काश 'मेरा यशु यशु' वाला वीडियो कोरोना काल से पहले आया होता!
कहना गलत नही होगा कि भारत में कभी भी प्रतिभाओं की कमी नही रही है. लेकिन, समस्या केवल इतनी सी है कि हमारा देश कभी भी सही दिशा में काम नहीं करता है. हमारे देश के पास वो नजर ही नही है, जो प्रतिभाओं को पहचान सके. यही वजह है कि भारत अभी भी 'विश्वगुरू' बनने की केवल कोशिश कर रहा है.
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यूं तो बॉलीवुड की फिल्मों का लॉजिक और विज्ञान के नियमों के साथ 36 का आंकड़ा रहता है. लेकिन, भारत 'विश्वगुरू' बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है, तो हॉलीवुड की फिल्में भी अब इस मामले में बॉलीवुड से प्रेरणा ले रही हैं. कुछ दिनों पहले ही हॉलीवुड की फास्ट एंड फ्यूरियस फ्रेंचाइज की 9वीं फिल्म दुनियाभर में रिलीज हुई थी. तेज रफ्तार कारों के साथ रोमांच के कॉकटेल पर लोगों ने भरपूर प्यार लुटाया था. लेकिन, इस फिल्म में भी बॉलीवुड की तरह ही तमाम एक्शन सीन में लॉजिक और विज्ञान के नियमों को तिलांजलि देते हुए एक बेहतरीन मसाला मूवी बना दी गई. दरअसल, भारत की सीमा में एंट्री के साथ ही लॉजिक और विज्ञान के नियम दम तोड़ देते हैं. ऐसा कहने की वजह बहुत साफ है. दरअसल, इन दिनों 'मेरा यशु यशु' के बैकग्राउंड म्यूजिक वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर जबरदस्त हलचल मचाए हुए है. जिसमें दावा किया जा रहा है कि एक शख्स मंच पर मौजूद बच्चे की गूंगी बहन के लिए प्रार्थना करते हैं और वो बोलने लगती है. इतना ही नहीं इसी वीडियो में एक जन्मांध व्यक्ति भी केवल सिर पर हाथ रख देने से देखने लगता है. वो वीडियो देखते ही मुझे समझ आ गया कि भारत को चमत्कारों का देश यूं ही नही कहा जाता है.
कहना गलत नही होगा कि भारत में कभी भी प्रतिभाओं की कमी नही रही है. लेकिन, समस्या केवल इतनी सी है कि हमारा देश कभी भी सही दिशा में काम नहीं करता है. हमारे देश के पास वो नजर ही नही है, जो प्रतिभाओं को पहचान सके. यही वजह है कि भारत अभी भी 'विश्वगुरू' बनने की केवल कोशिश कर रहा है. भारत सरकार कोशिश कर रही है कि हमारी अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन डॉलर की हो जाए. लेकिन, इसके लिए अब तक जो भी प्रयास किए गए हैं, वो सही दिशा में किए ही नहीं गए. भारत की सोच है कि अपने डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, साइंटिस्ट जैसी प्रतिभाओं के दम पर विश्व में अपनी काबिलियत का डंका बजवाए. लेकिन, बात वही आ जाती है कि भारत का दृष्टिकोण सही दिशा से भटका हुआ है. हमारे यहां धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर्स से ज्यादा चमत्कार तो बाबा-पीर-प्रीस्ट कर देते हैं. आखिर भारत सरकार इन लोगों को आगे बढ़ाने के विषय में क्यों नहीं सोचती है.
जस्ट इमेजिन...कि काश...कोरोना महामारी आने से पहले ये 'मेरा यशु यशु' वाला वीडियो आ गया होता, तो क्या होता? कोरोना महामारी की वजह से भारत की जो अर्थव्यवस्था धड़ाम होकर मुंह के बल गिर चुकी है, वो दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी बन सकती थी. दुनिया के हर देश से हमारे राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते उन ऊंचाईयों को छू रहे होते, जिसे लेकर केवल कल्पना ही की जा सकती है. लिखी सी बात है कि जो शख्स गूंगे और जन्मांध लोगों को ठीक कर सकता है, उसके पास कोरोना महामारी का इलाज न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता है. दुनियाभर में कोरोना से संक्रमित हुए लोगों का आंकड़ा करीब 22 करोड़ के आसपास है. अगर इतने सारे लोग भारत में आकर कोरोना का इलाज कराते, तो भारत एक साल के अंदर ही दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाता. दुनियाभर में जिन 45 लाख लोगों ने कोरोना संक्रमण की वजह से अपनी जान गंवाई. ये शख्स उनकी जान बचाकर मानवता की नई मिसाल बन सकता था.
अगर देखा जाए, तो भारत में ऐसे चमत्कार करने वाले लोग हजारों की संख्या में मिल जाएंगे. अब 135 करोड़ की आबादी को संभालने के लिए कम से कम इतने लोग तो होने ही चाहिए. हां, आंकड़ों को लेकर मैं थोड़ा सा कन्फ्यूज हूं. क्योंकि, आसाराम, बाबा राम रहीम, रामपाल जैसे कई बाबा जेल पहुंच चुके हैं, तो गिनती ऊपर-नीचे हो जाए, तो इसका दोष मुझे मत दीजिएगा. वैसे भी भारत के बाजारों में चीन ने अपना इतना सारा चायनीज माल डंप कर दिया है कि आप कुछ भी लेने जाओ, उसकी गारंटी नही है. फिर वो चाहे बाबा ही क्यों न हो. भारत के पॉलिसीमेकर्स के साथ ये समस्या हमेशा से रही है. वो हर जगह चूक जाते हैं. जहां काम करना चाहिए, वहां काम ही नहीं करेंगे. दुनियाभर में ऐसा शायद ही कोई आदमी होगा, जो कभी बीमार न पड़ा हो. सोचिए चिकित्सा के मामले में भारत का नाम विश्व पटल पर स्वर्णाक्षरों से लिखा जा सकता था. लेकिन, भारत सरकार की कमजोर नजर से ये मौका हाथ से निकल गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा को अवसर में बदलने की बात तो कह दी. लेकिन, खुद इस अवसर को पहचानने से चूक गए. भारत में ये हमेशा का रायता बन गया है कि पहले खुद को प्रूफ करो, तब ही कुछ होगा. इसका अंदाजा भारत में क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधाओं से ही पता चल जाता है. मतलब जब तक बेहतरीन प्रदर्शन न करो, सरकारें जागती ही नही हैं. भारत में सरकारें कभी भी प्री-एक्टिव नजर ही नही आती हैं. खैर, इन भाईसाहब ने लोगों के साथ ही सरकारों को भी राह दिखा दी है कि उन्हें किस दिशा में काम करना है. अगर सरकारें इन्हें पहचान कर इस विषय पर कुछ काम करें, तो देश का भला होगा.
खैर, हास्य से इतर ये समझना जरूरी है कि हमें और सरकारों को केवल कोरोना से नहीं लड़ना है, इन जैसे अंधविश्वास और पाखंड के प्रतिमूर्ति बन चुके लोगों से भी बचना है. कोरोना वायरस का इलाज तो वैक्सीन के तौर पर आ गया है. लेकिन, इन पाखंडियों के लिए हमें और आपको ही वैक्सीन खोजनी होगी. अगर नहीं खोजेंगे, तो समोसे को लाल वाली चटनी की जगह हरी वाली चटनी से खाने की सलाह पर भक्ति बनाए रखिए, कृपा बरसती रहेगी. वैसे, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइटस ने चंडीगढ़ के डीसी को चर्च ऑफ ग्लोरी विजडम के पादरी बजिदर सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश तक दी है.
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