदी थी.
• फाइनेंशियल, रियल एस्टेट और प्रोफेशनल सर्विसेज की ग्रोथ भी 9.3 फीसदी से घटकर 8.9 फीसदी रही.
• जुलाई में आठ कोर इंडस्ट्रीय की ग्रोथ जून की तुलना में घटकर 1.1 फीसदी रही.
• जबकि जून में कोर इंडस्ट्री की ग्रोथ 3 फीसदी पर थी.
ब्याज दरों में कटौती की संभावना बढ़ी
भारत के आर्थिक विकास दर यह आंकड़ें उसे चीन के आंकड़ों के साथ खड़ा कर रहा है. वैश्विक स्तर पर आर्थिक जानकारों का मानना है कि चीन आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है. लिहाजा, इसका दबाव रिजर्व बैंक पर बढ़ जाएगा कि वह जल्द से जल्द ब्याज दरों में कटौती करते हुए देश में आर्थिक गतिविधियों को तेज करने में सरकार को सहारा दे. गौरतलब है कि केन्द्र सरकार रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती की मांग कर रही है.
सरकार को लागू करने हैं बड़े आर्थिक रिफॉर्म
अगले साल देश भर में एकीकृत बाजार स्थापित करने के लिए केन्द्र सरकार को अबतक का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म शुरू करना है. ऐसे में कमजोर हो रहे विकास दर से अर्थव्यवस्था में गंभीर चुनौतियां पैदा होने का खतरा बढ़ सकता है. केन्द्र सरकार से संबद्ध कुछ आर्थिक जानकारों का यहां तक मानना है कि विकास दर में यह गिरावट रिजर्व बैंक के ब्याज दरों में कटौती न करने के फैसले से देखने को मिल रही है.
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