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Updated: 19 मई, 2018 06:22 PM
अश्विनी कुमार
अश्विनी कुमार
 
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कर्नाटक की फिल्म बिल्कुल नई है. पूरे देश में रिलीज हो गई है. कहानी बासी होते हुए भी दिलचस्प है. क्योंकि इसमें ड्रामा है. एक्शन है. इमोशन है. और है जबरदस्त एंटी क्लाइमेक्स. सीन दर सीन समझिए और एंज्वाय कीजिए :

सीन 1 कर्नाटक की पृष्ठभूमि में स्वयंवर की तैयारी

भारत के कर्नाटक राज्य में एक स्वयंवर रचाया जाता है. तीन दूल्हे मैदान में होते हैं. एक बीजेपी. दूसरी कांग्रेस. और तीसरे का नाम है जेडीएस. स्वयंवर पर खूब खर्चे और चर्चे होते हैं. कहते हैं कि खर्चे का आंकड़ा 10500 करोड़ है और 24X7 बजते रहने वाले चैनल्स पर चर्चे के घंटे हजारों-लाखों में. नियमों के मुताबिक फैसला वाक् युद्ध से होना है. रणभेरी (चुनाव की घोषणा) बजती है. युद्ध शुरू होता है. बातों से, विचारों से. तर्कों से, कुतर्कों से.

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सीन 2 जंग-ए-मैदान में योद्धाओं की दस्तक

अपने-अपने दूल्हों की खूबियां बताने देश के कोने-कोने से योद्धा आते हैं. सब अपने वाले दूल्हे (अपनी पार्टी) को सर्वगुण संपन्न बताते हैं. तो दूसरे को अक्षम तक कह जाते हैं. दूसरे के दूल्हों के चरित्र पर भी सवाल उठाए जाते हैं. उनके खानदान भी खंगाल लिए जाते हैं.

सीन 3 एक दुल्हन की बेबसी

बेचारी दुल्हन (कर्नाटक) कातर नजरों से सबकुछ देखती और सहती है. ऐसी-ऐसी बातें एक-दूसरे के लिए कही जाती हैं कि दुल्हन शर्म के मारे घूंघट से अपने चेहरे का दीदार तक नहीं कराती है. (कर्नाटक की जरूरतों और आकांक्षाओं का प्रचार के दौरान कहां कोई दीदार हुआ.) उसकी चिंता इस बात को लेकर है कि आखिरकार उसे इन्हीं तीन में से किसी एक का वरण करना है. सुयोग्य हो या अयोग्य. लेकिन वधू उनके लिए जो-जो बातें सुन चुकी है, उसके बाद कोई भी ऐसे वर से शादी करने से घबरा जाए.

सीन 4 तीसरे दूल्हे के ढेर होने के संकेत

स्वयंवर आगे बढ़ता है. दुल्हन (कर्नाटक) तीसरे दूल्हे (जेडीएस) को सबसे पहले रिजेक्ट कर देती है. मैदान में उतरा बीजेपी नाम का दूल्हा पहले और कांग्रेस नाम का दूल्हा दूसरे नंबर पर नजर आ रहा होता है. लेकिन पहले नंबर पर होने के बावजूद उसमें कुछ ऐसे ऐब (बहुमत न होना) दिखते हैं कि जिससे उसके दुल्हन के काबिल होने पर सवाल उठ जाते हैं. फिर भी दुल्हन के पिता (गवर्नर) नंबर वन रहे दूल्हे को बेटी के लिए चुन लेते हैं. फेरे (शपथ) भी लगवा देते हैं.

सीन 5 हारे हुए दूल्हों का मिलकर पलटवार

पहले राउंड में दूसरे नंबर पर रहा दूल्हा पहले से खार खाए बैठा होता है. तीसरे नंबर के दूल्हे को शिखंडी बनाकर दूल्हन पर दावे के लिए निकल पड़ता है. लेकिन दुल्हन के पिता शादी के इस दूसरे प्रस्ताव को नामंजूर कर देते हैं. ये कहकर कि वो अपनी बेटी का हाथ खुद अनैतिक रिश्ते (चुनाव बाद गठबंधन) करने वालों (कांग्रेस+जेडीएस) के हाथ नहीं दे सकते. भले ही बेटी कुवांरी रह जाए. बेटी सदमे में होती है. शादी की रस्में पूरी हो चुकी होती है, लेकिन विदाई की डोली (बहुमत का आंकड़ा) उठ नहीं पा रही है.

सीन 6 हारे हुए दूल्हों का मास्टर स्ट्रोक

दूसरे और तीसरे नंबर वाला दूल्हा हार मानने के लिए तैयार नहीं है. दुल्हन के पिता (गवर्नर) के फैसले के खिलाफ सर्वदा ऊसूलों, संस्कारों और नियम के पक्के दादाजी (सुप्रीम कोर्ट) से खुद के खिलाफ हुए अन्याय पर गुहार लगाने पहुंच जाता है. दादाजी की पारखी आंखों को पहले नंबर वाले दूल्हे और शादी के विधि-विधान में कुछ ऐब नजर आ जाते हैं. उनका फैसला आता है कि मंडप (विधानसभा) में तय होगा कि किस दूल्हे के दावे में दम है और कौन संस्कारी दुल्हन के लायक नहीं है.

सीन 7 दूल्हों के बीच फाइनल फाइट

दूसरे नंबर वाला दूल्हा तीसरे वाले के समर्थन में स्वयंवर से खुद को पहले ही अलग कर चुका होता है. इसी बीच तय होता है कि सीमित युद्ध (विधानसभा में बहुमत परीक्षण) से विजेता दूल्हे का फैसला होगा. अब सारा खेल अपनी-अपनी सेना के जुगाड़ पर टिक गया था. महज कुछ घंटे का वक्त होता है. आखिरकार 19 मई को शाम 4 बजे का ऐतिहासिक वक्त भी आ जाता है.

सीन 8 कर्नाटक के स्वयंवर का एंटी क्लाइमेक्स

पहले नंबर वाले दूल्हे की आंखों से जैसे ही अश्रुधार फूट पड़ते हैं, वैसे ही तय हो जाता है कि उनका जुगाड़ फेल हो गया है. लड़ने से पहले ही वो अपनी सेना की कमजोरी समझ घुटने टेक देता है. 31 घंटे में ही दुल्हनिया दूल्हा नंबर वन को छोड़ चलती बनती है. बैकग्राउंड में एक गीत होता है- मैं चली...मैं चली... नंबर टू और थ्री दूल्हे की जुगाड़ की जुगलबंदी काम कर चुकी होती है.

सीन 9 स्वयंवर का आखिरी सीन

नंबर तीन वाले दूल्हे के सिर पर पगड़ी बंधी है. वो सात फेरे की तैयारी में है. नंबर दो वाले का डांस थमने का नाम नहीं ले रहा है. दूर खड़ा नंबर तीन वाला दूल्हा बुदबुदा रहा है- इक बेवफा से प्यार किया...हाय हमने ये क्या किया? तेरी गलियों में न रखेंगे कदम...आज के बाद...

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लेखक

अश्विनी कुमार अश्विनी कुमार

लेखक पेशे से टीवी पत्रकार हैं, जो समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं.

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