मोटेरा के सरदार पटेल स्टेडियम का नाम यूं ही 'नरेंद्र मोदी स्टेडियम' न हुआ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से विश्व का सबसे बड़ा स्टेडियम बना है तो ये तो हम सबके लिए गौरव की बात है. पर चूंकि सरदार पटेल के नाम वाला स्टेडियम अब माननीय के नाम से पुकारा जाएगा, इस सोच ने ही हमें यक़ायक़ ख़ुशी और ग़म से एक साथ लबरेज़ कर दिया है.
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मोदी जी जो भी करें उससे हमें कोई दिक़्क़त नहीं है जी. बल्कि हम तो 'मोहैतोमुहै' को राष्ट्रीय नारा मान सदैव उन्हें दंडवत प्रणाम ही करते आए हैं. लेकिन अबकी बार जो ख़बर आई है उसे लेकर हम बेहद कंफ्यूज हैं. समझ ही नहीं आ रहा कि बधाई देनी चैये कि नहीं! मतलब आदरणीय मोदी जी के नाम से विश्व का सबसे बड़ा स्टेडियम बना है तो ये तो हम सबके लिए गौरव की बात है. हर भारतीय की छाती चौड़ जानी चाहिए. दिल भीतर तक गदगदा जाए, ऐसे भाव प्रस्फुटित होने चाहिए. पर चूंकि सरदार पटेल के नाम वाला स्टेडियम अब माननीय के नाम से पुकारा जाएगा, इस सोच ने ही हमें यक़ायक़ ख़ुशी और ग़म से एक साथ लबरेज़ कर दिया है. दिल और चेहरे के जो भाव हैं वो डिट्टो वही हैं जो 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो/ क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो' में नायिका की अवस्था को व्यक्त करते हैं.
मोटेरा स्टेडियम के नए नाम ने एक नयी बहस का आगाज कर दिया है
मतलब! आई मीन! अरे! महाराज आपका नेहरू जी को रिप्लेस करना तो समझ आता है, पार्टी का नित पुराने स्थानों के नाम बदलने का शौक़ भी जगज़ाहिर है ही! पर सरदार पटेल?? ये तो आपके अपने हैं जी! आपने चीख-चीखकर दुनिया को उनके बारे में बताया है (भले ही दुनिया उन्हें पहले से लौहपुरुष मानती ही रही है), उनसे अपने जुड़ाव और अपनेपन की गाथाएं विश्व को समर्पित की हैं. उन्हें अपनी पार्टी का सिद्ध कर, कांग्रेस और नेहरू जी से खुन्नस को सत्यापित भी करते आए हैं. आज उन्हीं पटेल जी को कैसे भुला दिया आपने?
अरे! कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी कारण उनकी सबसे ऊंची मूर्ति पहले ही लगवा दी थी कि फिर अपन तो इधर एडजस्ट हो ही लेंगे. हमें दुनिया के सबसे विशाल स्टेडियम की जितनी प्रसन्नता है, उतना ही इस बात का दुःख भी कि अंततः इस कांग्रेसी मानसिकता को आपने भी अपना ही लिया. हालांकि आपकी दूरदर्शिता और सोच पर तनिक भी संदेह करने की कोई गुंजाइश ही न बची हमारे मस्तिष्क में पर फिर भी दिल है कि मानता ही नहीं! रह-रहकर आपकी धवल छवि को, चकाचक देखने की गुहार लगाता रहता है.
ख़ैर! जो भी हो, हम तो ये मानते और जानते हैं कि आपने किया है तो अच्छा ही होगा. अच्छे दिन और अच्छे युग में जीने का मज़ा ही अलग लेवल का होता है भिया! हमको तो बहुत ही ज्यादा आ रहा है. आपको लख-लख बधाई पहुंचे! अच्छा, हमको इसका डिज़ाइन भी शानदार लगा. वो अंडाकार संरचना और उसमें रची-बसी हरियाली से उभरता केसरिया मुकुट! अहा! कैसा दुर्लभ दृश्य है.
बस, एक बात हमें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी और वो ये कि इस ऐतिहासिक अवसर पर आप स्वयं क्यों न आए? घोषणा के बाद ओपनिंग बैट्समेन को देखने का आनंद ही अलग होता. यूं मन तो अभी भी टकाटक रूप से आह्लादित और भावविभोर का कॉम्बो पैक बना ही हुआ है. आप दोनों की शतकीय पारी देखने की आस में जीवन जिए जा रहे हैं.
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