दूसरी लहर में Covid मरीजों की चुनौती वायरस नहीं दोस्त और रिश्तेदार थे!
कोविड की इस दूसरी लहर में तमाम लोग ऐसे हैं, जिन्होंने वो चीजें देखीं जो हमारी कल्पना से परे हैं. वहीं बात मरीजों की हो तो उनके अनुभव भी कोई बहुत अच्छे नहीं रहे. कोरोना की इस दूसरी लहर के दौर में जो एक कॉमन बात दिखी वो दोस्त और रिश्तेदार थे. कहना गलत नहीं है जितना लोग वायरस से नहीं डरे, उससे ज्यादा इन लोगों ने मरीजों को डराया.
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एक शाम ये लगा कि जैसी थकान ज़्यादा महसूस हो रही है, उस शाम खाना खाकर मैं जल्दी सो गया, नींद भी अच्छी आई. सुबह मैं शूटिंग पर गया लेकिन दोपहर तक थकान बढ़ने लगी और फीवर जैसा महसूस होने लगा, उस रात कमरे पर लौटकर बुखार की दवा 'डोलो' खाकर सो गया लेकिन जब सुबह उठा तो महसूस हुआ कि फीवर ज़्यादा है और कमज़ोरी भी ज़्यादा महसूस हो रही है. शूटिंग पर फ़ोन करके मैंने सूचित किया कि मुझे बुखार ज़्यादा है. लिहाजा शूटिंग पर नहीं आ पाऊंगा. मुझे बुखार आते ही कोरोना को लेकर मेरा डर बढ़ने लगा. हालांकि फार्मासिस्ट सुनील भैया ने कहा कि घबराने की बात नहीं है. नार्मल फीवर भी हो सकता है. उन्होंने कुछ दवाएं खाने को बताई और फिर कहा की आइसोलेट हो जाओ, घबराना मत, आराम से अच्छा म्यूजिक सुनते रहो, फिल्में देखो. तीन चार दिन ऑब्ज़र्ब करते हैं वरना फिर RTPCR टेस्ट करवाया जायेगा. ख़ैर चार दिन तक 102 के आस पास बुखार आता जाता रहा. फाइनली RTPCR टेस्ट हुआ, रिपोर्ट आई और मैं पॉजिटिव आ गया. अब शुरू होती है कोरोना पॉजिटिव मरीज़ की यात्रा. मैं मानसिक उलझन और पीड़ा में आ गया था, स्मेल और टेस्ट महसूस होने बंद होते जा रहे थे. अब काढ़ा, गरम पानी, स्टीम, कोरोना पॉजिटिव वाली दवाएं, कपूर अजवाइन लौंग वाला फार्मूला, योग वाले अभ्यास धीरे धीरे शुरू किए मैंने.
तमाम कोविड मरीज ऐसे थे जिन्हें दोस्तों रिश्तेदारों ने डराया भी खूब और भरपूर ज्ञान भी दिया
अमूमन बीमार होने पर हर कोई बीमार जैसा लगने लगता है. वो नहाता नहीं है दाढ़ी बढ़ जाती है,कपड़े लत्तों से ही पता लग जाता है कि वो बीमार हो गया है. मैंने एक नया प्रयोग किया कि 'मैं बीमार जैसा लगूँगा नहीं, इसलिए मैं प्रतिदिन शेविंग करता, नहाता, अच्छे कपड़े पहनता और ज़्यादा साफ सफाई से रहने लगा. अच्छा म्यूज़िक सुनने लगा.
अच्छी फिल्में देखता रहा और कभी कभी गाने गाकर फेसबुक पर पोस्ट करता रहा व फेसबुक पर लाइव भी आता रहा. ये सब मन को कनफ्यूज़ रखने के अच्छे बहाने थे. कभी कभी जीवन में बहुत सी कड़वी सच्चाई आप अपने मन को कनफ्यूज़ रख कर भी जीत सकते हैं. इस बार मेरा प्रयोग सफ़ल हुआ क्योंकि मन से मैंने ख़ुद को माना ही नहीं कि मैं कोरोना पॉजिटिव हूं.
हालांकि तकलीफ़ होती थी सिर दर्द, बुखार, स्मेल और टेस्ट का न होना, फिर कमरे में क़ैद रहना ये सब तकलीफ़ तो थी लेकिन मैंने अपने दिल को कनफ्यूज़ रखा. दिल को जो सबसे बड़ा कनफ्यूज़न दिया मैंने, वो थी एक लव स्टोरी, जो मैंने ख़ुद ही क्रिएट की.
मान लीजिये कि अर्पित नाम का कोई लड़का किसी पहाड़ी जगह घूमने गया है और वहां उसे एक लड़की अनुश्री मिल जाती है. दोनों लॉकडाउन में फंस जाते हैं, फिर दोनों कोरोना पॉजिटिव हो जाते हैं तो दोनों कैसे एक दूसरे का ख़याल रखते हैं. उन्हें कब एक दूसरे से प्यार हो जाता है पता नहीं चलता फिर दोनों की रिपोर्ट नेगेटिव आती है.
दोनों अलग हो जाते हैं. दोनों ने कभी एक दूसरे को बताया ही नहीं था कि वो शादी शुदा थे. उन दोनों के बीच तमाम सिचुएशन के हिसाब से मैं कुछ सीन लिखता था कुछ फिल्मी गीत सुनता था, गुनगुनाता था. अच्छा, मैंने सीधे तौर पर किसी से भी अपने कोरोना पॉजिटिव होने की बात नहीं कही थी लेकिन मेरी बातचीत से लोगों ने गेस करना शुरू कर दिया था.
अब जो जान गये थे वो अमूमन वही उपाय मुझे भी बता रहे थे जो सभी को पहले से पता थे, कुछ ने मेरा बहुत ही ध्यान रखा ख़ासकर मेरी दोस्त प्रीती चौहान ने. वो हिम्मत और हौसला देती रही. मेरे लिये खाना, दवाएं भिजवाती रहीं. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने मुझे ग़ुस्सा भी दिलाया तो उन्होंने मेरा मनोरंजन भी किया.
जैसे एक सज्जन ने फ़ोन करके घबराई हुई आवाज़ में कहा- संदीप, संदीप अरे बोलो न ठीक तो हो न तुम?
मैंने कहा- सांस तो लेने दो यार एक सेकेंड.
सज्जन व्यक्ति- अरे क्या सांस लेने में भी तकलीफ़ हो रही है? सुनो बहुत ध्यान रखना, बहुत घटिया बीमारी है ये.
मैंने खांसते हुये कहा- क्या कोई बीमारी अच्छी भी होती है क्या?
सज्जन व्यक्ति- अरे कहने का मतलब ये है कि अचानक ऑक्सीज़न लेवल कम हो जाता है इस बीमारी में, कई लोग निपट गये यार, कल ही मेरे मौसा जी गुज़र गये यार कोरोना से.
मैंने कहा- यार क्यों डरा रहे हो.
सज्जन व्यक्ति- डरा नहीं रहा हूं सिर्फ़ आगाह कर रहा हूं. मैंने कहा- ओके ओके, चलो फ़ोन रखता हूं बाद में बात करेंगे. मैंने फोन कट किया.
कुछ दिन बाद दूसरे सज्जन व्यक्ति ने कॉल किया - संदीप यार कल मामा जी का बेटा गुज़र गया कोरोना से.
मैंने कहा- ओह्ह.
सज्जन व्यक्ति 2- बिल्कुल तुम्हारे जितनी ही उम्र थी, तुम्हारे जैसे ही कद काठी.
ये सब बातें सुन सुनकर मैं डर जाता था. लेकिन बताने वाले पूरी बात बता कर ही कॉल कट करेंगे मैं जानता था इसलिए मैं भी पूरी बात हिम्मत से सुन लेता था. हालांकि इन फ़ोन कॉल्स से कभी कभी गुस्सा भी आता था. तो कभी कभी हंसी भी. कुछ फ़ोन ऐसे भी आते थे जो विचित्र विचित्र उपाय बताते थे कि ऑक्सीज़न लेवल कैसे सही रहेगा, पेट कैसे साफ़ रहेगा, गले की ख़राश कैसे जल्दी दूर होगी, सिर दर्द हो तो क्या करें.
हालांकि इन 22 दिन के आइसोलेशन में रहने के दौरान ज़िन्दगी को नए सिरे से समझने का मौका मिला. तमाम दोस्तों को जांचने परखने का मौका मिला, तमाम सरकारी अव्यवस्थाओं के बावजूद भी कुछ लोग सरकार और सिस्टम के ख़िलाफ़ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. ऐसे लोगों को मार्क करके उन्हें अपनी मित्रता सूची से हटाया.
वहीं तमाम अनजान लोग जो जात पात, धर्म से ऊपर उठकर लोगों की मदद कर रहे थे, जिन्होंने सोशल मीडिया को हथियार बनाकर पूरे देश में मददगारों की एक फौज खड़ी कर दी थी, उनसे दोस्ती हुई. उन 22 दिनों में मैंने ये सीखा की यदि आपके पास अच्छे सच्चे मित्र हैं तो आप दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति हैं. वरना इस दौरान तो तमाम धनवान ऐसे भी देखे गये जिन्होंने ऑक्सीज़न सिलेंडर, दवाएं, हॉस्पिटल के नाम पर दलाली खाई.
कोरोना ने बहुत निराशाजनक माहौल तो बना दिया है लेकिन एक बात ये भी तो है कि उसने आपको जीवन के प्रति, स्वास्थ के प्रति बहुत सचेत कर दिया है. आपके अंदर थोड़ी राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक चेतना भी पैदा की होगी. दोस्तों अब आपको तय करना है कि आप अपने इर्द गिर्द कैसा माहौल बनाना चाहते हैं, अब आपकी क्या प्राथमिकताएं हैं.
अब मैं कोरोना से पूरी तरह से ठीक हूं, उम्मीद है आप भी ठीक होंगे. आप अपना अपने घर वालों का यार दोस्तों का पड़ोसियों का ख़याल रखें. लेख के अंत में भविष्य के प्रति एक उम्मीद जगाती हुई कवि गोपालदास नीरज की एक ग़ज़ल आप सबके लिए-
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए.
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए.
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए.
आग बहती है यहां गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहां जाके नहाया जाए.
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अंधेरे को उजाले में बुलाया जाए.
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूं भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए.
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आंसू तेरी पलकों से उठाया जाए.
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए.
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