2018 में बने विष्णु के दसवें अवतार का 2021 में सेलिब्रिटी बन जाना, नमन रहेगा!
ऑफिस से गोला मारने वाले कई हज़ार बहानों में से एक बहाना रमेश चंद्र फेफरे का था जिन्होंने अपने को भगवान विष्णु का दसवां अवतार बताया था. फेफरे को जो लोकप्रियता 2018 में नहीं मिली वो उन्हें 2021 में मिल गयी. बाकी जो उनकी बातें और बहाने का लेवल था उसके लिए उन्हें नमन रहेगा.
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सोशल मीडिया जितना दिलचस्प है उतना ही दिलफरेब भी है. कब किसकी और कहां लंका लगा दे कुछ कहा नहीं जा सकता. अच्छा लंका लगने का भी एक उसूल है. जब तक ख़ुद की न लगे खूब मजा आता है और सब चंगा सी रहता है. लेकिन जैसे ही बात ख़ुद पर आती है तो... न हमें कुछ कहना है और आपको तो कुछ समझना ही नहीं है. जैसा हाल और जिस तरह का इस्तेमाल हाल फिलहाल में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम का हो रहा है अगर किसी भाई या बहन ने 20 साल पहले थूक से गुब्बारे फुलाए हों. उसका वीडियो मौजूद हो और उसे पोस्ट कर दिया जाए तो ऐसे लोग हमारे बीच है जो थूक से गुब्बारा फुलाने वाले उस व्यक्ति को रातों रात सोशल मीडिया सेलिब्रिटी बना देंगे. बाकी बात ये भी है कि देश में जब लोग फ्री का फिनायल नहीं छोड़ते तो सेलिब्रिटी बनना किसे नहीं भाएगा. तो गुरु कहानी गुजरात के रमेशचंद्र फेफरे की है और इसके तार 2018 से जुड़े हैं. 2018 में मई का महीना था और तब कोरोना बिल्कुल नहीं था. लोग गली, मुहल्लों, चौक, चौराहों पर बेगारी करते चाय गटकते और एक अखबार को तीन-चार लोग मिल बांट के पढ़ते. तो 2018 में मई का आखिरी सप्ताह चल रहा था . अखबार में एक दावा छपा. दावा करने वाला सरदार सरोवर निगम में इंजीनियर था. नाम था रमेशचंद्र फेफरे.
दफ्तर से गोला मारने वाले बहानों के बीच सबसे दिलचस्प बनाना गुजरात के एक इंजीनियर ने 2018 में दिया था
फेफरे तब 8 महीनों से ड्यूटी पर नहीं गए थे. लगातार छुट्टी पर रहने के कारण सरदार सरोवर निगम ने भाई को नोटिस भेजा. जो जवाब आया उसे देखकर वक़्त रुक गया. सूरज आधा घंटा लेट डूबा. चांद पौन घंटे देरी से आया. नोटिस के जवाब में फेफरे ने लिखा था कि वो भगवान विष्णु के दसवें अवतार हैं और दफ्तर आकर काम करने की वजह से उन्हें साधना करने में अड़चन आती है इसलिए वो छुट्टी पर हैं. पेशे से इंजीनियर इस कलयुगी भगवान यानी रमेशचंद्र फेफरे की कहानी आपको कोरी गप्प या मजाक लग रही होगी मगर ये मजाक नहीं है.
सरदार सरोवर निगम के नोटिस के बाद फेफरे ने लिखा था कि, जिस तरह से आज तुम लोग मेरे ऊपर हंस रहे हो, उसी तरह हस्तिनापुर की सभा में कौरव श्रीकृष्ण पर हंसे थे जब वे पांडवों के वास्ते पांच गांव मांगने दरबार में पहुंचे थे. विष्णु अवतार कृष्ण भगवान थे. आखिरकार सब ने माना. मुझ पर हंस लो. पर मैं भी भगवान हूं. विष्णु का दसवां अवतार, भगवान कल्कि हूं.
ये बातें 2018 की थीं अब चूंकि लॉक डाउन चल रहा है तो देश में दो तरह के लोगों जिसमें पहले वर्क फ्रॉम होम करने वाले हैं और दूसरे नौकरी और शाइन जैसी वेबसाइट पर सीवी डालते बेरोजगार की अधिकता है.किसी भाई को मौज लेने की सूझी होगी और आज तीन साल बाद एक बार फिर ये भगवान विष्णु के कल्कि अवतार वाला मामला सुर्खियों में आ गया और वही हुआ जिसके लिए सोशल मीडिया मशहूर है. कलयुगी भगवान विष्णु यानी रमेशचंद्र फेफरे की लंका लग गई.मामले पर लोग ऐसे अंदाज में चुटकी ले रहे हैं कि एक बार शर्म भी शर्मा जी का शर्मिला लड़का बन जाए.
2018 में किन्हीं अज्ञात कारणों से दबी ये खबर फेसबुक, ट्विटर की बदौलत हमारे सामने है. आज इस खबर और रमेशचंद्र फेफरे दोनों को हर वो शख्स जान गया है जो तब इस खबर से अंजान था. मगर अब जबकि ये बहुमूल्य खबर हमारे सामने है इस खबर के बाद सवाल उठने तो लाजमी हैं. नहीं मतलब सच में कौन हैं ये लोग? कैसे कर लेते हैं ऐसा दावा. ऑफिस नहीं आना है ठीक है. चलता है. लेकिन इतना बड़ा झूठ. इतना बड़ा फ्रॉड. मक्कारी की ऐसी पराकाष्ठा कि ख़ुद को भगवान विष्णु का अवतार बता दो और मौज लेते रहो.
वैसे देखा जाए तो इस पूरे मामले में अकेले दोषी पाइरेटेड भगवान विष्णु यानी सरदार सरोवर निगम में तब कार्यरत रमेशचंद्र फेफरे नहीं है उनके जितना ही दोषी विभाग है. मतलब अगला 1 या 2 नहीं पूरे 8 महीने गोल रहा या जिस दिन भी दफ्तर आया जल्दी ही निकल गया और इतने बड़े विभाग में ऐसा कोई नहीं था जो इसकी आरती उतार पाता. कोई ऐसा जो इसे गीता सार समझाते हुए कहता दफ्तर आओ और फल (तपस्या) की चिंता बिल्कुल न करो.
बाकी अब जबकि फेफरे वाले भगवान ही हमारे सामने आ ही गए हैं तो एक सवाल ये भी ज़हन में आ रहा है कि जिस प्रकार की आस्था हमारे देश में लोगों में है कहीं ऐसा तो नहीं लोगों ने इन्हें सच मुच में इस कलयुग में 33 कोटि देवी देवताओं में से एक मान लिया और ये सोचने लग गए कि आदमी शक्ल सूरत से बुजुर्ग टाइप है इसलिए ये झूठ तो बोल ही नहीं सकता?
बात एकदम सीधी और शीशे की तरह साफ है. हमारे बड़े बुजुर्ग पहले ही इस बात को कहकर परलोक सिधार चुके हैं कि फैशन के इस निर्मोही दौर में न तो गारंटी की ही इच्छा करते हैं और न ही वारंटी की. इस केस में तो मामला भगवान से जुड़ा है. अब जब साक्षात भगवान आ गए हैं जो जगत कल्याण के लिए दफ्तर छोड़ तपस्या में लीन हैं तो कोई पगला ही होगा जो आस्था से खिलवाड़ करे और कई सौ किलोमीटर का इतना लंबा रिस्क लेगा. तो शायद विभाग ने भी वही सोचा हो जो इतना सब पढ़ने के बाद आप और हम सोच रहे हों. हां वही 'चलो ठीक है हटाओ यार'
मामला आज भले ही 3 साल के बाद उठा हो. लेकिन जो सबसे पहला विचार हमारे मन में आ रहा है. वो ये कि विज्ञान और प्रौधोगिकी की बड़ी बड़ी बातों के अलावा जब हम विश्व गुरु और न्यू इंडिया सरीखी बातें कर रहे हो आखिर तीन साल पहले लोग इन अतरंगे दावों पर यकीन कैसे कर ले गए? क्या वाकई हमारा समाज इतना कमजोर हो गया है कि उसमें शर्म नाम की कोई चीज नहीं बची है?
अरे तमाम तरह के पापों के बाद और वो भी तब जब कलयुग हो कोई अपने को भगवान बताकर ऐश काट रहा हो. आखिर क्यों नहीं किसी इंसानी दिमाग के केमिकल लोचे को किसी ने समझा ? कोई मजाक चल रहा हो तो अलग बात है लेकिन मरते दम तक इस बात का अफसोस रहेगा कि ये ड्रामा एक सरकारी जगह पर चल रहा था और इस ड्रामे को देखते हुए लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे थे.
बहरहाल अब जबकि किसी को ऑफिस न जाने के लिए हमने भगवान विष्णु का दसवां अवतार बनते देख ही लिया है. तो क्या ही कहना. अब अगर मौत भी आ जाए तो इस खबर और फेफरे को देखकर कम से कम इतनी हिम्मत तो आ हो गयी है कि आंख में आंख डालकर उसका सामना कर लेंगे और बता देंगे उसको ही हमसे दूर रहो हम फलां भगवान के फलां अवतार हैं. ज्यादा जो चूं चपड़ की तो श्राप देकर कैद कर देंगे.
कुल मिलाकर 2018 में कांड करने के बाद 2021 में कोरोना वायरस लॉक डाउन के इस दौर में सोशल मीडिया सेंसेशन बनने वाले रमेशचंद्र को न केवल हमारा बल्कि पूरे देश की तरफ से नमन और वंदन रहेगा. वाक़ई ऐसे महापुरुष 1000 या 10000 साल में कहीं एक बार धरती पर अवतार लेते हैं.
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