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Updated: 06 नवम्बर, 2017 03:05 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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पनामा पेपर्स लीक मामला अभी ठंडा भी हुआ नहीं था कि वैसा ही एक और मामला सामने आ गया. पैराडाइज पेपर्स... जी हां, अगर आपने इसके बारे में अभी तक नहीं सुना तो बता दूं कि पैरेडाइज पेपर्स एक लिस्ट या सेट है 1.34 करोड़ डॉक्युमेंट्स के. ये डॉक्युमेंट्स पनामा पेपर्स की तरह ही विदेशी इन्वेस्टमेंट की बात करते हैं.

इन 1.34 करोड़ डॉक्युमेंट्स में करीब 1 लाख 20 हजार लोग और कंपनियों का नाम है. इन डॉक्युमेंट्स को जर्मन न्यूजपेपर Süddeutsche Zeitung ने खोज निकाला है और इंटरनेशनल कॉन्सोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट (ICIJ) इस पर काम कर रहे हैं. ये वही संस्था है जो पनामा पेपर्स की जांच कर रही थी. ये संस्था 96 बाकी न्यूज ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर काम कर रही है. इस लीक से जुड़े दस्‍तावेजों की पड़ताल भारत में 'इंडियन एक्‍सप्रेस' कर रहा है, जिसने कई अहम जानकारी जारी की है.

इसमें से अधिकतर जानकारी बर्मूडा स्थित एपलबी (Appleby) कंपनी से जुड़ी है, जो कि 199 साल पुरानी एक लॉ फर्म है. ये फर्म इसी मामले में काम कर रही है. विदेशी कंपनियों के बैंक अकाउंट, निवेश और प्रॉपर्टी मैनेज करने का काम यही कंपनी कर रही थी. इस कंपनी के साथ एक सिंगापुर की फर्म एशियासिटी भी शामिल है.

क्यों पैरेडाइज पेपर्स बाकी लीक्स से अलग हैं...

इसके पहले ऑफशोर लीक (2013), स्विज लीक (2015) और पनामा पेपर्स (2016) आ चुके हैं तो पैरेडाइज पेपर्स क्यों अलग हैं? पैरेडाइज पेपर्स भी विदेशों में फाइनेंशियल एक्टिविटी और इन्वेस्टमेंट के बारे में बताते हैं, लेकिन इनमें ज्यादातर हिस्सेदारी कॉर्पोरेट कंपनियों की हैं. इसके पहले की लीक्स में ज्यादातर लोगों का नाम सामने आया था.

भारत में कितना महत्‍व मिलेगा, इस खुलासे को :

ये वो समय है जब मोदी जी काले धन को वापस लाने के लिए नोटबंदी जैसा बड़ा फैसला ले चुके हैं और बेनामी प्रॉपर्टी के मामले में इतनी बात कर रहे हैं. ऐसे में पैराडाइज पेपर्स का सामने आना कितना महत्‍व रखता है ? जिसमें बताया जा रहा है कि बड़े कॉर्पोरेट, नेता विदेशी कंपनियों की मदद लेकर अपना पैसा आसानी से विदेशों में पहुंचा रहे हैं और टैक्स की चोरी भी कर रहे हैं. तो क्‍या वाकई सरकार इन्‍हें 'चोर' मानेगी ?

दुनिया भर के ज्‍यादा बड़े-बड़े नामों से मामले का छोटा हो जाना...

बड़ी बात ये है कि इन पेपर्स में ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ 2, कोलंबिया के प्रेसिडेंट जुआन मेनुअल सैंटोज, यूएस के कॉमर्स सेक्रेटरी विलबर रॉस, रशिया के प्रेसिडेंट व्लादिमिर पुतिन के दामाद भी शामिल हैं. इनके अलावा भी दुनिया भर की कई बड़ी-बड़ी हस्थियों के नाम शामिल हैं इन पेपर्स में. जब इतने बड़े नाम इस सूची में तो पहला इंप्रेशन यही बनता है कि ब्रिटेन की महारानी जैसे बड़े लोगों को टैक्‍स चोरी करने की क्‍या जरूरत ?

कितना अहम है भारत के मामले में ये लीक?

इन पेपर्स में लगभग 180 देशों का डेटा है और भारत इसमें से 19वें नंबर पर हैं. यानि भारत बाकी कई देशों की तुलना में टैक्स हेवेन कंट्री (वो देश जहां टैक्स छूट का सबसे ज्‍यादा फायदा मिलता है और प्रॉपर्टी या किसी कंपनी पर आसानी से इन्वेस्ट किया जा सकता है) में अपना पैसा ज्यादा लगाते हैं. ये असली कमाई छुपाने का अच्छा तरीका है. कुल मिलाकर इन पेपर्स में 714 भारतीयों के नाम शामिल हैं. लेकिन, विदेशों में पैसा निवेश करने का जो तरीका इन लोगों ने अपनाया है, वह भारतीय टैक्‍स कानूनों में खामी के कारण है. यानी जिस बात के लिए कानून ही नहीं, उसे अपराध कैसे घोषित कर पाएगी सरकार ?

पैरेडाइज पेपर्सकई बड़े नाम इसमें शामिल

कौन आवाज उठाएगा, सबके तो नाम हैं !

भारत का सियासी माहौल जिस तरह के उबाल पर है, वहां पैराडाइज पेपर्स लीक तो हाथोंहाथ लिया जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कारण ये है कि जितने भी राजनीतिक दल भारत में है, उनके किसी न किसी बड़े नेता का नाम इसमें लीक में शामिल है.

बीजेपी : सिविल एविएशन मिनिस्टर जयंत सिन्हा, राज्य सभा एमपी रविंद्र किशोर सिन्हा.

कांग्रेस : सचिन पायलट, कार्ती चिदंबरम.

लेफ्ट पार्टी : केरल के मुख्‍यमंत्री पिनाराई विजयन.

इसके अलावा अमिताभ बच्चन, मान्यता दत्त, विजय माल्या, नीरा राडिया आदि के नाम शामिल हैं. इसके अलावा, कई बड़ी भारतीय कंपनियां जैसे अपोलो टायर्स, Emaar MGF, जीएमआर ग्रुप, हेवेल्स, हिंदुजा, जिंदल स्टील, वीडियोकॉन आदि शामिल हैं.

ये कोई आम कंपनियां नहीं हैं. इनमें से कुछ में 2G स्पेक्ट्रम मामले में जांच हो चुकी है. कुछ पनामा पेपर्स का हिस्सा रही हैं और बाकायदा सीबीआई और एन्फोर्मेंट डायरेक्टोरेट (ED) द्वारा जांच भी हो चुकी है. सन टीवी (एयरसेल मैक्सिस केस), एस्सार लू (2G केस), SNC लवलिन जहां केरल के चीफ मिनिस्टर पिनाराई विजयन का नाम आया (इसके बाद हटा दिया गया). राजस्थान एम्बुलेंस स्कैम, जिसके लिए सीबीआई जांच की गई थी और कंपनी Ziquista हेल्थकेयर का नाम आया था उससे सचिन पायलट और कार्ती चिदमबरम जुड़े हुए थे.

paradise-paper_650_110617014021.jpgICIJ की वेबसाइट से ली गई तस्वीर जिसमें भारत के पावरफुल नेताओं की शक्ल है.

ताजा फाइनेंशियल लिंक YSR कांग्रेस के चीफ वाई एस जगमोहन रेड्डी के खिलाफ है. भाजपा के आर.के.सिन्हा का भी नाम इस लिस्ट में शामिल हैं. ग्लोबल मेडिकल रिस्पॉन्स इंडिया लिमिटेड जिसे एपलबी द्वारा मॉरिशियस में रजिस्टर किया गया था 26 मार्च 2008 को वो कांग्रेस लीडर और पूर्व मंत्री वायालार रवी के बेटे की है. ये कंपनी एम्बुलेंस सर्विस देती है.

जयंत सिन्हा का नाम ओमिद्यार नेटवर्क (Omidyar Network) के साथ जुड़ रहा है. ये नाम 2014 में लोक सभा एमपी बनने से पहले से है. इस कंपनी ने एक अमेरिकी कंपनी D.Light डिजाइन में इन्वेस्टमेंट भी किया था.

कभी पता ही नहीं चला कि ऐसे निवेश कानूनी हैं या गैरकानूनी ?

भारत में डबल टैक्सेशल अवॉयडेंस एग्रीमेंट (DTAAS) है. इसके तहत बाकी देश जहां पर भारत की तुलना में टैक्स रेट काफी कम है वहां कंपनियां और कॉर्पोरेट बॉडी में इन्वेस्ट करने वाले टैक्स रेसिडेंसी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कर लीगली टैक्स के फायदे ले सकते हैं. इस सूची में नाम आने पर मान्‍यता दत्‍त की ओर से कहा गया है कि उन्‍होंने भारतीय कानून के हिसाब से ही य‍ह निवेश किया था और अपने निवेशों का खुलासा उन्‍होंने टैक्‍स जमा करते समय किया है.

पनामा मामला: बाकी देश और भारत...

"हम हर तरह की जांच-पड़ताल कर रहे हैं उन सभी के खिलाफ जिनका नाम पनामा पेपर्स में आया है..." ये स्टेटमेंट अरुण जेटली ने पिछले साल दिया था. जब 2016 में पनामा गेट मामले में 424 भारतीयों के नाम सामने आए थे तो हड़कंप मच गया था. आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिग्मुंदुर डेविड गनस्लॉसन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ दोनों को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी.

40 देश और कई जर्नलिस्ट की नजरें पनामा पेपर्स पर गड़ी हुई थी. आखिर ऐसा क्या हुआ कि पनामा पेपर्स मामले में नवाज शरीफ का तख्त ही पलट हो गया और अभी तक भारतीय नामों पर कोई बात ही नहीं की गई.

भारत में पनामा पेपर्स में करीब 424 नाम थे और इनमें प्रमुख अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, विनोड अडाणी, डीएलएफ के मालिक के पी सिंह और उनके परिवार के 9 सदस्य शामिल थे. अब आखिर ऐसा क्या हुआ कि उनके खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही है? (कम से कम हमें दिखी तो नहीं) खासतौर पर ऐसे समय जब मोदी सरकार कर चोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत सख्त दिखाई दे रही है.

कानून में अंतर...

कानून में काफी अंतर है. हमारे यहां कानून में ऐसे कोई प्रावधान नहीं है कि अगर आपने कोई गलत शपथ पत्र दिया है तो आप डिस्क्वालिफाई हो जाओगे, हमारे यहां टैक्स चोरी को एक खतरनाक अपराध नहीं माना जाता है. भारत में जो रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट (RP Act) में ऐसा कुछ भी नहीं है. अगर टैक्स चोरी के मामले में हमारे यहां कोई एमपी या एमएलए पकड़ा भी जाता है तो भी उसके मामले में कोई कार्रवाई नहीं होती. उसे या तो फाइन देना होता या फिर 6 महीने की जेल.

पाकिस्तान में मरियम शरीफ ने लंदन के 4 फ्लैट के मामले में फर्जी पेपर्स दिखाए और शरीफ के खिलाफ भी गंभीर आरोप लगे इसलिए उन्हें खारिज कर दिया गया. नवाज शरीफ डिस्क्वालिफाई कर दिए गए हैं.

दूसरी बात ये है कि विदेशों में कोई जांच-पड़ताल करना बहुत मुश्किल है. ऐसे में टैक्स डिपार्टमेंट को (खासतौर पर भारत के) थोड़ा समय तो लगेगा ही. अब अभी तो भारतीय टैक्स डिपार्टमेंट अपने देश के नागरिकों से सीधा सा टैक्स नहीं वसूल पा रहा है और उसके लिए प्रोजेक्ट इनसाइट जैसा एक महत्वकांक्षी टूल लाया जा रहा है.

अब खुद ही सोच लीजिए कि आखिर ये मामला कहां तक जाएगा? पनामा पेपर्स लीक के मामले में भी भारत में काफी बवाल मचा था, कम से कम कथित तौर पर तो ... लेकिन कितनों के खिलाफ एक्शन हुआ और मामला कहां तक पहुंचा है ये तो देखा ही जा चुका है. जब भाजपा से लेकर कांग्रेस तक सभी का नाम इसमें शामिल है तो हो सकता है भारत में भी ये लीक सिर्फ ट्रेंड बनकर ही रह जाए और मामला कहीं आगे नहीं बढ़ पाए...

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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