फेसबुक, वाट्सएप- इंस्टाग्राम किसी दिन हाथों की नस कटवा कर ही मानेगा!
फेसबुक वाट्सएप और इंस्टाग्राम के कुछ घंटों के लिए बंद होने के बाद स्थिति बहुत तनावपूर्ण थी फ़्रस्ट्रेशन इस हद तक था कि अगर लोगों का बस चलता तो अपनी नसें और दूसरे व्यक्ति कि गर्दन तक काट लेते.
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मैंने क़यामत नहीं देखी. जैसे हालात हैं, कल या फिर परसों की डेट में जब कभी भी क़यामत आएगी वजह सोशल मीडिया बनेगा. बीते दिन फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम डाउन रहा है. लोग एक दम सहम गए. काटो तो खून नहीं की स्थिति. जो मोबाइल पर सोशल मीडिया ब्राउज करते हैं वो मोबाइल नेटवर्क को. जिनके पास वाई फाई था वो तार हिला रहे थे. राउटर इधर उधार कर रहे थे. इंटरनेट वाले भइया को फोन मिलाकर उसकी हंसती खेलती जिंदगी में पुदीना कर रहे थे. शुरू में तो लोगों को लगा कि 15-20 मिनट की प्रॉब्लम होगी, सब सही हो जाएगा. मगर आधे घंटे, फिर एक घंटे तक कुछ नहीं हुआ धीरे धीरे ये समस्या बढ़ी और कोई 9 घंटे तक चली. लोग तस्वीरें डाउनलोड करने और उन्हें भेजने में असमर्थ थे. कुछ न तो स्टेटस -स्टोरी ही लगा पा रहे थे और न ही टिक टॉक के वीडियो. कल्पना करिए सिर्फ उस फ़्रस्ट्रेशन की जब आप कुछ पोस्ट कर रहे हों और वो पोस्ट न हो रहा हो. अंदाजा लगाइए उस आशिक का जो अपनी माशूका से चैट करना चाहता हो उसे तस्वीरें भेजना और मंगाना चाहता हो. फेसबुक चल नहीं रहा है. वाट्सएप रुका पड़ा है. इंस्टाग्राम में हरारत तक नहीं हो रही है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं जब मामला इतना सीरियस हो व्यक्ति हाथ की नस से लेकर गले तक कुछ भी काट सकता है. खून बह जाएगा विश्व युद्ध हो जाएगा.
फेसबुक ट्विटर इंस्टाग्राम के चंद घंटों के लिए रुक जाने से करोड़ों धडकनें रुक गयीं थीं
आज सोशल मीडिया हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है. इसके बिना जीवन की कल्पना व्यर्थ है. इस्पार्ट चुनाव लड़ा जा रहा है. उसे जीता जा रहा है. ये इंसान को इंसान बाद में, पहले हिंदू मुसलमान बना रहा है. इसके चक्कर में लोग खाना-पीना छोड़ रहे हैं. जो खा-पी रहे हैं वो इसमें इतना खोये हैं कि अपनी रेगुलर डाईट से ज्यादा खा रहे हैं. बात साफ हो गई है देश में फैले कुपोषण से लेकर ओबेसिटी तक सभी चीजों का जिम्मेदार यही फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम है. हां वही, जो बीते दिन 9 घंटे से ऊपर बंद रहा.
बात वाकई हैरत में डालने वाली है. सवाल है कहां है तकनीक कहां मुंह छुपाए बैठी है प्रौद्योगिकी? जिन्हें क्रांति करनी थी वो क्रांति नहीं कर पाए. जो क्रांति कर रहे थे उनकी क्रांति अधूरी थी. ये सब सीरियस बातें हैं. इन सभी बातों को वही समझ सकता है जिसने ये दुःख भोगा है.
फेसबुक बंद पड़ा है इसकी जानकारी खुद फेसबुक की तरफ से ट्विटर पर आई थी
चंद ही घंटों में मामले कितना गंभीर हो गया था इसे हम उन लोगों की प्रतिक्रियाओं से समझ सकते हैं जो उस वक़्त बेचैन थे जिस वक़्त फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम ने उन्हें धोखा दिया था. अंदर खाने में खुसुर फुसुर है कि जब सब कुछ एक आदमी के हाथ में होता है. तो चीजें ऐसे ही मिस मैनज हो जाती हैं. ऐसी कंडीशन में हम हो हल्ला तो खूब मचाते हैं मगर हकीकत में कुछ बड़ा नहीं कर पाते हैं.
लोग ये मान रहे हैं कि दरअसल मार्क ज़ुकेरबर्ग ने उनके साथ चालबाजी की है. कुछ घंटों के इस डिजिटल आपातकाल के बाद लोग इतने नाराज हैं कि ये तक कहने से नहीं चूक रहे कि, मार्क ज़ुकेरबर्ग इन प्लेटफॉर्म्स का मालिक है तो क्या हुआ? इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं कि वो किसी आम आदमी की भावना का बिल्कुल भी ख्याल न रखे?
फेसबुक की ही तरह ये जानकारी इंस्टाग्राम ने भी ये जानकारी ट्विटर पर साझा की थी
एक ऐसे वक़्त में जब प्यार से लेकर लड़ाई तक. दंगे से लेकर चंदे तक सब कुछ ऑनलाइन चल रहा हो, ये डिजिटल आपातकाल दिल तोड़ने वाला है. साफ बात है सत्ता एक आदमी के हाथ में नहीं रहनी चाहिए. एक आदमी के हाथ में जब पावर आती है तो वो ठीक ऐसे ही आम लोगों के अधिकारों का हनन करता है जैसा बीते दिन मार्क ज़ुकेरबर्ग और उसकी सेना ने किया था. मतलब मुझे इस वक़्त तक यकीन नहीं हो रहा. मैं इस बात को पचा पाने में असमर्थ हूं कि ऐसे कैसे मार्क ज़ुकेरबर्ग ने मात्र 9 घंटों में ही मुझे मेरी हैसियत बता दी.
खैर मैं दुनिया की बात नहीं करता अब वो समय आ गया है कि सरकार को फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम जैसी चीजों का अधिग्रहण वैसे ही कर लेना चाहिए जैसे उसने किसी जमाने में बैंकों का किया था कम से कम हम उससे ये तो सवाल कर सकते हैं कि 2 घंटा हो गया है फेसबुक पर वीडियो क्यों नहीं जा रहा या फिर ये कि सर ये बताइए कि फोटो पोस्ट किये घंटा भर से ऊपर होने को है आखिर प्रॉपर हैश टैग में हमारे द्वारा पोस्ट की हुई तस्वीर आ क्यों नहीं रही?
मुद्दा कोई भी हो. समस्या कोई भी आए जवाबदेही जरूरी है. अगर कल ये सब सरकार की नाक के नीचे रहेगा तो हम से कम हमें भी इस बात का संतोष रहेगा कि भले ही टेक्निकल मामले को लेकर सरकार कुछ न कर पाए मगर हम अपने गुस्से का प्रदर्शन सरकार के सामने कर अपने आपको तो सुकून में कर सकते हैं.
बहरहाल बात बस इतनी है कि मार्क ज़ुकेरबर्ग को ये सोचना चाहिए कि हम लोग वो हैं जो छोटी छोटी चीजों में बड़ी खुशियां तलाशते हैं. फेसबुक, वाट्सएप और इंस्टाग्राम वो छोटी चीजें हैं जो हमें बड़ी खुशियां देती हैं. इसलिए कभी भी ऐसा हो तो प्रॉब्लम का समाधान जल्द से जल्द निकालें कहीं ऐसा न हो कि इस गम में हमारे प्राण निकल कर सीधे यम के दरवाजे पर चले जाएं और लोग ये कहें कि बेचारा इसलिए मर गया कि फेसबुक वाले अपना फेसबुक वाट्सएप और इंस्टाग्राम चलवा नहीं पाए.
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