इंजीनियरिंग कॉलेज के लड़के सिगरेट हाथ में लिए बजट देख रहे हैं जेटली जी !
बजट के मद्देनजर सबसे ज्यादा तनाव में इंजीनियरिंग के स्टूडेंट हैं. ये बेचारे इसलिए परेशान हैं क्योंकि इनके लिए सबसे बड़ा सवाल यही है सिगरेट महंगी हुई या सस्ती.
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बजट 2018 के मद्देनजर देश का आम आदमी पर टकटकी बांध के अपनी-अपनी टीवी स्क्रीन के सामने बैठा है. जिन सरकारी और प्राइवेट कर्मचारियों के पास सीएल, पीएल या किसी भी तरह की लीव थी उन्होंने आज के लिए 15 दिन पहले ही अप्लाई किया कर दिया था. ऐसे लोग जानने को आतुर थे कि प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली उन्हें किन चीजों में रियायत देते हैं.
वैसे तो बजट को लेकर बेकरार देश का हर व्यक्ति दिख रहा है. मगर इनमें भी सबसे ज्यादा बेचैन इंजीनियरिंग कॉलेज के लड़के हैं. बजट के मद्देनजर सबसे ज्यादा चिंता के बल इन लड़कों के ही माथे पर पड़े हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. लैब या थ्योरी की क्लास बंक कर चाहे मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल हो या फिर सिविल. एरोनॉटिक्स से लेकर पेट्रो केमिकल और बायोटेक तक के लड़के इस वक़्त कैंटीन में हैं. आम भारतीयों की तरह इनकी भी निगाहें टीवी पर टिकी हैं. आज कैंटीनों का माहौल कौमी एकता की मिसाल दे रहा है. आज कैंटीन में न कोई जूनियर है न कोई सीनियर आज ये सब छात्र हैं, इंजीनियरिंग के छात्र.
बजट को लेकर देश के सभी इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्थिति चिंता जनक है
ये स्टूडेंट बजट इसलिए नहीं देख रहे कि सरकार ने शक्कर या फिर सरसों के तेल के दाम कितने कम किये. या फिर रेस्टुरेंट में अब खाने का बिल कितने का आएगा, मूवी का टिकट कितने का होगा. न ही इन्हें इस बात से मतलब है कि इस बजट के बाद शेयर मार्किट में बढ़त या फिर गिरावट देखने को मिलेगी. इनकी चिंता का सबब दूसरा है. ये बेचारे अपना नहाना-धोना, चाय-नाश्ता छोड़, सिर्फ इसलिए टीवी पर बजट की अटैची लिए वित्त मंत्री को देख रहे हैं ताकि इन्हें पता चल सके कि सिगरेट पर सरकार का क्या रुख होगा. क्या सरकार उसे महंगा करेगी या फिर सस्ता. कहा जा सकता है कि इस समय इंजीनियरिंग कॉलेजों की कैंटीन का माहौल बहुत तनावपूर्ण हैं.
बच्चे सब तरह के होते हैं. यूं भी इंजीनियरिंग में होशियार ही बच्चे आते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि या तो बच्चा पढ़ लिख कर इम्तेहान देकर इंजीनियरिंग की सीट निकालता है या फिर नंबर कम लाने के बाद ये पता करता पाया जाता है कि किस कॉलेज में डोनेशन कम है. अब जो बच्चा सीट के डोनेशन के लिए सीटों के दामों में मोल भाव कर रहा है उसे नैतिक तौर पर होशियार कहना तो बनता है.
इंजीनियरिंग के छात्र जानने को बेक़रार हैं कि इस बजट का प्रभाव सिगरेट पर कितना पड़ने वाला है
हां तो हम इन होशियार बच्चों के बारे में बात कर रहे थे. इंजीनियरिंग कॉलेज में जो होशियार बच्चे थे, उन्होंने क्रिसमस के बाद से ही अपने खर्चों में कमी करते हुए सेविंग की शुरुआत कर दी थी. ऐसे बच्चों ने अपनी सिगरेट का कोटा बजट की पूर्व संध्या पर ही पूरा कर लिया है. साथ ही क्रिसमस से लेकर बजट आने तक सही गयी आर्थिक तंगी को दूर करने का प्लान इन्होंने पहले ही बना लिया था. इन्होंने अपने अपने पसंदीदा जूनियर्स को सेट कर लिया है और ये इनकी मदद से सिगरेट पर मामूली सा gst लगाकर उन लड़कों को बेच रहे हैं जिन्हें समय रहते अक्ल नहीं आई.
बहरहाल, अब सिगरेट महंगी होगी या सस्ती ये या तो वक़्त बताएगा या फिर जेटली जी. मगर हां इतना तो है कि सरकार को इन इंजीनियरिंग के लड़कों के बारे में भी सोचना चाहिए. एक तो यूं भी इतना डोनेशन देने के बाद इन्हें कैंपस प्लेसमेंट मिल नहीं रहा ऊपर से सरकार का हर बजट में सिगरेट के दाम बढ़ा देना. मतलब ये बेचारे जब-जब अपना सिर मुंडाते हैं, ओले पड़ जाते हैं. सैद्धांतिक तौर पर इंजीनियरिंग के लड़के आशा वादी होते हैं. इन्हें पूरा यकीन है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली इन्हें और इनकी मजबूरी को रहम की निगाह से देखेंगे.
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