व्यंग्य: ‘क्लाइमेट चेंज’ पर भारत मोहल्ले के दुबेजी जैसा
यह सारी कवायद दरअसल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफ्रीकी देशों का समर्थन लेने के लिए की जा रही है, न कि सौर ऊर्जा से उन्हें भारत के विशेष प्रेम के चलते.
-
Total Shares
प्रधानजी के पेरिस निकलते ही सारे चैनलों को अचानक याद आ गया है कि धरती गरम हो रही है और चार डिग्री तापमान बढ़ने पर तबाही आ जाएगी. सम्मेलन यानी COP-21 के पहले ही दिन प्रधानजी ने अफ्रीका समेत कर्क व मकर रेखा के बीच स्थित 100 देशों को एक सौर ऊर्जा गठजोड़ बनाने का न्योता दिया है और शायद उसका एलान भी पहले ही दिन हो जाएगा. हो सकता है इसका खूब हो-हल्लाम हो, लेकिन यह आपको कोई चैनल नहीं बताएगा कि यह सारी कवायद दरअसल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफ्रीकी देशों का समर्थन लेने के लिए की जा रही है, न कि सौर ऊर्जा से उन्हें भारत के विशेष प्रेम के चलते.
आपको कोई चैनल यह भी नहीं बताएगा कि पेरिस में क्योाटो संधि के विस्तार के तौर पर जिस नई संधि को अंजाम दिया जाना है, उस पर अमेरिका, चीन, कनाडा और ऑस्ट्रे लिया समेत भारत को भी दस्त खत करने में संकोच है. दरअसल, इस बार वार्ताओं में सारा ज़ोर Intended Nationally Determined Contributions (INDC) नाम की काग़ज़़ी कवायद पर रहेगा और संधि का सारा दारोमदार भी इन्हीं देशों पर होगा. भारत इस राह में अड़ंगा अटकाने को बेचैन है क्योंदकि उसे विश्वरशक्ति भी बनना है. याद करें, शुक्रवार को लोकसभा में बहस खत्मन होने के बाद सुमित्रा महाजन का पढ़ा हुआ संकल्पै- Strong Republic!
दरअसल, पर्यावरण जैसे मसलों पर एक देश के बतौर भारत का वही रुख़ है जो अपने मोहल्लेम के दुबेजी का है. दुबेजी के घर में तीन एसी हैं. उनके पास दो कारें हैं. इसके अलावा माइक्रोवेव ओवेन जैसे तमाम विकिरण वाले उपकरण तो हैं ही. दुबेजी कमेटी चलाते हैं और दूसरों को अमीर बनने का सपना दिखाकर अपना घर गरम रखते हैं. कभी-कभार वे चिटफंड और बीमा का कारोबार भी करते हैं. दुबेजी की सबसे बड़ी चिंता यह है कि किसी तरह वे चौबेजी बन जाएं. इसके लिए वे कभी भंडारा करवाते हैं, तो कभी निशुल्कं रक्तकदान कैंप लगवाते हैं. इस बार उन्होंभने पॉल्यूीशन चेक का शिविर लगवाया था. प्रधानजी की पेरिस यात्रा ऐसी ही है. बाकी, चैनलों की पर्यावरणीय बेचैनी को समझना सबसे आसान है. जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि...
आपकी राय