2014 चुनाव में जो रोल 'दाल' ने निभाया था वो 2019 में 'पेट्रोल' निभाएगा?
ये रिपोर्ट है वर्ल्ड बैंक की अप्रैल कमोडिटी मार्केट आउटलुक रिपोर्ट जिसमें कच्चे तेल की कीमतें 2018 में 65 डॉलर प्रति बैरल तक रहने की बात कही गई है जो 2017 से 22% ऊपर है जो 53 डॉलर प्रति बैरल थी.
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भारत के कई शहरों में पेट्रोल 80 रु. के ऊपर बिक रहा है. बड़ी खबर ये है कि डीजल की कीमतें भी इससे ज्यादा पीछे नहीं हैं. जो दीगर चीजों की महंगाई को भी प्रभावित करता है. तो सवाल यह है कि आखिर पेट्रोल कीमतों में बढ़ोत्तरी देश को किस दिशा में ले जाएगा? महंगाई और पॉलिटिक्स, दोनों मामलों में.
दरअसल, वर्ल्ड बैंक ने रिपोर्ट दी है कि ईंधन कीमतों में वैश्विक स्तर पर 20% तक इजाफा हो सकता है. ये Opec और रूस के प्रोडक्शन कम होने और ईंधन की मांग बढ़ने के कारण है. इसी के साथ, कुकिंग गैस, डीजल आदि भी बढ़ जाएगा.
ये यकीनन भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है जिसकी क्रूड ऑयल की मांग 80% विदेश पर निर्भर है. ब्रेंट (BRENT- एक तरह का स्वीट लाइट क्रूड ऑयल जो सबसे ज्यादा इम्पोर्ट किया जाता है.) 74 डॉलर प्रति बैरल चल रहा है और भारत में ब्रेंट लगभग 28% जरूरत पूरी करता है.
सरकार के अनुमान के हिसाब से तेल आयात 20% तक बढ़ सकता है. 2017-18 में ये 88 बिलियन डॉलर था और 2018-19 में इसके 105 बिलियन डॉलर हो सकता है. इसे कुछ-कुछ वैसा ही समझिए कि 20% आयात बढ़ेगा और 20% कीमत भी. पर इसका सीधा असर इस कदर आम आदमी पर पड़ेगा ये भी गलत है और 100 रुपए प्रति लीटर होने की बात.. ये भी सही नहीं.
अब एक बार फिर कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूती का रुख कर रहा है. और भारत में पहले से ही पेट्रोल के दाम बढ़े हुए हैं, अब लोग कह रहे हैं कि पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर हो सकता है.. तो क्या वाकई?
पेट्रोल कीमतें और सरकार का फायदा...
केंद्र सरकार की तरफ से एक्साइज ड्यूटी पेट्रोल और डीजल पर लगाई जाती है. ये सभी को पता है. PPAC (पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल) के अनुसार 2014 से ये ड्यूटी 54 प्रतिशत तक बढ़ा दी गई है. डीलर की कमीशन भी 73 प्रतिशत तक बढ़ गई है. (इसे ज्यादा न समझिए 73% बढ़ने के बाद भी ये 3-5 रुपए के बीच ही है)
खैर, डीजल में ये एक्साइज ड्यूटी 154 प्रतिशत तक बढ़ गई है. वैट 48 प्रतिशत और डीलर की कमीशन 73 प्रतिशत बढ़ गई है. ये 2014 से लेकर अभी तक 12 बार बढ़ाई गई है.
डीलर कमीशन लगाकर भी बिना एक्साइज ड्यूटी के पेट्रोल की कीमत कुछ 33 - 35 रुपए के आस-पास होगी. (इस कीमत में कोई टैक्स नहीं लगा है इसपर वैट लगाया जाता है और एक्साइज ड्यूटी भी जो पेट्रोल के दाम को इतना महंगा कर देती है.)
अब सवाल यह है कि जब हमने अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत पर ही देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत निर्धारित करने का फैसला किया है तो फिर क्यों इसके पहले जब भी कच्चे तेल की कीमतें कम हुईं हैं तब पेट्रोल के दाम भारत में कम नहीं किए गए? इसका सीधा सा कारण वो रिजर्व है जो सरकार पेट्रोल की एक्साइज ड्यूटी के नाम पर वसूलती है. जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम कम होते हैं तो सरकार उनके हिसाब से एक्साइज ड्यूटी कम नहीं करती. इसका सीधा उदाहरण 2015-16 के समय देखने को मिला था जब कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल का आंकड़ा क्रॉस कर गया था और उसके बाद धड़ाम से गिरकर 50 डॉलर पर आ गया था. न तो 100 डॉलर के समय दाम इतने बढ़े थे कि हालात बेकाबू हो जाए और न ही 50 डॉलर के समय दाम ऐसे कम किए गए थे.
एक्साइज ड्यूटी की मदद से सरकार सिर्फ अपने खजाने नहीं भरती बल्कि इससे देश का कर्ज भी चुकाया जाता है और एक रिजर्व बनाया जाता है जिससे अगर दाम बहुत बढ़ गए तो उसे काबू में ला सके.
कच्चा तेल फिर चढ़ा तो क्या सब्सिडी देगी सरकार?
ये तो सीधी सी बात है कि पेट्रोल के दाम इतने नहीं बढ़ सकते जितने का अनुमान लगाया जा रहा है. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं.
1. पहली बात तो ये कि इसके पहले जितने साल पेट्रोल की कीमतें कम थीं उस समय भी पेट्रोल बहुत कम नहीं हुआ, वो रिजर्व इस समय कुछ हद तक काम आ सकता है.
2. दूसरी बात ये कि पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट में भी इजाफा होगा, अगर हर चीज के ट्रांसपोर्ट में इजाफा हुआ तो महंगाई बढ़ेगी और इससे समस्या और बढ़ ही जाएगी. सरकार इतने हालात खराब होने दे ऐसा भी नहीं हो सकता.
3. तीसरी और सबसे अहम बात ये है कि 2019 का चुनाव नजदीक है और इस समय मोदी सरकार हारना नहीं चाहती. महंगाई पर नियंत्रण करना उनके लिए जरूरी है.
तो क्या 2014 की दाल और 2019 का पेट्रोल एक जैसा है?
2013, 2014 और 2015 के समय दाल के दाम बहुत बढ़ गए थे. इसकी शुरुआत कांग्रेस के शासन काल से ही हो गई थी और कांग्रेस को दाल के कारण बहुत मुश्किल हुई थी. एक रिपोर्ट भी सामने आई थी जिसमें 2004 से 2013 के बीच खाद्य पदार्थों के दाम 157% बढ़ने की बात कही गई थी और ये कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल साबित हुई थी. लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता. कारण फिर वही है कि सरकार ऐसा होने नहीं देगी. खाद्य पदार्थों के दाम काफी हद तक सरकार के हाथ में नहीं होते हैं, लेकिन पेट्रोल की बात करें तो सरकार कभी भी उसकी एक्साइज ड्यूटी कम कर सकती है. ये उस प्याज की तरह नहीं हो सकता जो सरकार एक बार में गिरा दे. हां, अगर पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं तो इससे सरकार के बजट पर यकीनन असर पड़ेगा और इससे कुछ हद तक कीमतें बढ़ने की संभावना है क्योंकि एक्साइज कम करने पर रेवेन्यू भी कम हो जाएगा, लेकिन पेट्रोल 100 रुपए करना न तो सरकार चाहेगी और न ही लोग.
तो कुल मिलाकर जो लोग ये कह रहे हैं कि 100 रुपए पेट्रोल हो सकता है उन्हें एक बार थोड़ा सोचना चाहिए कि सरकार लोगों के साथ-साथ अपना नुकसान भी नहीं होने देगी. कम से कम हिस्ट्री तो यही कहती है.
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