लड़कियों, जरा डरो अपने हार्मोन्स से...
वैसे ये बात आपने ठीक नहीं कही मेनका जी, कि ये लड़कियों की सेफ्टी के लिए है. ऐसी हार्मोनों की बाढ़ से अकुलाई लड़कियों से तो मर्दों को सुरक्षा की जरूरत है.
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लड़कियों.. खौफ़ खाओ रे अपने उबलते हार्मोनों से. दुनिया बर्बाद करके छोड़ोगी तुम नासपीटियों. इस महिला दिवस पर कसम खाओ कि-
1- शाम छह बजे के बाद घर के बाहर कदम निकालना तो दूर की बात, खिड़की के बाहर देखोगी तक नहीं.
2- जब तक तसल्ली न कर लो कि दरवाजे पर कोई पुरुष नहीं है तब तक घर की बैल बजने पर भी दरवाजा नहीं खोलोगी.
3- सूर्यास्त के बाद खिड़की-दरवाजे अंदर से ताले बन्द करके चाबी बाहर फेंक दोगी. सुबह दूधवाला ही आकर तुम्हें मुक्त करेगा.
4- रात की ट्रेनों में सफर खुद ही बन्द कर दोगी या सरकार को नियम बनाना पड़ेगा?
5- जेब में सदा आठ दस राखियां रखोगी. अगर गलती से कोई पुरुष रात में दिख जाए तो उसे तत्काल राखी बांध दोगी ताकि हारमोन का प्रवाह नियंत्रित रहे.
मेनका जी...मुझे नहीं लगता कि ये दुष्ट और राक्षसी लड़कियां इनमें से एक भी बात मानेंगी. लक्ष्मण रेखा से बाहर तो ये कब की निकल चुकीं और हारमोन पर तो आप जानती ही हैं कि किसी का बस चलता नहीं है. अच्छे खुशबू वाले मर्दाना डियो सूंघकर ही जब लड़कियां पुरुषों पर लटक जाती हैं तो शाम को तो क्या हाल करेंगी मर्दों का. वैसे ये बात आपने ठीक नहीं कही कि ये लड़कियों की सेफ्टी के लिए है. ऐसी हार्मोनों की बाढ़ से अकुलाई लड़कियों से तो मर्दों को सुरक्षा की जरूरत है.
आप यूं करो कि पुरुषों को कहो कि वे एक एक बुर्का खरीद लें और शाम के बाद पहन कर निकलें. वो आपकी बात जरूर मानेंगे. आखिर किसी न किसी को तो देश, दुनिया बचानी ही होगी.
और आपको इस सर्वथा नयी और मौलिक थ्योरी की ईज़ाद के लिए नोबल पुरस्कार मिलने की अग्रिम बधाई.
लगी रहिये.. सही जा रही हैं. अगले महिला दिवस तक आप लड़कियों के हार्मोनों का दोपहर में आउट बर्स्ट का अध्ययन कर रिपोर्ट प्रस्तुत कर देंगी, हमे भरोसा है.
अरे हां...एक बात पूछनी थी देर रात फेसबुक पर पोस्ट डालने से तो हारमोन नहीं उबलते ना मैम ?
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