टुंडे' से टिंडे और भिंडी की तरफ लौटना ही मोक्ष के मार्ग की प्रथम सीढ़ी है
हम व्यक्ति के खानपान को लेकर बहस कर रहे हैं. खाना एक बेहद व्यक्तिगत विषय है. अतः व्यक्ति को जो खाना हो, जैसा खाना हो वो खाए. ध्यान रहे कि व्यक्ति की भोजन की आदत पर केवल उसका अधिकार है.
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बात पुरानी है और जंगलों से शुरू हुई थी. हार्डकोर नॉन वेज अंगुलिमाल टुंडे कबाब का शौक़ीन था. लूटपाट से जो भी कमाई होती, उसमें वो साथी डाकुओं को शेयर देता और फिर जो सेविंग बचती उससे टुंडे के कबाब खाता. अंगुलिमाल नॉनवेज, खासकर टुंडे कबाब का हद से ज्यादा दीवाना था. उसे सिर्फ कबाब खाते-खाते ये अनुभव हो गया था कि एक किलो के कीमे से कबाब बनाने के लिए उसमें कितना कच्चा पपीता डालना है और उसे कितनी देर मेरिनेट करना है.
लूट-घसोट, छीना-झपटी के बीच नॉन-वेज का शौकीन और परम फूडी अंगुलिमाल अपना जीवन जी रहा था, बस जिए जा रहा था.
मई की एक दोपहरिया में अंगुलिमाल को फिर एक बार टुंडे के कबाब खाने का मन हुआ. अंगुलिमाल को किसी भी सूरत में टुंडे कबाबी जाना था. पिछली वाली सारी सेविंग नया घोड़ा लेने में खर्च हो गयी तो जेब में पैसे न थे. उसने पैसों के लिए इस बार अकेले ही जंगल जाकर लूट पाट करने का प्लान बनाया. जंगल के बीचों बीच उसे कुछ हलचल सुनाई दी. झाड़ी से झांका तो सामने गेरुआ चोगे में एक आदमी चटाई बिछाए बैठा था. कपड़े लत्ते से वो आदमी सन्यासी मालूम हो रहा था.
डाकू ने संत आदमी को हड़काते हुए उसका नाम पूछा तो पता चला कि जो आदमी सामने बैठा है वो सिद्धार्थ है और भूख लगने के चलते जंगल के बीचों बीच कुछ खाने के लिए रुका है. अंगुलिमाल के आने के पहले तक सिद्धार्थ वहीं जंगल में चटाई बिछाए लंच कर रहे थे. सिद्धार्थ के पास मेथी का पराठा, नींबू का अचार और टिंडे, भिंडी की सब्ज़ियां थीं. सिद्धार्थ भले आदमी थे और अकेले लंच कर रहे थे. उन्होंने लंच के लिए अंगुलिमाल को भी आमंत्रित किया. अंगुलिमाल भी भूखा था उसने ये ऑफर सहर्ष स्वीकार कर लिया.
एक हार्डकोर फूडी होने के नाते और सिद्धार्थ की बिछाई उस चटाई पर बैठने के पहले तक, अंगुलिमाल पूर्णतः नॉन वेजिटेरियन था. वो साग सब्जी को घास फूस मानता था. उसे लगता था कि भला साग सब्जी भी कोई खाने की चीज है, ईश्वर ने इसका निर्माण केवल और केवल पशुओं का पेट भरने के लिए किया है. खैर भूख जो न कराए वो कम है. अंगुलिमाल, सिद्धार्थ के साथ चटाई पर बैठ चुका था. सिद्धार्थ भी बगल में लगे बरगद के सूखे पत्तों से दूसरी डिस्पोजेबल थाली का निर्माण कर चुके थे.
अतः उन्होंने एक अच्छे होस्ट का परिचय देते हुए एक-एक करके सारे खाद्य प्रदार्थ अंगुलिमाल की थाली में डाले. जब सिद्धार्थ ने सब कुछ परोस दिया तो फिर उन्होंने अंगुलिमाल को मेथी, नींबू, टिंडे और भिन्डी के मेडिकल/हेल्थ बेनिफिट बताने शुरू किये. जब सिद्धार्थ अंगुलिमाल को ये सब बता रहे थे तो उनके चेहरे पर एक अलग किस्म का तेज और मुस्कान थी. अंगुलिमाल ने इससे पहले न कभी ऐसा कुछ देखा था, न ही कभी उसने ऐसा कुछ सुना था. वो सिद्धार्थ को देख रहा था बस देखे जा रहा था.
हालांकि अंगुलिमाल ने अभी खाना शुरू नहीं किया था मगर जिस तरह सिद्धार्थ ने वर्णन किया था अंगुलिमाल उस वर्णन पर मोहित हो उठा. सिद्धार्थ के आग्रह पर जैसे ही उसने खाने का पहला कौर अपने मुंह में डाला वो भावुक हो गया और रोने लगा. खाना वाकई बहुत अच्छा था, इससे पहले उसने इतना अच्छा खाना कभी नहीं खाया था.
बहरहाल, अब ये तो ईश्वर ही जानें कि ये सिद्धार्थ के साथ का असर था या सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा के हाथों का कमाल, कि अंगुलिमाल खाने के स्वाद पर पर मंत्रमुग्ध हो चुका था. अंगुलिमाल का बस चलता तो शायद उस पल वो अपनी अंगुलियां तक खा जाता. अंगुलिमाल ने लगभग हर जगह का खाना खाया था. वो पुरानी दिल्ली में न जाने कितने मुर्गे उडा चुका था. लखनऊ और बरेली के न जाने कितने बकरों के स्वाद से अपनी जीभ का जायका सजा चुका था, मगर आज तो टिंडे और भिन्डी ने बस कमाल ही करके रख दिया. इन सब्जियों का स्वाद ऐसा था कि इनके आगे सभी नॉन वेजों का स्वाद फीका प्रतीत हो रहा था.
कह सकते हैं कि उस पल टिंडे और भिन्डी ने अंगुलिमाल की सम्पूर्ण जिंदगी बदल कर रख दी. खाना खत्म हो चुका था, खाने के जूठे पत्तल फेंक दिए गए थे. हैण्ड सेनेटाइजर से हाथ साफ कर लिया गया था. अंगुलिमाल ने सिद्धार्थ को अपना गुरु मान लिया था वो हाथ जोड़े उनके चरणों में बैठा था. वहीं उसी जंगल में, सिद्धार्थ के सामने नीम, पीपल, जामुन और बरगद के पेड़ों के बीच अंगुलिमाल ने प्रण किया कि अब वो जीवन में कभी भी नॉन वेज का सेवन नहीं करेगा और शाकाहार को अपनाएगा, लोगों को शाकाहार के फायदे बताएगा.
सिद्धार्थ अपने रास्ते जा चुके थे. अंगुलिमाल भी वापस अपने अड्डे पर लौट चुका था. अड्डे पर आने के बाद उसनें बहुत सोच विचार के बाद, साथी डाकुओं के संग मीटिंग की और उनसे कहा कि अब वो थक गया है, उम्र के इस पड़ाव में उसका शुगर बीपी और कॉलेस्ट्रोल बढ़ गया है. वो स्वेच्छा से 'वीआरएस' लेकर किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाना चाहता है. साथी डाकुओं को अंगुलिमाल की बड़ी परवाह थी साथ ही वो उसकी बड़ी इज्जत भी करते थे. साथ डाकुओं को अंगुलिमाल की बात सही लगी और बिना कुछ बोले उन्होंने उसकी बात मान ली.
अंगुलिमाल ने शहर छोड़ दिया और संत बन गया. वो जगह-जगह घूमकर लोगों को बताता कि वो स्वच्छ खाएं और स्वस्थ रहें. साथ ही उसने लोगों को अपनी कहानी भी बताई और समझाया कि 'टुंडे' से टिंडे और भिंडी की तरफ लौटना ही सच्चे निर्वाण और मोक्ष के मार्ग की प्रथम सीढ़ी है.
नोट- इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं और जिनका उद्देश्य केवल आपको हंसाना और मनोरंजन करना है. साथ ही ये लेख इसका भी पक्षधर नहीं है कि आप शाकाहारी या मांसाहारी बनें. खाना एक बेहद व्यक्तिगत विषय है. अतः आपको जो खाना हो, जैसा खाना हो वो खाइये. ध्यान रहे कि आपके भोजन की आदत पर किसी और का नहीं केवल आपका अधिकार है.
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