7000 करोड़ में बिसलेरी से हाथ धोने वाली जयंती की जय तो होनी ही चाहिए
रमेश चौहान ने अपनी मिनरल वॉटर कंपनी बिसलरी को बेचने का एलान करते हुए कहा है कि वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कंपनी को संभालने वाला कोई नहीं है. ऐसा सुनकर उनकी जयंती चौहान के बारे में दो राय बनती है कि या तो वे बिसलरी नहीं संभाल पा रही हैं, या अपने फैशन कारोबार के साथ इसे नहीं संभालना चाहती हैं. लेकिन, सच इन दोनों बातों से परे है...
-
Total Shares
जयंती चौहान (Jayanti Chauhan) कोई ऐसा वैसा नाम नहीं हैं. वे बिसलेरी (Bisleri) कंपनी के मालिक रमेश चौहान की बेटी और बिसलेरी इंटरनेशनल की वाइस चेयरपर्सन हैं. जब से यह खबर सामने आई है कि उन्होंने 7 हजार करोड़ की बिसलेरी छोड़ दी है, तभी से लोग उनके बारे में जानना चाह रहे हैं. लोग सोच रहे हैं कि जिस जमाने में संपत्ति के लिए भाई-भाई आपस में कट मर जाते हैं ऐसे समय में कोई बनी बनाई कंपनी क्यों छोड़ना चाहेगा. वो भी जो कंपनी मुनाफे में हो और जिसका इतना बड़ा नाम हो.
एक बात पूछनी थी क्या जंयती की जगह पर कोई बेटा होता क्या तो भी ऐसी ही बातें होतीं?
जयंती ने अपने लिंक्डइन प्रोफाइल पर लिखा है कि "हर कहानी के दो पहलू होते हैं". इस लाइन को आप हल्के में मत लीजिए क्योंकि ये लोग जो कह रहे हैं कि उत्तारिधिकारी ना होने की वजह से बिसलेरी बिक रही है यह बात हजम नहीं हो रही है. वैसे जो लोग पापा की परी कहकर लड़कियों पर कमेंट करते हैं उन्हें जयंती के बारे में जान लेना चाहिए. तो फिर बिसलेरी के बिकने की बड़ी वजह क्या है? चलिए कुछ बिंदुओं में समझते हैं.
अपनी पहचान बनाने की जिद
हो सकता है कि जयंती अपनी खुद ही पहचान बनाना चाहती हों. इसके लिए उन्हें बिसलेरी को छोड़ना ही पड़ता. उन्हें यह बात अच्छे से पता है कि बिसलेरी में रहकर वो हमेशा रमेश चौहान की बेटी ही बनकर रह जाएंगी. उन्होंने लंदन से फैशन डिजाइनिंग और फैशन स्टाइलिंग का कोर्स किया है. अगर आप यह सोच रहे हैं कि वो बिसलेरी में रहकर ही फैशन इंजस्ट्री में अपनी पहचान बनाती तो यह संभव नहीं है. नॉर्मल इंसान जब हाथ में दो काम करता है तो लोग कह देते हैं कि समझ नहीं आता कि इसे करना क्या है? जयंती के साथ भी यही है. अगर उन्हें अपनी पहचान बनानी है तो अपना कंफर्ट जोन छोड़ना ही पड़ेगा. लोग हमेशा यही कहते कि वो अमीर बाप की बेटी है. सब कुछ करा कराा मिल गया. मेहनत नहीं करना पड़ी. ये तो चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुई थी. पापा का बना-बनाया बिजनेस मिल गया. वो भले ही कितनी भी मेहनत करती दुनिया यही कहती कि उसे कुछ करने की जरूरत क्या है. वो जो मांगेगी हाजिर हो जाएगा. यह फैसला लेकर जयंती ने बता दिया है कि बेटियां भले ही पापा के दिल का टुकड़ा हों मगर अपनी पहचान खुद बना सकती हैं.
बिसलेरी को ऊंचे मुकाम तक पहुंचाने का श्रेय
जिस तरह 24 साल की उम्र से जयंती, बिसलेरी के लिए काम कर रही हैं, कड़ी मेहनत कर रही हैं यह कहना गलता होगा कि उनकी रुचि बिसलेरी में नहीं है. या फिर वे काम नहीं करना चाहती हैं. ऐसा तो नहीं है कि वे कायर हैं औऱ काम करने के डर की वजह से घर में बैठ रही हैं. बिसलेरी के बिकने के बाद वो काम करना नहीं छोड़ने वाली हैं. हां क्षेत्र भले बदल जाए मगर मुकाम तो वही रहेगा. भूलिए मत कि जंयती ने दिल्ली औऱ फिर बाद में मुंबई ऑफिस का काम संभाला. उनकी मौजूदगी ने कंपनी को नई उंचाई दी है. जब से वे प्रॉडक्ट डेवलपमेंट, मार्केटिंग, ऐड, प्रोडक्ट्स के ऑपरेशन, कम्यूनिकेशन, ब्रांड मैनेजमेंट और डिजिटल मार्केटिंग का काम देख रही हैं, कंपनी का ग्रोथ पहले से अधिक ही हुआ है. ऐसा तो नहीं है ना कि वे काबिल नहीं है औऱ उनके काम करने के बाद कंपनी में घाटे में गई है. बिसलेरी के अलावा जयंती कई औऱ प्रोडक्ट्स के ऑपरेशन की जिम्मेदारी बखूबी संभाल रही हैं. इसलिए उनकी काबिलियत पर शक नहीं किया जा सकता है.
साहसिक सौदे को अंजाम देने का दम
हमारे हिसाब से जंयती एक सफल बिजनेस वुमन हैं और आगे भी रहेंगी. उन्होंने बड़ी ही समझदारी के साथ बिसलेरी छोड़ना मैच्योर फैसला लिया है. सामान्य भाषा में इसे बिजनेस के गुण कहते हैं. जिस पर वे खरी उतरी हैं. लोगों को लग रहा होगा कि कैसी बेवकूप लड़की है? उन्हें सोचना चाहिए कि जयंती ने बिसलेरी का बिजनेस छोड़ा है अपनी संपत्ति पर अधिकार नहीं छोड़ा है. बिसलेरी के बिकने से उन्हें नए बिजनेस के लिए पैसै भी मिल जाएंगे और उनका नाम भी कैश हो जाएगा. लोगों की नजरें जयंती के हर मूवमेंट पर होंगी. हो सकता है कि वे जल्द ही फैशन से संबंधित अपना कोई नया बिजनेस शुरु कर दें. लोगों को लगेगा कि पिता को बना बनाया बिजनेस छोड़कर बेटी ने अपना खुद का कुछ शुरु किया. नया बिजनेस जयंती के नाम से जाना जाएगा, ना कि उनके पापा के नाम से. ऐसा नहीं है कि बिसलेरी इसलिए बिक रही है क्योंकि उनके पास कोई उत्तारिधिकारी नहीं है. जयंती में इतना दम है कि वे इसे अच्छे से चला सकती हैं. मगर उनकी मंजिल कहीं औऱ है. हमारे हिसाब से यह एक मैच्योर बिजनेस आइडिया है.
परंपराओं को नई दिशा देने का हौंसला
अब तक यही होता है कि पिता के बिजनेस को बच्चे संभाल रहे हैं. एक बात पूछनी थी क्या जंयती की जगह पर कोई बेटा होता क्या तो भी ऐसी ही बातें होतीं? उसका मन किसी अलग क्षेत्र में करियर बनाने का होता तो वह भी यही करता तो जयंती कर रही हैं. ऐसे में जंयती के फैसले पर सवाल खड़े करना गलत है. उन्होंने तो एक उदाहरण पेश किया है कि बिजनेस को चलाने के लिए खानदानी बच्चों के अलावा किसी तीसरे की जरूरत भी पड़ सकती है. जंयती ने परंपरा से हटकर काम किया है. वे चाहती तो आराम से बिसलेरी की मालकिन बन सकती थीं मगर उन्होंने 30 साल पुरानी कंपनी को छोड़कर अपना रास्ता बदल लिया और दूसरों को मौका दिया.
जयंती की काबिलियत पर शक नहीं किया जा सकता है
हमें जयंती जैसी दिमागी लड़की के फैसले को खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए. वे कोई बेवकूफ नहीं है. उन पर भरोसा रखिए जो बिसलेरी संभाल सकती है वह ऐसे ही नादानी में इस तरह का फैसला नहीं लेगी. जरूर उसने अपना बिजनेस दिमाग लगाया है. समय आने पर सभी को पता लग ही जाएगा. यह एक साहसी कदम है जिसकी तारीफ तो बनती है...भला अपनी पहचान बनाने में बुराई ही क्या है? जिंदगी एक बार मिलती है तो क्यों ना इसे अपने हिसाब से जिया जाए, अपनी शर्तों पर आखिर जीने का मजा ही कुछ औऱ होता है. मैं तो कहूंगी कि जयंती बनने के लिए हिम्मत चाहिए...
आपकी राय