Bulbul का गम और परेशान हम !
Bulbul ने आपका क्या बिगाड़ा है? चक्रवात जैसी बदमाश टाइप आपदा को सांभा कहें, गब्बर कहें, भूत, हौआ, ठांय-ठांय कहें. नासपीटा कहें, घनचक्कर कहें. अजी, कोई भी खराब-सा नाम चुन लें, पर प्लीज Cyclone Bulbul न कहें. किसी प्यारे पक्षी को बदनामी का मुकुट पहनाना बिल्कुल अच्छी बात नहीं है.
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Cyclone Bulbul update के बीच एक बात मुझे आज तक समझ नहीं आई कि ये चक्रवात (Cyclone) वगैरह को identify करने के लिए जो नाम रखे जाते हैं, उसे तय कौन करता है? पंडित जी को बुलाकर नामकरण होता है या कि जो भी जी में आया बोल दिया!
मैं सुबह से बुलबुल चक्रवात (Cyclone Bulbul) का नाम सुनकर परेशान हूं. मतलब बुलबुल ने आपका क्या बिगाड़ा है? अच्छे-ख़ासे, प्यारे पक्षी को आप कुछ भी कह दें तो कैसे चलेगा भई! जहां तक चक्रवात की बात है तो उसमें आसमान से पुष्प वर्षा तो होती नहीं है न! तो आप ऐसी बदमाश टाइप आपदा को सांभा कहें, गब्बर कहें, भूत, हौआ, ठांय-ठांय कहें. अठैन कहें, नासपीटा कहें, घनचक्कर कहें. अजी, कोई भी खराब-सा नाम चुन लें, पर प्लीज बुलबुल न कहें. किसी प्यारे पक्षी को बदनामी का मुकुट पहनाना बिल्कुल अच्छी बात नहीं है. Bulbul का काम है गुनगुनाना. उसे हम सबकी बगिया में गुनगुनाते रहने दीजिये.
एक चक्रवात का नाम बुलबुल पर रखना थोड़ा अजीब लगता है
आज सुबह इसी बुलबुल को तार पर बैठे देखते ही मुझे चक्रवात याद आया. ये तो एकदम से बदतमीज़ी भरी एवं कोमल भावनाओं को बेमतलब आहत करने वाली बात हो गई है जी. आगे से ध्यान रखना मौसम विभाग जी, के नामकरण वाले पंडिज्जी! सोचो, आंधी का नाम बजरबट्टू होता और बाढ़ का खीर, तो कैसा लगता?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि cyclone के नाम नीलम, निशा, रश्मि, भोला भी रखे जा चुके हैं. हैलो, भोला का अर्थ पता तो है न आपको? cyclone भोला नहीं, बम का गोला होता है. अगर वो इतना ही भोला था तो इग्नोर मारते, देश से डिस्कस काहे किया!
आंधी/अंधड़ नाम सुनते ही आंखों के सामने उड़ते हुए टीनशेड, धड़ाम धुड़ुम की जोरदार आवाजें, इमारतों पर सहमे बैठे पक्षी और दौड़ दौड़कर सुबह की चमचमाती डस्टिंग को याद कर घर की सारी खिड़कियों को बंद करती, बड़बड़ाती स्त्री की तस्वीर तैर जाती है. आंधी हमारे सामने नुकसान के साथ-साथ धूल से सने चेहरे, रूखे-सूखे बाल और आंखों में किरकिरी से आंख मीड़ता मनुष्य भी छोड़ जाती है. तूफान (फिल्म नहीं) का तो मतलब ही है तबाही. इधर किसी ने नाम लिया और उधर तहस-नहस की तस्वीर दिखने लगती है. बाढ़ शब्द भी बहते सामान, डूबते गांव और नष्ट जीवन का खाका खींच देता है. सुनामी, विध्वंस का अट्टहास करता लगता है. ज्वालामुखी, हजारों डिग्री पर खदबदाते लावे की मुंह उगलती भयभीत कहानी कह देता है. ऐसे में शेक्सपीयर चचा की यह बात कि 'नाम में क्या रखा है!', अपन को ज़रा हज़म नहीं होती!
और हां, कृपया भूलियेगा मत Meteorological Department वाले सर जी/मैडम जी कि आज बुलबुल उदास है. ये वही बुलबुल है जिसके सामने उदास प्रेमियों ने टसुए भर-भर 'बुलबुल, मेरे बता क्या है मेरी खता' गाना गाकर आरारारूआरारारू किया है.
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