बैंक वालों तुम्हारी हड़ताल में देश तुम्हारे साथ होता, मोदी 'हाय-हाय' करता लेकिन...
प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में नौ यूनियनों के कंबाइंड संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंकिंग यूनियन ने दो दिनों की राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल का ऐलान किया है. इस मुश्किल वक़्त में देश का आम आदमी बैंक वालों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहता है. नरेंद्र मोदी हां-हाय के नारे लगाना चाहता है मगर ऐसा नहीं हो पाया है और इसका कारण बैंक और उसके कर्मचारी हैं.
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हिंदुस्तान जैसे देश में सरकार विरोध का फंडा बड़ा सिंपल है. जब कुछ न समझ में आए तो 'हड़ताल' का नाम देकर काम धाम बंद कर दो. सरकार बहादुर ने मांगे मान ली तो 'वेरी गुड' अन्यथा हड़ताल के बाद वाले घंटे परिवार विशेषकर पत्नी या प्रेमिका के होते हैं. जिसमें वो आदमी जो दिन में हड़ताल के नाम पर क्रांति करके आया है वो शाम को या तो चाट वाले की दुकान पर खड़ा बीवी प्रेमिका को गोल गप्पे खाते देखता है या फिर इनके लिए ये सोचकर समोसे तलवा रहा होता है कि बड़े दिन बाद आज बीवी / प्रेमिका/ परिवार संग ढंग की 4 बातें होंगी. ध्यान रहे प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में नौ यूनियनों के कंबाइंड संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंकिंग यूनियन ने दो दिनों की राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल का ऐलान किया था. पहले सैटरडे संडे फिर मंडे ट्यूजडे कर्मचारी संगठनों की हड़ताल से पूरे देश में बैकिंग सेवाएं ठीक ठाक रूप में प्रभावित हुई हैं. इस हड़ताल ने आम लोगों को कितना प्रभावित किया है इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि इससे जमा और निकासी, चेक क्लीयरेंस और ऋण स्वीकृति जैसी सेवाएं भी प्रभावित हुई हैं.
बैंक की हड़ताल से एक बार फिर आम आदमियों को बड़ी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है
बैंक में क्या जनरल मैनेजर क्या पीओ और क्लर्क एवं गेट पर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड सब मोदी सरकार के इस 'प्राइवेट' वाले फैसले से खासे आहत हैं. हड़ताल के मद्देनजर यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंकिंग यूनियन ने एक बयान जारी किया है. बयान में जलते तवे की आंच पर बैठकर दावा किया है कि बैंकों के लगभग 10 लाख कर्मचारी और अधिकारी हड़ताल में भाग लेंगे. अच्छा मामले में दिलचस्प बात ये रही कि अभी हड़ताल शुरू भी नहीं हुई थी कि देश के महानतम बैंकों में शुमार भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) सहित कई सरकारी बैंकों ने अपने ग्राहकों को अलर्ट जारी किया. ग्राहकों से कहा गया है कि देखो गुरु अगर हड़ताल होती है, तो उनका सामान्य कामकाज शाखाओं और कार्यालयों में प्रभावित हो सकता है.
ज्ञात हो कि अभी गुजरे महीने पेश किए गए केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकार के विनिवेश कार्यक्रम के तहत अगले वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी. बात तो सही है बैंक वाले आंटी अंकल और गार्ड भइया कि नहीं होना चाहिए प्राइवेटाइजेशन. वाक़ई ये गलत बात है. मोदी सरकार को ऐसी तानाशाही करने का कोई हक नहीं है.
10 lakh Bank Officials & Staff are on a Two Day Nationwide Strike against privatisation of public sector banks & retrograde banking reforms.We stand in solidarity with this strike called by United Forum of Bank Union against ill placed priorities of Modi Govt.Our Statement -: pic.twitter.com/oWdZZ2Iz5P
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) March 15, 2021
शुरुआत में जब हमने भी ये बैंक हड़ताल वाली बात सुनी तो हमारा भी मन हुआ कि हम भी क्रांति की आग में मिट्टी का तेल छिड़कते हुए इन सरकारी बैंक वाले भइया, दीदी, अंटी, अंकल और गार्ड भइया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हों और बोलें 'मोदी सरकार हाय हाय' लेकिन भाई साहब दुनिया में व्यक्ति कोई भी हो दिन सबका आता है आज हमारा है. हम कैसे भूलें वो दिन जब सरकारी बैंक जाकर एक चेक जमा करना हमारे लिए मंगल पर पानी तलाशने जैसा था. खुद कल्पना कीजिये किसी सरकारी बैंक जाने की. जैसा रवैया बैंक में टेबल के उस तरफ बैठे लोगों का होता है लगता है अपनी सेवाएं देकर वो देश की जनता पर एहसान कर रहे हैं.
Privatization of a sick bank will not attract investors. So, this government cares of investors, Neither the Bank nor the Public. That's why strike is needed.#StrikeToSaveIndia pic.twitter.com/KgaO5MnK1K
— महाप्रबंधक (@mahaprabandhak) March 14, 2021
बात एकदम क्लियर और टू द पॉइंट है. आदमी सुबह सुबह बैंक पहुंचकर अपना काम करे ले तो फिर भी ठीक है वरना अगर आदमी दोपहर में पहुंच जाए तो लंच चलता है और ये तब तक चलता है जब तक इंसान बुरी तरह से खिन्न न हो जाए. हैरत तो तब होती है जब बैंक के कंप्यूटर पर बैठा कोई मुलाजिम ढूंढ ढूंढ के बैंक आए बंदे का नाम टाइप करता है इसी मुलाजिम का लंच टाइम पर कंप्यूटर चलाने का अंदाज विचलित करने वाला होता है जिस हिसाब से ये लोग कंप्यूटर पर गेम खेलते हैं महसूस होता है कि जैसे सारा का सारा कीबोर्ड इन्हें रटा हुआ है.
बैंक वालों को इस बात को समझना चाहिए कि वो व्यक्ति जो अपने काम के चलते बैंक आया है वो खलिहर नहीं है न ही उसे बैंक वाले एसी की हवा खाने का कोई शौक है. यदि इंसान बैंक आ रहा है तो अवश्य ही उसके पास वहां तक आने की कोई माकूल वजह होगी. ऐसे में उसे टोकन पकड़ा कर सीट में बैठने और अपनी बारी का इंतजार करने को कह दिया जाए तो बस दिल के अरमां आंसुओं में बह जाते हैं.
#BankStrike @alashshukla @AibocUP @SaranshSrv We need to acknowledge the fact that we lack public sympathy ,we need to speak out loud to make people understand why we are going for strike (despite taking wage cut). pic.twitter.com/HrgxLSJRD5
— Hitesh Tiwari (@hiteshone) March 14, 2021
अब इसे विडंबना कहें या कुछ और बैंक जाकर अपना काम करवाना थाने में मोबाइल चोरी की एफआईआर दर्ज कराने जैसा है. कभी इस टेबल कभी उस टेबल काम हुआ तो ठीक वरना दिन तो बर्बाद है ही और हां बैंक से आने के बाद आम आदमी कुछ इस हद तक थक जाता है कि फिर न तो वो पत्नी प्रेमिका को चाट के ठेले ले जाता है गोल गप्पे खिलाने न ही वो घर समोसे लाता है.
इंसानियत के नाते मन के किसी कोने में हमें बैंक वालों से सहानुभूति तो हो सकती है लेकिन चूंकि हमें प्राचीन काल से इन बैंक वालों से कुछ इस तरह प्रताड़ित किया है कि हम चाहकर भी इनकी मदद नहीं कर सकते. अगर इनकी मदद का सोच भी लें तो अंतर्मन से एक छवि निकलती है और कहती है कि 'तुम इनकी मदद करना चाहते हो ? भूल गए वो कतार वो इनका कंप्यूटर पर गेम खेलना.
बहरहाल बवाल प्राइवेटाइजेशन को लेकर है तो हम बस ये कहकर इस पूरी बतकही को विराम देंगे कि बैंक और उनके कर्मचारियों ने पुदीने की फसल लगाई थी अब आम की कल्पना करना व्यर्थ है. न ये ऐसे होते न यूं दिल आजारियां होतीं. बात बाकी ये है कि प्राइवेट होने से कर्मचारियों के अच्छे दिन आएंगे या नहीं इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है लेकिन हां बैंक के हालात अवश्य सुधरेंगे.
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