अखिलेश समझ गए होंगे मम्मी ने बचपन में वो बात क्यों कही थी...
अखिलेश ने जिस तरह राहुल गांधी से हाथ मिलाया और साथ प्रचार किया उससे एक बात तो साफ है कि अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना है.
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उत्तर प्रदेश में चुनावी दंगल के नतीजे आ चुके हैं, क्या मुलायम, क्या राहुल, कौन अखिलेश कैसी माया, इस वक़्त सूबे में कमल खिल चुका है माहौल पूरा का पूरा केसरिया है. हर तरफ जश्न का माहौल है. इसके इतर कुछ ही घंटों बाद होलिका दहन होगा, होलिका दहन यानी बुराई पर अच्छाई की जीत. लोग सारे बैर भुलाके एक दूसरे के घर जाएंगे एक दूसरे को रंग लगाएंगे. बड़ा प्यारा त्योहार है होली.
खैर मैं बात होली और उत्तर प्रदेश चुनाव पर करने वाला था मगर अचानक ही मुझे “गंदे बच्चों” कि याद आ गयी. हममें से हर कोई भारतीय अपने बचपन से लेकर जवानी तक प्रायः ये शब्द सुनते हुए बड़ा हुआ है. याद तो आपको भी होगा जब बचपन में माता जी ने कहा था “तुम फिर उसके साथ खेले जानते नहीं वो गंदा बच्चा है” या फिर “आज तुम फिर उस गंदे बच्चे के साथ थे. आने दो पापा को अब वही तुम्हारी खबर लेंगे”
मितरों आप शायद अचरज में पड़ गए हों और ये सोच रहे हों कि होली की पूर्वसंध्या पर और बीजेपी की इस आश्चर्यजनक और ऐतिहासिक जीत के बीच आखिर ये गंदे बच्चे कहां से आ गए. तो चलिए आपकी शंका को विराम देते हुए बताता हूं कि आखिर ये गंदे बच्चा है कौन? बात उत्तर प्रदेश चुनाव से शुरू हुई थी अब तक आपने भी गेस कर लिया होगा और हां आपका गेस एकदम सही है मैं “राहुल गांधी” की ही बात कर रहा था.
वही राहुल गांधी जो कभी आलू की फैक्ट्री या फिर पाइन एप्पल और कोकोनट के जूस के लिए इंटरनेट पर ट्रॉल किये जाते हैं, तो कभी इस कारण सुर्ख़ियों में आ जाते हैं कि गरीबी स्टेट ऑफ माइंड है. राहुल निराले हैं उनकी अदाएं और बातें उससे भी ज्यादा निराली हैं. ये इतने निराले हैं कि पिछले चुनावों में इनके भाषणों और कांग्रेस की स्थिति को देखकर प्रसिद्द इतिहासकार रामचंद्र गुहा को राहुल गांधी को सलाह देते हुए कहना पड़ा कि “राहुल गांधी को रिटायर हो जाना चाहिए” पूर्ण विश्वास के साथ गुहा 2016 में ही ये बात कह चुके थे कि “भविष्य में बीजेपी इकलौती राष्ट्रीय पार्टी बनकर उभरेगी” साथ ही गुहा ने राहुल गांधी को उपहास का पात्र मानते हुए कहा था कि “कांग्रेस में बुद्धिजीवी और बेहद संवेदनशील नेता है मगर वो गांधियों पर क्यों निर्भर हैं ये बात समझ के परे हैं”.
2016 में दिये गए उस स्टेटमेंट में गुहा का ये भी तर्क था कि यदि कांग्रेस अपना भला चाहती है तो वो राहुल और समस्त गांधी परिवार को सिरे से खारिज करे और एक ऐसा नेता लेकर आए जो मेहनती और सूझ बूझ वाला हो. यदि कांग्रेस ऐसा कर लेती है तो ठीक वरना सम्पूर्ण भारत से आने वाले 20–25 सालों में कांग्रेस विलुप्त हो जायगी.
वो 2016 था ये 2017 है जो होना था हो चुका, राहुल खुद भी गए और अखिलेश को भी ले डूबे. 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को 300 से ऊपर मिली सीटें ये साफ–साफ दर्शा रही हैं कि कहीं न कहीं यूपी के लोग समाजवादी पार्टी से खफा थे और आग में खर डालने का काम किया राहुल के साथ ने. एक गंदे लड़के ने अखिलेश को अच्छा लड़का कहा था, शायद अखिलेश लड़के ही थे, उनमें इतनी पॉलिटिकल समझ न थी कि उनका ये फैसला उन्हें गर्त के अंधेरों में डाल सकता है.
अखिलेश को लगा उन्होंने फाइलों पर मेट्रो चलवा कर कागजों में विकास किया है मगर ये सोचना उनके लिए एक बड़ी भूल थी. लोगों ने न कागजों को देखा न फाइलों में चलने वाली मेट्रो को देखा उन्होंने जो देखा वो था राहुल का साथ जिसे कोई भी समझदार आदमी शायद ही पचा पाए. उत्तर प्रदेश का नागरिक होने के नाते मेरे लिए ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि उत्तर प्रदेश में लॉ एंड आर्डर अपने सबसे बुरे रूप में था पूर्वांचल से लेके पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में अपराध अपने चरम पर था. शिक्षा के ग्राफ का लगातार गिरना, माइनॉरिटी को लुभाने के लिए अखिलेश की योजनाएं ऐसे कई कारण हैं जिसके चलते प्रदेश की जनता ने अखिलेश और उनकी समाजवादी पार्टी को सिरे से नकार दिया.
अंत में मैं बस अखिलेश को एक छोटी से सीख देते हुए अपनी बात खत्म करना चाहुंगा- सुनो अखिलेश “मनुष्य "छिपकली" के साथ जीवन निर्वाह कर सकता है मगर "गिरगिट" के साथ नहीं. अतः अपने जीवन में गिरगिटों से सावधान रहो और मौका मिलते ही उन्हें अपने आप से अलग कर दो”
खैर, शायद ये मेरा दीवानापन और अखिलेश के प्रति मुहब्बत ही है जिसके चलते मैं अखिलेश को ये लाख टके की बात से अवगत करा रहा हूं. अखिलेश अब क्या सुनेंगे उन्होंने तो खुद कुल्हाड़ी पर पैर मारा था. मैं अखिलेश को आदमी होशियार समझता था मगर वो वैसे नहीं थे जैसा मैंने सोचा था. जिस तरह उन्होंने राहुल से हाथ मिलाया और साथ प्रचार किया उससे एक बात साफ है, अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना है उनमें विजन है मगर विजन तब सार्थक होता है जब सही साथ मिले. मुझे पूरा विश्वास है ये चुनाव अखिलेश के लिए कई मायनों में खास रहेगा और इससे उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला होगा.
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