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Updated: 04 जनवरी, 2022 04:34 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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80 के दशक के आखिरी साल में दूरदर्शन पर एक नाटक 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' ने खूब चर्चा बटोरी थी. 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस सीरियल का नाम अब एक मुहावरा या कहावत के तौर पर इस्तेमाल होने लगा है. सपनों की बात की है, तो याद आया कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियां जोरों पर हैं. और, हर राजनीतिक दल के बड़े से बड़े नेताओं से लेकर पार्टियों के आम कार्यकर्ता तक हर कोई सत्ता में आने के ख्वाब देख रहा है. वैसे, ये हंसने वाली बात बिल्कुल भी नहीं है कि जो सियासी पार्टियां यूपी चुनाव में हाशिये पर मानी जा रही हैं, वो भी सत्ता में आने का सपने संजो रही हैं. और, सपनों की इस मायावी नगरी में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का सपना सुर्खियों में आ गया है. चर्चा में आता भी क्यों नहीं, आखिर भाजपा के नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं के सामने अखिलेश यादव ही तो हैं, जो कड़ी टक्कर पेश कर रहे हैं. और, इसे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता सपना नहीं हकीकत भी बता रहे हैं. क्योंकि, उनका मानना है कि 'अखिलेश आ रहे हैं'.

Akhilesh Yadav Krishna UP Elections 2022यूपी चुनाव 2022 सिर पर हों, तो ऐसे सपने आना लाजिमी है.

बात ये है कि अखिलेश यादव ने दावा किया है कि भगवान कृष्ण रोज उनके सपने में आते हैं और समाजवादी पार्टी की सरकार बनने की बात करते हैं, जो राम राज्य लाएगी. अब अखिलेश यादव के कान में भगवान श्रीकृष्ण ने 'राम राज्य' लाने की बात कही है, तो सवाल उठ रहा है कि इसके लिए समाजवादी पार्टी के नेता को ही क्यों चुना गया? तो, इसका जवाब बहुत मुश्किल नजर नहीं आता है. यूपी चुनाव 2022 सिर पर हों, तो ऐसे सपने आना लाजिमी है. और, सपना देखना बुरी बात नहीं होती है. तो, अखिलेश यादव के इस सपने पर भी प्रश्न खड़े नहीं किए जा सकते हैं. दरअसल, यूपी चुनाव 2022 को लेकर हो रही माथापच्ची में इस तरह के सपने सभी को आ रहे हैं. क्योंकि, तमाम राजनीतिक पंडित भी बता नहीं पा रहे हैं कि इस बार कौन आ रहे हैं? सियासी दबाव लोगों पर इस कदर बढ़ गया है कि दिमाग में मुन्ना भाई के साथ हुए केमिकल लोचे की तरह कुछ गड़बड़ होने की आशंका बढ़ गई है. अब पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना की तुलना महात्मा गांधी से करना किसी केमिकल लोचे के कारण संभव होता नजर नहीं आता है.

खैर, यूपी विधानसभा चुनाव का असर मुझ पर भी गहरा पड़ा है. रात को सोते समय भी दिमाग में सियासी गुणा-गणित के कठिन सवालों का हल निकालने की कोशिश चलती ही रहती है. तो, जैसा सपना अखिलेश यादव को आया था. उससे मिलता-जुलता एक सपना मुझे भी आया था. लेकिन, मेरे वाले सपने में भगवान श्रीकृष्ण या भगवान राम नहीं आए थे. इसे मुन्ना भाई वाला केमिकल लोचा ही मान लेना सही होगा. घटाटोप अंधेरे में से कहीं से एक आवाज आ रही थी कि अखिलेश यादव के कान में श्रीकृष्ण ने 'राम राज्य' लाने को क्यों कहा? फिर वही आवाज इस जटिल प्रश्न का उत्तर भी दे रही थी कि यूपी चुनाव 2022 की तारीख घोषित होने वाली हो और आरएलडी नेता जयंत चौधरी के साथ एक रैली के बाद दूसरी रैली का जुगाड़ सेट नही हो पा रहा हो, तो इस तरह के सपने आना लाजिमी है. माफियाओं के खिलाफ भाजपा और योगी आदित्यनाथ को घेरने की रणनीति कामयाब होती दिख रही हो. लेकिन, गठबंधन के साथी ओमप्रकाश राजभर जेल में जाकर मुख्तार अंसारी से मुलाकात करें, तो सपने आना जरूरी हो जाता है. 

अंधेरे को चीरती हुई आवाज लगातार कह रही थी कि सपने देखना गलत नहीं है, तो उनको पूरा करने के लिए हरसंभव कोशिश की ही जा सकती है. मोहम्मद अली जिन्ना के चक्कर में पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है. जैसे-तैसे मामला काबू में आया है, तो मौके का भरपूर फायदा उठाना जरूरी है. भाजपा के तरकश में जिन्ना और अब्बाजान जैसे सियासी तीर पहले से ही हैं. इनकी काट परशुराम के 'फरसे' के पास है, तो इस सियासी हथियार को साधना बहुत जरूरी है. परशुराम की मूर्ति के उद्घाटन और हाथ में फरसे को लेकर सोशल मीडिया पर फोटो डालने से माहौल बन ही जाएगा. भाजपा ने 'मथुरा की तैयारी है' की बात छेड़कर यादव वोटों पर भी हक जताना शुरू कर दिया है. इससे बचने के लिए श्रीकृष्ण का चक्र हाथों में उठाना भी जरूरी हो गया है. योगी आदित्यनाथ अगर मथुरा से चुनाव लड़ेंगे, तो मुश्किल बढ़ सकती है. लेकिन, कोई बात नहीं इसका भी कोई रास्ता निकाल लिया जाएगा. 'हम होंगे कामयाब' वाला गीत ऐसे समय में संबल देगा.

आवाज का बोलना जारी था कि यूपी चुनाव 2022 के सियासी समीकरण इतनी आसानी से समझ में आने वाले नही हैं. अभी तो जिन्ना से शुरू होकर परशुराम, कृष्ण से होते हुए केवल राम राज्य की बातें आई हैं. अगर 2024 में भव्य राम मंदिर बनने पर परिवार सहित दर्शन करने आने की बात बदलने की जरूरत पड़ी, तो उसमें भी करेक्शन कर दिया जाएगा. आखिर रामलला के दर्शन किए बिना राम राज्य की स्थापना करने की बात कहना बेमानी नजर आ सकता है. आखिर अरविंद केजरीवाल भी तो नानी वाली बात कहने के बावजूद रामलला के दर्शन कर चुके हैं. सबको साधना है. सारे समीकरण फिट बैठाने हैं. अगर एक हिस्सा भी कमजोर रह गया, तो ताश के पत्तों से बनाया गया पूरा महल भरभरा कर ढह जाएगा. और, इतना सब कहने के बाद अचानक ही वो आवाज आना बंद हो गई. अंधेरे में ये बातें कौन कर रहा था, देखने के लिए आंखें खोली, तो सुबह हो चुकी थी. इस बीच सुना है कि अखिलेश यादव अब अयोध्या में रामलला के दर्शन करने का मन भी बना रहे हैं. क्योंकि, 9 जनवरी को पीएम नरेंद्र मोदी लखनऊ में होंगे और अखिलेश यादव अयोध्या में.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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