पंजाब के किसानों की कीमत 1500, मैटर बहुत शर्मनाक है...
दिल्ली में धरना दे रहे किसान सशक्त हों, इसलिए पंजाब में पंचायत हुई है और धरने के लिए दिल्ली न जाने वाले पर 1500 का जुर्माना लगाने की बात हुई है. पंजाब के किसानों की कीमत अगर सिर्फ 1500 रुपए है, तो ये वाक़ई बहुत शर्मनाक है. और वहां पंचायत को फिर से इसके लिए एक पंचायत करनी चाहिए.
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मुहम्मद बिन तुग़लक़. वो जिसे इतिहास ने एक सनकी बादशाह कहा. तुगलक की सनक के इतने किस्से हैं कि यदि आदमी सुनाने बैठे तो कई-कई वॉल्यूम में किताबें छपकर तैयार हो जाएं. तुगलक के जीवन की कोई उपलब्धि रही हो या न रही हो लेकिन हां एक उपलब्धि जरूर है. हम भारतीयों ने अपने एक मुहावरे का नामकरण ही तुगलक के नाम पर कर दिया है. मुहावरा आपको भी शायद पता ही हो. मुहावरा है 'तुगलकी फरमान' अर्थ है कोई ऐसी बेढंगी और बेसिर पैर वाली बात जिसे मानना है तो बस मानना है कोई If और But नहीं. पंजाब में भी ऐसा ही हुआ है. वहां किसानों की एक पंचायत हुई है जिसमें एक 'तुगलकी फरमान' सुनाया गया है जिसके बाद शायद ही कोई If और But वाली माथापच्ची कर पाए. असल में हुआ ये है कि किसानों के समर्थन में भीड़ जुटाने के लिए बठिंडा के गांव विर्क खुर्द में एक पंचायत हुई जिसमें कहा गया है कि गांव के हर परिवार का एक व्यक्ति तुरंत दिल्ली बॉर्डर पहुंचे, अन्यथा परिवार पर 1500 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा. वहीं यदि व्यक्ति जुर्माना नहीं अदा करता है तो गांव से हुक्का पानी बंद. सुनने में तो ये भी आ रहा है कि पंजाब की अन्य पंचायतों को ये फरमान इतना अच्छा लगा है कि उन्होंने भी एक दूसरे से कह दिया है कि भाई चलो अपन सब भी ऐसा ही करते हैं.
किसान आंदोलन की आगे की रणनीति क्या होगी इसके लिए पंजाब में पंचायतों का सिलसिला शुरू हो गया है
चूंकि दिल्ली से सटी सीमाओं पर भारी पुलिस बल तैनात है और ठीक ठाक एक्शन भी लिया जा रहा है जिस कारण किसान धरना छोड़ रहे हैं. एक तरफ ये बात है दूसरी तरफ पंचायत के हुक्का गुड़गुड़ाते नेताओं या ये कहें कि बुजुर्गों की बात है जिन्होंने पुलिसिया एक्शन को महज अफवाह बताया है.
अब चूंकि धरना स्थल पर भीड़ बढ़ाने के लिए पंचायतों ने कमर कसी है तो गुरुद्वारों का भरपूर सहयोग लिया जा रहा है. गुरुद्वारों से अनाउंसमेंट हो रहा है कि मोर्चा अभी भी है. गांव के किसान तत्काल प्रभाव में दिल्ली पहुंचें और किसी तरह की अफवाह पर अपने कान न दें. फरमान ये भी है कि जो भी गांव से निकलकर आंदोलन के लिए दिल्ली आएगा उसे वहां कम से कम 7 दिन बिताने हैं.
अच्छी बात ये है कि यदि किसी गांव वाले के वाहन को नुकसान होता है तो नुकसान की जिम्मेदारी पूरा गांव उठाएगा. गाड़ी घोड़े के मुआवजे तक तो फिर भी ठीक है और सारी बातें भी अपनी जगह हैं. मगर जो बात न केवल आहत करती है बल्कि आश्चर्य में डालती है वो ये कि यदि कोई किसान धरने के लिए दिल्ली नहीं गया तो उसपर 1500 रुपए का जुर्माना लगेगा.
मतलब इतने इम्पॉर्टेन्ट मैटर पर सिर्फ 1500. नहीं मतलब इस महंगाई के दौर में अगर 2-4 दोस्त छोले भटूरे खाने और लस्सी पीने किसी अच्छे रेस्टुरेंट में चले जाएं तो इससे दोगुने का बिल आएगा. आज के समय में होता ही क्या है 1500 रुपया. बाक़ी देखा जाए तो इस तुगलकी फरमान से पंचायत के चचा और ताऊओं ने केवल अपना ही परिहास किया है.
कैसे? तो बड़ा सिंपल लॉजिक है मान लीजिए किसी का दिल्ली जाने का मूड न हो और वो कह दे कि उसे खट्टी डकार के साथ दस्त लग गए और बदले में 1500 दे दे तो किसान आंदोलन की इससे बड़ी तौहीन शायद ही कोई हो. बाकी पंचायत के फरमान में एक क्लॉज़ वो हुक्का पानी बंद करने वाला है तो हां ये थोड़ा सीरियस मैटर है.
किसी के घर दूध फट जाए और उसे चाय की भयंकर तलब लगे तो वो गरीब किसी से न तो एक प्याली दूध ही मांग सकता है और न ही कोई उसे देगा. उसपर बात हो सकती है. इस मैटर पर भले ही संवाद की गुंजाइश हो लेकिन अब भी वो 1500 रुपए वाली बात हमारे गले के नीचे नहीं उतर रही.
बात एकदम सीधी और शीशे की तरह साफ है. इतने बड़े मतलब बहुत बड़े और तारीखी आंदोलन के लिए यदि पंजाब के किसानों की कीमत सिर्फ 1500 रुपए है, तो ये वाक़ई बहुत शर्मनाक है. ये इतनी और इस हद तक शर्मनाक है कि बठिंडा के गांव के बड़े बुजुर्गों को न केवल इस पूरे मैटर पर पुनर्विचार करना चाहिए. बल्कि वहां पंचायत को फिर से इसके लिए एक पंचायत करनी चाहिए और जुर्माने वाला अमाउंट बढ़ाकर एक ऐसा रकम करनी चाहिए, जो सुनने के साथ साथ बताने में भी अच्छी लगे.
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