Coronavirus: संसार के मालिक अल्लाह से एक काफिर की गुहार
कोरोना वायरस लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown in India) के बीच निजामुद्दीन मरकज़ (Nizamuddin Markaz) से निकले तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) के हजारों सदस्य देश में महामारी फैलाने पर आमादा हैं. ताजा हालात की जानकारी उस अल्लाह तक पहुंचना जरूरी है, जिसकी बनाई दुनिया में ये सब चल रहा है.
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या अल्लाह!
एक नया अल्फाज आया है आपकी बनाई दुनिया में
मौत का दूसरा नाम, दुनिया दहशत से भर गई है
कानून-कायदों और अक्ल से, सबको बचाने में सब लगे
कोरोना कहते हैं उसे-
एक-एक पॉजिटिव मुल्कों की ताकत पर भारी है
मरकज के भीतर झांका तो सब हैं सन्नाटे में
यह अजाब लादकर बैठे वे हजार की तादाद में
खुद मरने पर आमादा, सबको मारने पर उतारू
बरबाद, बददिमाग, बदमाश, बेहूदे, बदतमीज, बेखौफ
फारसी कहावत है-बाअदब बानसीब, बेअदब बेनसीब
वे बेअदब हैं, बेनसीब हैं, दूसरों के नसीबों को पौंछने वाले
मस्जिद तो घर है आपका, जिंदगी का जज्बा जगाने की पाक जगह
वे नामुराद कहते हैं-मरने का बेहतरीन ठिकाना
अकेले नहीं, इकट्ठे सबके मरने का एक इंतजाम है मस्जिद
आपका घर तो जिंदगी की राहत होगा, मौत का ठिकाना कैसे
कैसी जिद है, हाथ मिलाने की, गले लगने की, इकट्ठे होने की
शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी, मुजीब माेहम्मद, मौलाना साद
बेहूदगी, बेशर्मी, बेअक्ली के ये नायाब नमूने
इनको बनाने वाला कारखाना कब बंद होगा अल्ला मियां…
या अल्लाह!
निजामुद्दीन मरकज के ये हजार बीमार
हजार बमों से ज्यादा हरेक जानलेवा हद तक खतरनाक
आपकी राह में मरने-मारने के जुनून से भरे, वे हमेशा से ऐेसे ही हैं मालिक
तलवार, तोप, बम और हवाई जहाजों की जरूरत अब किसे है
कोरोना जो है, कहते हैं अल्लाह का अजाब है काफिरों पर
या अल्लाह! हमारी तबाही का ऐसा इंतजाम, लेकिन क्यों
क्या यही अल्ला की राह है, जिसके लिए वे जिद ठाने हुए हैं
कहीं अकेले, कहीं जमात में, कहीं लाठी-पत्थर लेकर उमड़ी भीड़ में
शहर-शहर, अस्पताल-अस्पताल, देखो क्या है हाल-
वे थूक रहे हैं, गालियां हैं, बेपरदा हैं, सब शर्मसार हैं
तहजीब के तकाजे नहीं सीखे, मुसलमान कहलाने के पहले
इस अजाब को फैलाकर किसे क्या मिलेगा, मौत के सिवा
मरने-मारने के हुनर की तालीम इनको दी किसने अल्ला मियां…
या अल्लाह!
कुछ तो छिपा नहीं है आपसे, जो बताऊं
मगर आपको ही मुश्किल न बताऊं तो कहां जाऊं
किसी ने लिखा कि एक मुसलमान भी जानता है कि
गणेश किसके पुत्र थे, गंगा को किसने अपनी जटाओं में उतारा
हम कितना जानते हैं मुसलमान के बारे में, इस्लाम के बारे में
आप तो सारे आलम के रब हैं, आपको तो पता है,
बंदे ने दो बार कुरान पढ़ा, हमलावर जत्थों की तारीख को भी देखा बार-बार
पत्थरों से बात की है, जाने किन-किन वीरानों में जाकर
जो खंडित हों या साबुत मगर झूठ कभी नहीं बोलते,
वे इंसान तो नहीं हैं, मुसलमान तो कतई नहीं
हालात ऐसे हुए कि लगा दुनिया के मालिक से ही गुफ्तगू करूं, आपसे
मन की बात आपसे ही अपनी कहूं,
हमारे दरम्यां कोई परदा नहीं, कोई दीवार नहीं
न ऐसा कि मैं अलग, आप अलग
मुझमें ही आप हैं, मैं आपसे ही मुखातिब हूं, जैसे खुद से रूबरू
इस अजाब के वक्त भी कुछ न कहा तो कब कहूंगा अल्ला मियां...
कोरोनावायरस और तब्लीगी जमात के बीच अल्लाह से रहम की गुहार तो लगाई ही जा सकती है. (प्रतिनिधि फोटो)
या अल्लाह!
उनकी नजरों में काफिर हुए तो क्या, बंदे तो आपके हैं
क्या हमारी रगों में आप ही जिंदगी बनकर नहीं दौड़ रहे
जो जिंदगी दी तो डर कैसा, आप खौफ नहीं, हिम्मत देने वाले हो,
आप हमारी नेमत हो, नाश कभी नहीं,
आपकी ही शानदार कारीगरी है ये कायनात
जरा देखो धरती पर क्या चल रहा है, वो भी आपके नाम पर
ये अजाब तो अब आया है, आफतें पहले से बेहिसाब हैं
हर तरफ हैं, तरह-तरह की हैं और आपके नाम पर हैं
वे जो, बहुत चीखकर आपको पुकारते हैं, गौर से देखो-
तीखी तकरीरों में तूफान हैं, अमन कहां, मरहम कहां
जिंदगी देने वाले आप, मौत बांटने वाले वे,
राहत आपसे है, आहत उनसे हैं
ये इंसान हैं तो शैतान को भी सामने लाओ,
देखें, कौन ज्यादा डरावना
क्या इन्हीं के पास भेजा था अपने प्यारे रसूल को
क्या समझाने भेजा था, और ये बंददिमाग क्या समझकर निकले
क्या कहा था, क्या कर बैठे, क्या-क्या कर बैठे
इनके हाथों बदरंग होती दुनिया है, मिटते-मरते लोग हैं
औरतों की बेशुमार आहें, बच्चों की बेहिसाब कराहें
क्या आखिरत में इनसे इस बरबादी का हिसाब नहीं होगा अल्ला मियां…
या अल्लाह!
हमने सीरिया नहीं देखा, यमन नहीं गए, अफगानिस्तान भी नहीं
उनके हिस्से के आसमानों में आग, धुआं, राख क्यों है
ये हमले, कब्जे, खूनखराबा, मारकाट, कत्लेआम और धमाके
हिंदुस्तान तो कब से जख्मों को ही सहला रहा है
आपका ही शुक्र है कि मुल्क जिंदा है वर्ना कोई कसर नहीं छोड़ी
सब तरफ जुनून तारी है, आज इनकी, कल उनकी बारी है
खून से लथपथ सिंध से शुरू करो, सिंधु के आंंसू कहां सूखे हैं
जुनूनी जिहादी जत्थे आपका और प्यारे रसूल का ही नाम ले-लेकर आए
बरनी से पूछो, सिराज से पूछो, एसामी से पूछो,
बदायूनी और फिरिश्ता भी बताएं-
गुलाम, खिलजी, तुगलक, लोदी या मुगल,
तैमूर, नादिर, अब्दाली कैसे-कैसे उजड्ड
हिंदुस्तान की शान मिट्टी करने आए कि बढ़े अल्लाह की शान
बेकसूर औरतों के जौहर से उठा धुआं
आपकी आंखों में चुभा नहीं होगा
सदियों तक कटे सिरों की मीनारों ने सिर नहीं झुकाया होगा आपका
आप पर क्या गुजरी होगी मेरे अल्ला मियां…
या अल्लाह!
हजार साल कम नहीं होते सात आसमानों के मालिक
दस सदियों का लंबा तकलीफदेह फासला है ये
भारत पर इतने ही पुराने और इतने ही गहरे जख्म हैं
अल्लाहो-अकबर, अल्लाहो-अकबर, अल्लाहो-अकबर
गहरी खामोशियों में दिल के भीतर उठी खूबसूरत पुकार नहीं थी
वह जुनूनी भीड़ से फूटा एक भयानक शोर था
गली-गली से गूंजती डराने वाली हथियारबंद आवाजें
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