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Updated: 12 मई, 2020 06:53 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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आज जबसे माननीय के 8 बजे आगमन (PM Modi 8 PM Speech on Lockdown 4.0) की सुखद सूचना प्राप्त हुई है तब से हमारी बेचैनियां और बेताबियां कुछ इस तरह मचल रही हैं जैसे भीषण गर्मी में त्रस्त मगर अनायास ही पानी से मुंह बाहर निकाल लिया करते हैं. इस व्याकुलता को आगे बढ़ाने से पहले मोदी जी (PM Modi) हम तो आपसे एक करबद्ध निवेदन कर डालना चाहते हैं कि आप तो इस लॉक डाउन को मूर्त रूप दे इससे हमारा बियाह ही रचा दो. अब हम इस रिश्ते को वैध एवं औपचारिक रूप से मान्यता देने का पक्का मन बना लिये हैं. अब 'मन की बात' तो आप ख़ूब समझते ही हैं न. एक बार बियाह हो जाए तो अपन भी दिल पे पत्थर रख यह सोच इसे निभा लेंगे कि भैया! अरेंज मैरिज़ में तो समझौते करने ही पड़ते हैं. सौ बात की एक बात ये है जी कि अब हम और हमारे लॉक डाउन के बीच आप लवगुरु बन के न रहें, तो भी चलेगा. वो क्या है न कि इतने दिनों में इसे हम इतनी अच्छी तरह जान चुके हैं कि जन्म-जन्मांतर का सा रिश्ता लगने लगा है.

सड़क, मल्टीप्लेक्स, दुकानें, सब्जियां क्या होती हैं और जानवर आजकल क्यों इतने चौड़ाकर चल रहे वो भी इसने हमें सिखा ही दिया है. और हां, ज़बर मोहब्बत भी हो गई है इससे हमें तो लॉक डाउन को ही हमने अपना वर मान लिया है. उसपे इत्तिफ़ाक़ से बालिग़ भी हैं, अपना भला-बुरा ख़ूब समझते हैं तो अब समझाने को बचा क्या?

Lockdown, PM Modi, Coronavirus, Disease लॉक डाउन की इस बंदी को देखकर अब हमें और अपने मन को उचाट नहीं करना चाहिए

हम आपका दिल से सम्मान करते हैं जी, इसलिए अपना समझ ही सूत्रों से प्राप्त ये अंदर की बात बता रहे, प्लीज! बुरा मत मान जाईयेगा. लेकिन सच्चाई तो ये है कि आप जब कुछ कहने की सोचते हैं न तो हमें संयुक्त परिवार में दरवाज़े पर बैठे वे बुज़ुर्ग याद आते हैं जो सबको बुला-बुलाकर हर बात समझाते हैं, और हिदायतें देना कभी नहीं भूलते. अब शुरू में तो बेटे-बहुयें मुंडी नीची करकर सब सुन लेते हैं तत्पश्चात चरण स्पर्श कर धन्य महसूस करना भी नहीं भूलते

पर जब जे रोज़-रोज़ होन लग जाय न, तो बे बिचारे बचके दूसरे रास्ते से निकलन लग जात हैं. उसमें बेज़्जती बाली कोनऊ बात नाहिं. बस जेई है कि बच्चन को सब पता होत है कि जे का बोलबे वारे हैं. बैसे बच्चा लोग सम्मान तो बड़न को भौतई जादा कत्त हैं. औरन की का कहें हमई जब अपने बच्चा को एक ही स्टोरी अलग-अलग स्टाइल में तीसरी बार सुनाना शुरू करते हैं तो वे ऐसे नौ-दो-ग्यारह होते हैं जैसे गधे के सिर से सींग. ज़माना अच्छा थोड़े न आजकल. पर आप हो न जी, तो हमको पूरा विश्वास है कि अच्छे दिन तो अब आयेंगे ही आयेंगे. बचके कहां जायेंगे?

दुनिया ग़वाह है, हम तो आपकी हर बात ईश्वर की आवाज़ समझ ही मानते आ रहे. नोटबंदी-फोटबंदी तो पुरानी बात, आप तो हमरा करेंट परफॉर्मेंस देखो जी -हमने थाली बजाई क्योंकि मोदी जी ने कहा.हमने दीप प्रज्ज्वलित किया क्योंकि मोदी जी ने कहा. हम फ़ूलों की बारिश से बावले हुए और दारू की दीवानगी तो ख़ैर आपने भी देखी ही होगी. पर हम नहीं पीते हैं जी. वो अलग बात है कि इस चक्कर में हम असल दुश्मन कोरोना वायरस से ही लड़ना भूल गए.

अपन भारतीयों की भावनाओं में बहकर थोड़ा ओवरएक्टिंग करने की पुरानी आदत है तो आपके आदेश को फॉलो करते समय भोले मानस तनिक मिस्टेकिया गए थे. आपने माफ़ कर दिया क्योंकि आपका दिल बहुत बड़ा है. बस, इसी बड़े दिल की ख़ातिर अब हमें हमारे लॉक डाउन के साथ चैन से गुज़र बसर करने दीजिये  आप भी चिल्ल मारिये. दिल करे तो बाक़ी मुद्दे देखिये जी, ये वाला तो हम संभाल लेंगे.

आज आपका जो भी आदेश होगा, उसके लिए हमें कुछ नहीं कहना क्योंकि वो तो सबको स्वीकार्य होगा ही. पर वैसे हमारा हृदयतल से यह मानना है कि 'जोशी पड़ोसी कुछ भी बोले/ हम कुछ नईं बोलेगा/ हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है.'

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लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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