काला धन उतना भी बुरा नहीं है सरकार !
काला धन उतना ज्यादा नुकसानदेह नहीं है जितना माना जाता है, बल्कि काले धन से तो अर्थव्यवस्था को उड़ान मिलती है.
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तुम अगर मेरी नहीं हो सकतीं तो मैं तुम्हें किसी और का भी नहीं रहने दूंगा... ये डायलॉग 50 हजार बार हिंदी सनीमा में सुना होगा लेकिन काले धन पर सरकार के नोट बदलने का फैसला कुछ ऐसा ही लगता है.
2 दिनों में 52 हजार करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था की हानि हुई है |
एक आंकड़े के अनुसार इस कदम से सरकार के खाते में जितने रुपये आएंगे उससे कहीं अधिक की हानि अर्थव्यवस्था को दो दिन में हो चुकी है. दूसरी बात, काला धन उतना ज्यादा नुकसानदेह नहीं है जितना माना जाता है. इसके उलट काले धन से अर्थव्यवस्था को उड़ान मिलती है. शहरों में जो मॉल, बिल्डिंग प्रोजेक्ट, होटल्स, थिएटर, बड़े बड़े प्रोजेक्ट देखते हैं, वो कालेधन की ही देन हैं, जिनके निर्माण से श्रमिकों को सालों-साल रोजगार मिलता है और बनने के बाद पढ़ी लिखी आबादी को. जबकि दूसरी ओर मध्यम या उच्च वर्ग को अपने किये भुगतान के बदले सहूलियतें मिलती हैं. यानि पैसा गोल गोल समाज में घूमता है.
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सरकार को टैक्स की जरूरत क्यों है, टीवी चैनल, रेडियो स्टेशन, घटिया कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाने, फालतू के स्कूल, नेता और अधिकारियों के लाल बत्ती और उनके परिवारों की सेवा, मरियल अस्पताल चलाने के लिए, जर्जर पुल... यही सब में खर्च होता है. एक जमाने में तो ब्रेड बिस्किट भी सरकार बनाती थी. विशुद्ध रूप से टैक्स देश की सीमा की सुरक्षा के लिए लिया जाना चाहिए या आंतरिक सुरक्षा के लिए पुलिस प्रबंधन पर. हालांकि पुलिस का काम भी उन्नत तकनीक या दक्ष सिक्योरिटी एजेंसियों को दे देती.
अब नोटों को बदलने से सारा पैसा कबाड़ा हो गया है. धारक को फलाना रुपये देने का वचन भी झूठा हो गया है. सरकार के स्टॉक में जितना सोना है उसी अनुपात में नोट भी जारी होते हैं. अब उस अनुपात का क्या होगा क्योंकि कालेधन को जलाया नष्ट किया जा रहा है. मंशा पर सवाल नहीं है लेकिन जल्दबाजी में उठाया हुआ कदम जरूर कहुंगा. अंत में एक गाना भी याद आ रहा है अता उल्ला खान का, अर्ज़ है- अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का, यार ने ही लूट लिया घर यार का... आदाब अर्ज़ है.
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