प्रदूषण को त्योहार मानकर बच्चे ने जो निबंध लिखा वो वायरल होना ही था
यूं तो दिल्ली के प्रदूषण ने सभी की नाक में दम रखा है मगर बच्चों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें छुट्टी से मतलब है और इस बढ़े हुए प्रदूषण के कारण उन्हें जमकर छुट्टी मिल रही है. उनका इस प्रदूषण को एन्जॉय करना लाजमी है.
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दिल्ली और एनसीआर परेशान हैं. जो सिगरेट पीते उनका तो ठीक था मगर जो नहीं पीते कहा जा रहा है जैसी हवा है दिल्ली की एक बार में सांस लेने पर नुकसान उतना ही हो रहा है जितना एक साथ या एक के बाद एक 25 सिगरेट पीने पर होता है. प्रदूषण ने पूरी दिल्ली और एनसीआर में त्राहिमाम मचा रखा है. दो तरह के लोग, एक वो जो अपनी सेहत के प्रति फिक्रमंद हैं मास्क लगाकर. दूसरे वो जो 'छोड़ो जाने दो' वाली थ्योरी पर काम करते हुए बिन मास्क के हमारे आस पास टहल रहे हैं. मामले को लेकर केंद्र, राज्य और सुप्रीम कोर्ट तीनों ही गंभीर हो रहे हैं. मामले में दिलचस्प बात ये भी है कि प्रदूषण के लिए राज्य, केंद्र सरकार विशेषकर पीएम मोदी और पंजाब और हरियाणा में जलने वाली पराली को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो वहीं केंद्र सारा ठीकरा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सिर पर फोड़ रहा है और कह रहा है कि केजरीवाल ने प्रदूषण को लेकर जो भी कदम उठाए वो आधे अधूरे थे. एक ऐसे वक़्त में जब प्रदूषण के कारण दिल्ली में रहना दूभर हो गया है. प्रदूषण के चलते सबसे ज्यादा खुश बच्चे हैं उन्हें स्कूल नहीं जाना पड़ रहा है. बच्चे मिली छुट्टी को बच्चे खूब एन्जॉय कर रहे हैं.
जैसा दिल्ली में प्रदूषण है अब आने वाले वक़्त में बच्चे स्कूलों में प्रदूषण पर निबंध लिखेंगे
बात प्रदूषण, छुट्टी और बच्चों की चल रही है तो हमें उस निबंध पर भी गौर कर लेना चाहिए जो सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रहा है. बातें होती रहेंगी मगर आइये पहले निबंध की कुछ पंक्तियां पढ़ लें. लिखा है कि, 'अब से प्रदूषण दिल्ली का प्रमुख त्योहार है. यह हमेशा दिवाली के बाद शुरू होता है. इसमें हमें दिवाली से भी ज्यादा छुट्टियां मिलती हैं. दिवाली में हमें 4 छुट्टी मिलती है पर प्रदूषण में हमें 6+2 = 8 छुट्टी मिलती है. इसमें लोग अलग अलग मास्क पहनकर घूमते हैं. घरों में काली मिर्च, शहद, अदरक ज्यादा प्रयोग दिए जाते हैं. या बच्चों के लिए प्रिय है.'
सही बात है जब जब प्रदूषण का परिणाम छुट्टी हो तो फिर कोई क्यों नहीं इसे एन्जॉय करेगा. बच्चे तो फिर भी बच्चे हैं और बुजुर्ग कह गए हैं बच्चे तो मन के सच्चे हैं. बच्चों के अलावा आज बड़े भले ही प्रदूषण को कोस रहे हों मगर इस बात को किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता कि उन्हें भी अपने लिए वक्त निकालने का पूरा मौका मिल गया है.
हालात कुछ यूं हैं कि ताज़ी हवा लेने पहुंचे दिल्ली वालों के चलते हिमाचल और उत्तराखंड की वादियां फुल हैं. वो तो हवा को जमा नहीं किया जा सकता वरना आज जैसे हालात हैं अपने दिल्ली एनसीआर के लोग जो वादियों में बिस्लरी /फ्रूटी की बोतल, बियर के केन और लेज / नमकीन के पैकेट फेंककर उसे दूषित करने के लिए मशहूर थे, न सिर्फ अपने बल्कि दूसरों का भी कूड़ा बटोरते और उसमें साफ़ स्वच्छ हवा भरकर दिल्ली लाते और कुछ दिन अच्छे दिन बिताते.
सच में जैसी परिस्थितियां और जैसी राजनीति है आने वाले वक़्त में प्रोब्लम दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ेगी. नेताओं का क्या है उनके घर तो एयर प्यूरीफायर लग जाएंगे मगर जनता. जनता का क्या ? मतलब जिस देश की जनता के पास पीने को साफ़ पानी न हो भला वो किस मुंह से एयर प्यूरीफायर लगाएगी ? किस दिमाग से उस दिशा में सोचेगी?
बच्चे नादान हैं तो क्या हुआ अगर वो इस तरह की चिट्ठी लिख रहे हैं तो हमें वाकई उनकी तारीफ करनी चाहिए. हमें उनकी तारीफ इसलिए भी करनी चाहिए क्योंकि नेगेटिव से पॉजिटिव निकालने में 56 इंची सीना नहीं बड़ा कलेजा चाहिए. छोटे छोटे बच्चों ने या ये कहें कि जिस किसी ने भी इस निबंध को लिखा. जिसने भी इसके बारे में सोचा उसको सौ तोपों की सलामी इसलिए भी देनी चाहिए क्योंकि उसका कलेजा बड़ा था सीना 56 इंच से भी ज्यादा चौड़ा था.
बाकी बात प्रदूषण पर लिखे इस निबंध की है तो ये इसलिए भी क्यूट है क्योंकि इसका कंटेंट अलग और आईडिया बिलकुल नया है. प्रोत्साहन इसलिए हो रहा है कि हम बढ़ते प्रदूषण का निदान करने में सक्षम नहीं है और जब हम किसी चीज के लिए सक्षम न हों तो फिर वक़्त का तकाजा यही है कि हमें फ़साने को एक हंसी मोड़ पर लाकर छोड़ देना चाहिए.
कुल मिलाकर कहा यही जा सकता है कि प्रदूषण की अच्छाइयां बताता ये निबंध सत्य है और तमाम आरोप प्रत्यारोप, अरविंद केजरीवाल, बीजेपी, मनोज तिवारी माया और कहा यही गया है माया महा ठगनी होती है. इनसे दूरी ही अच्छी.
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