व्यंग्य: स्वर्ग और नर्क के रास्ते के बीच जब मिले कलाम और याकूब...
यह लेख काल्पनिक है और इसका इरादा किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है. मैं यहां लिखे किसी भी शब्द को गंभीरता से नहीं ले रहा और आपसे भी ऐसी ही उम्मीद करता हूं.
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एपीजे अब्दुल कलाम एक स्पेशल एयरपोर्ट की लाउंज में बैठ कर अपनी अगली फ्लाइट का इंतजार कर रहे हैं जो उनके कर्मों को देखते हुए उन्हें यहां से स्वर्ग या नर्क में ले जाएगी.
कलाम को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. क्योंकि जो बड़ा एयरबस स्वर्ग जाने वाला है फिलहाल उसके एकमात्र पैसेंजर केवल कलाम ही हैं. एयरपोर्ट के अधिकारी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि यह जहाज कम से कम दस फीसदी भी भर जाए, फिर उड़ान की इजाजत दी जाए. इस इंतजार में कलाम का इंतजार भी लंबा हो रहा है.
इसी बीच 30 जुलाई को सुबह करीब आठ बजे, याकूब मेमन भी एयरपोर्ट में दाखिल होता है. उसे भी इंतजार करना पड़ रहा है क्योंकि नर्क में जानी वाली फ्लाइट खचाखच भरी हुई है. इंतजार के दौरान याकूब की नजर कलाम पर पड़ती है. वह दौड़कर उनके पास पहुंच जाता है. याकूब की आंखें गुस्से से लाल हैं.
कलाम के पास पहुंचते ही याकूब उनसे कहता है, 'मुझे एक बात बताइए, भारत पक्षपात क्यों करता है?'
कलाम ने तत्काल जवाब दिया, 'तुम ऐसा कैसे कह सकते हो. देखो, भारत ने मुझे क्या दिया. मैं जिस पृष्ठभूमि से आता हूं, वहां से तो मैं राष्ट्रपति बनने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकता था. तुम देखो कि मेरे निधन के बाद किस तरह पूरा भारत रो रहा है.'
याकूब- 'हां, देख रहा हूं लेकिन इसी देश ने तो मुझे मार डाला.'
कलाम- 'ऐसा इसलिए, क्योंकि तुमने बम लगाए और इससे 257 लोगों की जान चली गई.'
चिढ़ कर याकूब ने जवाब दिया, 'लेकिन आपने भी तो कई बड़े बम बनाए जिससे लाखों लोगों को मारा जा सकता है. फिर आपका इतना मान-सम्मान क्यों?'
याकूब के इस सवाल ने कलाम को झकझोर दिया और कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने जवाब दिया, देखो याकूब, 'मैं मानता हूं कि मैंने बम बनाए. लेकिन वह हमारे देश की सुरक्षा के लिए था. जबकि तुमने दुश्मनों से हाथ मिलाए और अपने ही लोगों को मारने का काम किया. तुमने नियमों को भी तोड़ा. तुम एक चार्टेड एकाउंटेंट हो, इसलिए बम बनाने से तुम्हारा कोई वास्ता ही नहीं होना चाहिए था.'
इस बीच अचानक एक आवाज आई, 'चुप रहिए.' यह मुल्ला उमर के भूत की आवाज थी. वह किसी को नजर नहीं आया लेकिन उसने बोलना जारी रखा.
'मेमन ने दुश्मनों से हाथ नहीं मिलाया. वह अल्लाह का नेक सिपाही है जिसने काफिरों के खिलाफ जंग छेड़ी. उसे फांसी दी गई क्योंकि वह एक मुसलमान है. वैसे, मैं मुल्ला उमर हूं और हर दो साल में मेरी मौत होती है.'
इस आवाज को सुनकर मेमन बहुत खुश नहीं हुआ. यह आवाज किधर से आ रही है, इसका पता लगाने के लिए वह इधर-उधर देखने लगा.
इसके बाद रोते-रोते याकूब बोलने लगा, 'मैं तुम जैसे लोगों की असलियत जान चुका हूं. पाकिस्तान में कुछ दिन रहने के बाद मुझे पता चला कि भारत उसके मुकाबले कितना अच्छा है. यही कारण है कि मैंने भारत लौटने का फैसला किया. तुम जैसे लोगों के कारण मुझे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.'
इस बीच कलाम साहब ने मेमन के कंधे पर हाथ रखा और दिलासा देने की कोशिश करते हुए कहने लगे, 'मैं जानता हूं कि जांच एजेंसियों ने तुम्हें लेकर थोड़ा कड़ा रूख अपनाया. अगर मैं राष्ट्रपति होता तुम्हारी दया याचिका को स्वीकार कर लेता.'
याकूब- 'तो फिर आप दोबारा राष्ट्रपति क्यों नहीं बने?'
कलाम ने अपनी निराशा जताते हुए कहा - 'तुम जानते हो कि सोनिया गांधी मुझे दोबारा राष्ट्रपति भवन में नहीं देखना चाहती थीं. वह प्रतिभा पाटिल की पाकशाला के कौशल से ज्यादा प्रभावित थीं. मुझे तो केवल बम बनाना आता था.'
मुल्ला उमर की आवाज फिर सुनाई दी, 'यह ईसाई मजहब मानने वालों की साजिश है. उन्हें पता था कि आप एक मु्स्लिम को क्षमादान देंगे. इटली की उस महिला ने मुस्लिमों के खिलाफ जंग छेड़ रखी है और अपने मिशन के फंड के लिए अमेरिका जाती रहती है. चलो, अमेरिका पर बम फेंकते हैं.'
इतना सुनना था कि हमेशा मुस्कुराने वाले और अहिंसा की सोच रखने वाले कलाम साहब अपना आपा खो बैठे, और जिस दिशा से आवाज आ रही थी, उस ओर अपना जूता दे मारा.
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