बुढ़ापा...अगर आदमी का दिल जवान हो तो ऐसा कोई कांसेप्ट है ही नहीं!
वहां उधर बाहर गांव में बुढ़ापे पर बाइडेन से जवाब तालाब कर रहे अमेरिकंस को समझना चाहिए, इंसान बूढ़ा तब है जब वो अपने को मान ले. बाकी बात बस इतनी है कि दिल जवान और ऊर्जा से परिपूर्ण रहना चाहिए.
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उम्र का बढ़ना तो फ़ितरत-ए-जहां है,
महसूस न करो तो बुढ़ापा कहां है.
शेर किसका है? कहां बोला गया है?किस संदर्भ में बोला गया है? इसका कोई आईडिया नहीं है. मगर शेर अच्छा है और बुढ़ापे पर है. बुढ़ापा है बड़ी कमाल की चीज. किसी महफ़िल में, या यूं ही रैंडम कह दो किसी से कि यार क्या बात! उम्र से पहले बूढ़े हो गए हो? हंसता खेलता आदमी सन्नाटे में चला जाएगा. भावुक हो जाएगा. गुस्से वाला कोई हुआ तो दो चार कंटाप जड़ दे कोई बड़ी बात नहीं. बुढ़ापा सबको या ये कहें कि सभी को डराता है. एक दौर था. जब आदमी 60 साल की उम्र क्रॉस करता उसके दांत वगैरह टूटने शुरू होते कमर झुक जाती बालों में सफेदी आ जाती और ये मान लिया जाता कि इंसान बूढ़ा हो गया है. फिर वक़्त बदला और आज आलम ये है कि उपरोक्त लिखी बातें 60 साल में ही हों बिलकुल भी ज़रूरी नहीं. ये वाले गुण अगर हम 30 से 35 या 40 से 45 साल वालों में देख लें तो हमें टेंशन में बिलकुल नहीं आना चाहिए.
अमेरिका में तो लोग इसी टेंशन में हैं कि जब सब बूढ़े हो रहे हैं तो फिर राष्ट्रपति बाइडेन क्यों नहीं
अब बुढ़ापे को लेकर कोई कितना भी और कुछ भी कह ले. लेकिन एक सही बात ये है कि आदमी तब तक बूढ़ा नहीं है जब तो वो खुद को न मानें. मतलब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को ही देख लीजिये. जो अभी बीते दिनों ही 80 साल के हुए हैं. अमेरीकन लोग परेशान हैं कि अगला 80 का हो गया है कब तक राष्ट्रपति का पद संभालेगा. वहीं जैसी ख़बरें हैं माना जा रहा है कि 2024 में जब अमेरिका में चुनाव होगा तो जनता फिर बाइडेन को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में देखेगी.
बात अमेरिका, अमेरिकन और जो बाइडेन की हुई है तो बता दें कि इससे पहले रोनाल्ड रीगन ने 77 साल की उम्र में अमेरिका जैसे देश का राष्ट्रपति पद छोड़कर बता दिया था कि लेओ भइया अब बस बहुत हो गया. अब रिटायर होने का वक़्त आ गया है.
मतलब ये भी कितना अजीब है कि एक व्यक्ति है जो 77 साल में अपने को बुजुर्ग मानते हुए रिटायर हो रहा है. वहीं दूसरा व्यक्ति वो है जो 80 साल का है और पूरी मजबूती के साथ अपने पद को संभाल रहा है. यानी साफ़ हो गयी वो बात जो हमने अपने इस लेख के बिलकुल शुरू में कही थी. 'महसूस न करो तो बुढ़ापा कहां है.'
यही साफ़ ये भी हो गया कि आदमी जब तक खुद फील न करले बुढ़ापे जैसा कोई कांसेप्ट है ही नहीं. यूं भी तमाम लोग ऐसे हैं जो एकजुट होकर एकसुर में यही बात कहते हैं कि आदमी कितना भी बूढ़ा क्यों न हो जाए. कितनी ही झुर्रियां उसके गालों में हों. भले ही उसका मुंह पोपला हो आधे से ऊपर बाल सफ़ेद हो गए हों या फिर झड़ गए हों लेकिन जब तक वो खुद को न माने, वो कुछ हो बूढ़ा तो नहीं ही है.
मैटर ये है कि आदमी का दिल जवान होना चाहिए. कह सकते हैं कि दिल अगर जवान हो तो झुकी कमर में भी जान होती है जो दुनिया का किला फ़तेह कर सकती है. लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि खुद बूढ़ा होने के बावजूद खुद को जवान मानने वाला टोटका चल ही निकले कई मामले, या ये कहें कि ज्यादातर मामलों में होता कुछ यूं है कि
हेयर-डाई से बालरंगते रहे ता-उम्र उन्हें रिझाने के लिए
जब वो करीब आये तो कह गए खिचड़ी बाल रख लीजिये अच्छे लगेंगे.
दो लाइन की ये तुकबंदी ये बताने के लिए पर्याप्त है कि हम जो सोच लें जरूरी नहीं कि हर बार हमारा कहा हुआ सच ही हो जाए. हम जो सोच बैठें वो पूर्ण हो ही जाए. लेकिन बात फिर वही है. आदमी को न तो उम्मीद छोड़नी चाहिए और न ही हौसला. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ज़िन्दगी जीने के लिए अगर वाक़ई किसी चीज की जरूरत होती है तो वो हम जैसे साधारण लोगों के लिए हौसला ही है.
बहरहाल बात बुढ़ापे की हुई है. तो हम फिर इस बात को कहेंगे कि खुद को जवान मानिये. हरा भरा और सदा बहार मानिये. ऐसा करके कोई खुश रहे न रहे हां लेकिन आपको जरूर अच्छा लगेगा. और हो ये भी सकता है कि इसी सब से आंतरिक शांति मिल जाए. बाकी बात शांति की हुई है तो जाते जाते हम ये जरूर बताना चाहेंगे कि आज जो लोग समय से पहले बूढ़े हो रहे हैं उसकी एक बड़ी वजह ये मुई शांति भी है.
आदमी खुश रहे और बस अपने को दिल से जवान माने और क्या ही चाहिए ज़िंदगी में. यूं भी किसी शायर ने ये कहकर अपनी कलम की निब तोड़ दी थी कि
दुनिया भी अजब सराय फानी देखी,
हर चीज यहां की आनी जानी देखी.
जो आके ना जाये वो बुढ़ापा देखा,
जो जा के ना आये वो जवानी देखी.
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