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Updated: 11 दिसम्बर, 2016 04:06 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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नोटबंदी ना हो गई पूरे देश में बवाल ही हो गया. चारों तरफ जैसे हाहाकार मचा हुआ है. गरीब लाइन में खड़ा है और अमीरों के पास प्लास्टिक मनी है. वहीं, कालाधन धारक अब नए नोटों का कारोबार कर रहे हैं जिन्हें आयकर विभाग छापेमारी करके पकड़ रहा है. अभी तक कुल 242 करोड़ के नए नोट ज़ब्त किए गए हैं. सभी अपने-अपने काम में व्यस्त हैं. हमारे देश में अक्सर लोग ये कहते हैं कि संतों की बातें, बड़े-बुजुर्गों का ज्ञान सही रहता है. अगर संतों के दोहे देखें तो तुलसीदास, रहीम और कबीर के कुछ दोहे मोदी और उनकी नोटबंदी स्कीम में बिलकुल फिट बैठते हैं. कौन से हैं वो दोहे चलिए देखते हैं.

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 नरेंद्र मोदी- फाइल फोटो

1. दोहा - बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय। रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थ: मनुष्य को सोच समझकर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा.

मोदी जी की नोटबंदी भी कुछ-कुछ ऐसी ही होती नजर आ रही है. जिससे मोदी मक्खन की उम्मीद कर रहे हैं वो कालाधन पहले ही दूध की तरह फट चुका है. जो कालाधन वाले हैं वो पहले से ही रिअल इस्टेट में और सोने में निवेश कर चुके हैं. 80% तक पुराने नोट वापस बैंक में लिए जा चुके हैं फिर भी कोई ठोस नतीजा निकल कर नहीं आया. योजना को लागू करने का इरादा तो नेक था, लेकिन अगर कालाधन पहले ही निवेश हो चुका है तो क्या किया जाए?

2. दोहा - रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। जहां काम आवे सुई, कहां करे तरवारि।।

अर्थ: रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए‐ जहां छोटी सी सुई काम आती है, वहां तलवार बेचारी क्या कर सकती है?

तलवार का उपयोग बड़ी योजना लागू करने की जगह पहले कुछ गिने चुने लोगों पर कार्रवाई करने के लिए किया जाना चाहिए था. बिना खास तैयारी के एकदम से नोटबंदी लागू करना अपने आप में एक तलवार के वार जैसा लग रहा है. अब आम इंसान को हो रही परेशानी को किसी मास्टर स्ट्रोक से हल नहीं किया जा सकता. उसके लिए छोटे-छोटे, लेकिन ज्यादा उपाय करने होंगे.

3. दोहा - धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

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अर्थ : मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा!

इस योजना के लागू होते ही पहले हफ्ते ही विपक्षी दल सवाल उठाने लगे. जबकि अर्थशास्त्री भी ये कह रहे हैं कि इसे पूरी तरह से काम करने में काफी समय लगेगा और इससे अच्छे नतीजों की उम्मीद की जा सकती है. आजादी की लड़ाई के लिए कई साल तक देश के लोग लड़े फिर नोटबंदी के लिए इतनी जल्दी धीरज क्यों खोना.

4. दोहा - तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक। साहस, सुकृति, सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।।

अर्थ- तुलसीदासजी कहते हैं कि मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती हैं, ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और भगवान का नाम.

नोटबंदी का समय भी कुछ ऐसा ही है. इस समय लोगों को परेशान होने की जगह ज्ञान से काम लेना चाहिए. जहां तक हो सके कैश का इस्तेमाल कम किया जा सकता है. डिजिटल पेमेंट मोड्स अपनाने से फायदा तो यकीनन होगा.

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 फाइल फोटो- नरेंद्र मोदी

5. दोहा - बोली एक अमोल है, जो कोई बोलै जानि। हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

अर्थ : यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है. इसलिए वह हृदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है.

अब इस दोहे के बारे में क्या कहा जाए. मोदी को बोलना तो आता ही है. शायद यही कारण है कि मोदी ट्विटर से लेकर टाइम मैग्जीन के वोटों तक मोदी टॉप पर रहते हैं.

6. दोहा - अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।

अर्थ : न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है. जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है.

मोदी को बोलना आता ही है, लेकिन कई बार भावुकता में वो ज्यादा बोल जाते हैं. जनता अभी तक तो फिर भी मोदी के साथ है, लेकिन अब और ज्यादा वादे नहीं चाहिए. याद कीजिए जब मोदी जी बोले थे कि 100 दिन में विदेश से काला धन ले आएंगे. अब इसे शायद भावुक्ता में ही बोला हो और इसी के साथ विपक्ष को भी ये समझना चाहिए कि व्यर्थ में हल्ला करने की जगह सोची समझी योजना बनाने में मदद की जाए. ना ही भक्ती की अती भली है ना ही विरोध की.

7. दोहा - कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।

अर्थ : इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो!

"मैं तो प्रधान सेवक हूं और जनता की सेवा करने आया हूं. ना मेरा इसमें कोई स्वार्थ है और ना ही कोई लाभ. मैं आप का प्रधान सेवक होने के नाते भरोसा दिलाता हूं कि कभी भी किसी को परेशान नहीं होने दूंगा." कुछ याद आया? ये था मोदी का बहुचर्चित भाषण. शायद ये इसी दोहे से प्रेरणा लेकर लिखा गया हो.

8. दोहा - जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।मैं  बपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठ।।

अर्थ : जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.

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ये दोहा मोदी और मोदी भक्तों के लिए है. वाकई मोदी ने नोटबंदी लागू करके गहरे पानी में जाने वाला काम किया है.

9. दोहा - दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण।।

अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है.

ये दोहा नोटबंदी के उस चेहरे की याद दिलाता है जिसमें लोग लाइन में लगे हुए हैं और सिर्फ अपने काम के बारे में सोच रहे हैं. दिल्ली में एक व्यक्ति लाइन में गिर गया तो उसे उठाने कोई नहीं आया, कानपुर में एक महिला को बैंक में ही बच्चे को जन्म देना पड़ा क्योंकि दो दिन से लाइन में खड़े होने और उसकी हालत देखने के बाद भी किसी ने उसे पहले नहीं जाने दिया. इस दौर में शिकायत करने से ज्यादा लोगों के प्रति दया भाव रखना जरूरी है.  

10. दोहा - काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥

अर्थ : कबीर दास जी समय की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और और जो आज करना है उसे अभी करो, कुछ ही समय में जीवन ख़त्म हो जाएगा फिर तुम क्या कर पाओगे!!

जो पहले की सभी स्कीम थीं जिनसे सरकार कालाधन धारकों को पकड़ने की सोच रही थीं वो फेल हो गईं, शायद उस समय मोदी को यही दोहा याद आया हो. तभी तो इतना बड़ा फैसला ले लिया.

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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