तेजस एक्सप्रेस ने छुपा ली देश की गरीबी-भुखमरी
देश की पहली प्राइवेट ट्रेन Tejas Express हमारे सामने हैं. ट्रेन को कुछ इस तरह बनाया गया है कि जैसे ही व्यक्ति इसके अन्दर आएगा उसे कुछ भी ऐसा नहीं दिखेगा जिससे उसका मूड ख़राब हो या फिर उसे देश की गरीबी दिखाई दे.
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तेजस एक्सप्रेस (Tejas Express) के ऑटोमैटिक दरवाज़े खुलते ही आपके चेहरे पर ठंडी हवा का एक ख़ुशनुमा झोंका टकराएगा. व्यवस्था ऐसी है कि झोंके के आपको छूते ही, आप वो सारे थके और उदास चेहरे भूल जाते हैं जो स्टेशन (Railway Stations) दाखिल होते हुए दिखे थे. वो उधड़े हुए कपड़ो वाले, सर पर गमछा लपेटे, बड़े-बड़े झोले लिए भारत के 'पुअर पीपल' याद नहीं रहते. सब कुछ कूल है यहां, 'यू नो, फील्स लाइक यू आर नॉट इन इंडिया.' बटन दबाने से ऊपर नीचे जाने वाले शीशे के पर्दे ढक दिए गए हैं, सिर्फ आपकी सुविधा के लिए ताकि प्लेटफार्म पर प्लास्टिक शीट बिछाकर बैठे वो ग़रीब-गुरबे आपको घूर न पाएं जो अपनी लगातार लेट हो रही ट्रेन (Train Delayed) के इंतज़ार में हैं.
तेजस जैसी ट्रेन में बैठने का सपना शायद इस देश के आम आदमी के लिए एक सपना ही रहे
ट्रेन खिसकती है और हाथों में दास्ताने और चेहरे पर मास्क लगाए, किसी आपरेशन थिएटर वाले डॉक्टर की तरह पीली यूनिफार्म में एक लड़की आती है. घबराइयेगा मत, उसका काम सिर्फ पानी की बोतल देना है. मास्क पर शिकन पड़ती है तो मालूम होता है कि वो मुस्कुराई है, आप भी मुस्कुरा दें, ऐसा करना पड़ता है. हवाई जहाज़ में गेट पर खड़ी होस्टेस याद नहीं? 'थैंक यू फ़ॉर नथिंग' बोलती है ना? वैसे ही.
तो अब आप पानी पीजिए और खिड़की के किनारे लगे स्विच को दबाइये. आपको देखा देखी बाकी लोग भी अपने-अपने बटन दबाएंगे. आपके चेहरे पर विजेता की खुशी आ जाएगी, लेकिन किसी से बोलियेगा मत. महंगी ट्रेन में सफ़र करने वाले ज़्यादा बात नहीं करते. वो या तो सामने रखे अंग्रेज़ी अखबार के पन्ने पलटते हैं या फिर मोबाइल पर फेसबुक पर कोई लंबा पोस्ट लिखते हैं. गांव वालों की तरह सामने बैठे शख्स से 'कितने लड़के हैं, लड़की कहां बियाही है' मत पूछिएगा.यहां ये सब नहीं होता, अपने काम से काम रखिये.
अंदर से कुछ यूं दिखती है तेजस
हां, तो अब पर्दे वाले बटन दबाइये. बटन दबाते ही पर्दा बड़ी नज़ाकत से धीरे-धीरे उठेगा. किसी कालजयी नाटक की प्रस्तावना की तरह. धीरे-धीरे बाहर दिखना शुरू होगा. जैसे आंखों के ऑपरेशन के बाद पट्टी हटाते हुए डॉक्टर कहता था न, 'अब अपनी आंखें धीरे-धीरे खोलिए'. ये इंतेज़ाम दरअसल इस लिए किया गया है क्योंकि अगर झटके से पर्दा खुल जाए और आप बाहर का माहौल अचानक देख लें तो 'फ़ील' टूट जाता है. रेलवे कॉलोनी की टूटी फूटी इमारतें, गंदे रेलवे ट्रैक, रुकी हुई ट्रेन के दरवाजों से लटकते ग़रीब लोग, शहर के किनारों पर कूड़े के ढेर, क्रॉसिंग पर लगा लंबा जाम. ये सब आपको धीरे धीरे दिखाया जाता है, पर्दा धीरे-धीरे उठता है. देखिए इग्नोर कीजिये.
फ़िर एक नेवी ब्लू यूनिफार्म पहने लड़का नाश्ते की ट्रे रख जाएगा. उसे फौरन मत देखिए, थोड़ी देर इग्नोर कीजिये, सभ्य लोग ऐसा ही करते हैं. थोड़ी देर इधर उधर देखने के बाद 'मफिन्स' का पैकेट ऐसे फाड़िये जैसे उसे खाकर उसपर अहसान कर रहे हों. ज़्यादा बेहतर परिणाम के लिए भवें थोड़ी तिरछी भी कर सकते हैं. खाते-खाते अब आप उठ चुके पर्दे से बाहर देख रहे होंगे. जहां आपको दूर तक फैले मैदान, खेत, मेढ़ दिखाए दे रहे होंगे.
शीशे की चमचमाती खिड़की के इस तरफ से उन मैदानों, खेतों को देखते हुए आपको ख़याल आएंगे कि इतने सारे खेतों की ज़रूरत क्या है जब सारा समान 'बिग बास्केट' से मिल जाता है. एक तीव्र बौद्धिक विचार आपके मन में हिलोरें लेने लगेगा कि इन ज़मीनों पर बड़े-बड़े मॉल बनवा दिए जाएं तो कितने सारे लोगों को रोजगार मिल जाएगा. ये नौलखा आईडिया फौरन ट्वीटर पर डाल दीजिये. आप ट्वीट कर ही रहे होंगे कि वही पीली यूनिफार्म वाली लड़की अपने वजन से भारी ट्राली खींचती हुई आपके पास आकर रुकेगी और कहेगी, 'टी!' अब देखिए, यहीं आपका इम्तिहान है, वो आपसे ये नहीं कहेगी कि 'वुड यु लाइक टी?' वो सिर्फ इतना ही कहेगी 'टी'.. प्रश्न वाचक चिन्ह उसके वाक़्य में नहीं, चेहरे पर होगा. वहीं से समझिएगा वरना कंफ्यूज हो जाएंगे कि 'टी' दे रही है या मांग रही है.
ट्रेन का किराया इतना महंगा है कि अभी कम ही लोग इसमें सफ़र कर रहे हैं
ट्रेन कई स्टेशनों पर रुकेगी जहां आप प्लेटफार्म पर बदहवास भागते चेहरों को देखेंगे, घबराइयेगा मत क्योंकि साउंड प्रूफ़ शीशों का इंतज़ाम किया गया है. आप झोला उठाए इधर उधर भागते मुफ़लिस लोगों के बेहया शोर से डिस्टर्ब नहीं होंगे. ट्रेन के अंदर बज रहा 'ज़िन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो...' जारी रहेगा, एन्जॉय कीजिये.
थोड़ी देर में ट्रेन खिसकेगी तो आप प्लेटफार्म पर अनगिनत लोगों को देखेंगे जो किसी तरह जेनरल बोगी में घुसने के लिए धक्का मुक्की कर रहे होंगे. वो असभ्य लोग चीख-पुकार मचा रहे होंगे. पता नहीं क्यों उन लोगों को इस धक्का मुक्की में मज़ा आता है. ये नहीं कि चुपचाप टिकट करवा कर तेजस में बैठ जाएं. सत्तर फीसदी सीटें खाली जा रही हैं. मगर बहुत ज़िद्दी लोग हैं वो, ज़िद्द करते हैं कि सरकार जनरल डिब्बों की संख्या बढ़ाए. वो उन्हीं से जाने की जिद्द करते हैं. अरे जब तेजस और बुलेट ट्रेन चल गई है तो जनरल डिब्बों की क्या ज़िद है भई.
आप उन्हें देखकर भावुक मत होइएगा. ज़्यादा दिल घबराए तो सामने रखी मैगज़ीन खोल लीजिएगा. उसने टूरिज़म डेस्टिनेशन के तौर पर एम्स्टरडम और रोमानिया की तस्वीरें होगी. वो देखिएगा, दुनिया हसीन लगेगी. खाना खाइये, म्यूजिक सुनिये और दुनिया से ग़ाफ़िल हो जाइए. थोड़ी ही देर में एक उद्घोषणा होगी और तेजस से सफ़र करके आपने राष्ट्र निर्माण में जो अतुल्य सहयोग किया है उसके लिए आपका आभार प्रकट किया जाएगा. यात्रा मंगलमय हो.
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