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Updated: 24 नवम्बर, 2015 04:48 PM
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अब तक ज्यादातर लोगों का यही मानना रहा है कि भारतीय काम करने में आगे हैं. लेकिन जनाब अब जान लीजिए कि दुनिया में सबसे कम छुट्टियां ले पाने के मामले में भारतीयों की नंबर चौथा है. एक ऑनलाइल ट्रैवल एजेंसी द्वारा कराए गए ग्लोबल सर्वे में दुनिया में छुट्टियों की कमी से जूझने के मामले में भारतीयों ने चौथा स्थान हासिल किया.

इस सर्वे में शामिल 68 फीसदी भारतीयों ने कहा कि उन्हें या तो अपनी छुट्टियां रद्द करनी पड़ जाती हैं या टालनी पड़ जाती हैं, जोकि भारतीयों के काम के प्रति समर्पण को दिखाता है. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है और यह है कि आखिर क्यों भारतीय कम छुट्टी ले पाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कम छुट्टी लेना ही ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने की गारंटी है. आइए जानें इस मामले में क्या कहते हैं विकसित देशों के आंकड़ें.

अमेरिकी लेते हैं सबसे कम छुट्टियांः

यह जानकार आपको हैरानी होगी कि अमेरिका में एक भी पेड वैकेशन लीव देने का नियम नहीं हैं. हालांकि वहां साल भर में 10 सार्वजनिक छुट्टियां मिलती हैं. लेकिन फिर भी अमेरिकी कर्मचारी छुट्टियां लेने के मामले में दुनिया में सबसे निचले पायदानों में से एक पर आते हैं. एक औसत अमेरिकी कर्मचारी साल भर में 1836 घंटे काम करता है जोकि दुनिया में सबसे ज्यादा है. छुट्टियां देने के मामले में यूरोपीय देश अमेरिका से काफी आगे हैं. इस लिस्ट में साल भर में 41 पेड छुट्टियों के साथ ब्राजील सबसे आगे है. वहीं फ्रांस साल भर में 31 छुट्टियां, ऑस्ट्रिया में 38 छुट्टियां, पुर्तगाल में 35, स्पेन में 34, इटली में 33, बेल्जियम, जर्मनी और न्यूजीलैंड में 30-30, आयरलैंड में 29, ऑस्ट्रेलिया में 28, ब्रिटेन में 28, नार्वे में 27, ग्रीस में 26, स्वीडन, डेनमार्क और फिनलैंड में 25-25, नीदरलैंड्स और स्विट्जरलैंड में 20-20, कनाडा में 19 और जापान में 10 छुट्टियां मिलती हैं. इस मामले भारत और चीन का स्थान इन विकसित देशों से नीचे है. भारत में साल भर में 28 छुट्टियां (12 पेड छुट्टियां और 16 सार्वजनिक अवकाश) और चीन में 21 छुट्टियां (10 पेड लीव, 11 सार्वजनिक अवकाश) मिलती हैं. अमेरिकी लोग जहां ज्यादा काम करने को तवज्जो देते हैं तो वहीं यूरोपीय देश काम के साथ-साथ छुट्टियां को भी उतना ही महत्व देते हैं.

कम और ज्यादा छुट्टियों में कौन बेहतर? अगर आपको ऐसा लगता है कि कम छुट्टियां लेने से उत्पादकता बढ़ती है तो यह भी पूरी तरह सच नहीं है. इस मामले में सबसे कम छुट्टियां लेने वाले अमेरिकी और ज्यादा छुट्टियां लेने वाले अन्य देशों के कर्मचारियों की उत्पादकता की तुलना से स्थिति स्पष्ट होती है. उदाहरण के लिए सबसे ज्यादा छुट्टियां लेने के मामले में दुनिया में छठे नंबर पर आने वाले देश न्यूजीलैंड (30 छुट्टियां) में कर्मचारी सलाना 1762 घंटे काम करते हैं, और वहां बेरोजगारी की दर 6.9 फीसदी है. बहुत ज्यादा छुट्टियां देने के बावजूद भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक न्यूजीलैंड की विकास दर कई वर्षों तक कई विकसित देशों से ज्यादा रहेगी. वहीं ज्यादा काम करने के बावजूद अमेरिका में बेरोजगारी दर 10 फीसदी से ज्यादा है. वहीं फ्रांस भी साल में 31 छुट्टियां देने के बावजूद 57.70 डॉलर प्रति घंटे की श्रम उत्पादकता के साथ अमेरिका (60.20 डॉलर प्रति घंटे ) से थोड़ा ही पीछे है, जबकि अमेरिकी कर्मचारी साल भर में फ्रांस के कर्मचारियों से 20 फीसदी ज्यादा काम करते हैं. लेकिन बावजूद इसके अमेरिका इस मामले में बहुत बेहतर स्थिति में नहीं हैं. यानी ज्यादा काम करना ही सफलता की गारंटी नहीं है और लगातार बिना छुट्टी के काम करने से कर्मचारियों की उत्पादकता प्रभावित होती है.

मजबूरी में कम छुट्टियां ले पाते हैं भारतीयः

ऐसा नहीं है कि भारतीय कर्मचारी छुट्टियां लेना नहीं चाहते हैं. इस सर्वे की मानें तो करीब 54 फीसदी भारतीय वेतन बढ़ोतरी से ज्यादा छुट्टियों की संख्या में बढ़ोतरी के पक्ष में हैं. और ऐसा हो भी क्यों न जबकि 11 फीसदी भारतीय अपने साल भर के कोटे की छुट्टियां भी नहीं पूरी कर पाते हैं. 70 फीसदी मामलों में तो बॉस से छुट्टियां मिलने के बावजूद भारतीय छुट्टी नहीं ले पाए क्योंकि उनके ऊपर काम का बोझ और जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय अपने काम के प्रति ज्यादा समर्पण के कारण छुट्टी नहीं लेते लेकिन इस सर्वे में करीब 68 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें अपनी छुट्टियां रद्द करनी या टालनी पड़ीं, जो दिखाता है कि भारतीय न सिर्फ समर्पण बल्कि काम के बोझ के कारण भी छुट्टियां नहीं ले पाते. साथ ही इस सर्वे के मुताबिक भारतीय अपने प्रॉजेक्ट के प्रभावित होने और छुट्टी के दौरान किसी महत्वपूर्ण जानकारी से चूकने से बचने के लिए छुट्टियां लेने से कतराते हैं.

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