इकोनॉमी और राहुल गांधी... दोनों पर मंदी की मार!
लोकसभा से लेकर विधानसभा तक किसी भी चुनाव में हार का मुंह देखने के बाद राहुल गांधी का विदेश जाना किसी से छुपा नहीं है. राहुल हर हार के बाद विदेश क्यों जाते हैं इसका पर्दाफाश खुद उनकी पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कर दिया है.
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स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से.
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे.
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे,
पंक्तियां मशहूर दिवंगत कवि गोपालदास नीरज की हैं. अगर इन पंक्तियों को किसी पर फिट बैठाना हो तो मौजूदा वक़्त में कांग्रेस से बेहतर उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता. महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे हमारे सामने हैं कांग्रेस ने जो मिट्टी पलीत की है क्या ही कहा जाए पार्टी के लिए स्थिति कारवां गुजरने के बाद गुबार देखने वाली हो रही है. बात निकली है तो दूर तक जाएगी और आते आते राहुल गांधी तक आएगी. राहुल गांधी कमाल के आदमी हैं. राहुल गांधी इतने कमाल हैं कि 2014 से 19 के बीच अगर देश में इतनी बड़ी संख्या में कमल खिला है तो इसका पूरा श्रेय अगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है तो उस हिस्से में से तीन चौथाई काट लेना चाहिए और उसे राहुल गांधी को समर्पित कर देना चाहिए. बात राहुल गांधी पर निकली है और राहुल गांधी हैं जो इन दिनों दिख नहीं रहे. सवाल होगा कि राहुल कहां हैं ? जवाब है विदेश. राहुल का विदेश जाना कोई नया नहीं है. नई बात वो है जो पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में बताई है. सुरजेवाला ने बताया है कि राहुल गांधी 'ध्यान' लगाने विदेश गए हैं.
राहुल गांधी बार बार विदेश क्यों जाते हैं ये राज सुरजेवाला ने खोल दिया है
अक्टूबर माह में दूसरी बार विदेश गए राहुल गांधी की यात्रा पर पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि राहुल गांधी पहले भी समय-समय पर ध्यान साधना के लिए विदेश जाते रहे हैं. पार्टी के विरोध प्रदर्शनों की रूपरेखा उन्हीं के निर्देशन में तैयार की गई है.
अपनी पत्रकार वार्ता में रणदीप सुरजेवाला ने विरोध प्रदर्शनों की रूपरेखा का जिक्र किया है तो बता दें कि खराब अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी, देश की सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रही है. कांग्रेस 1 से 8 नवंबर के बीच 35 प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सरकार को घेरने की कोशिश करेगी. 5 से 15 नवंबर के बीच इसी मुद्दे पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन भी किए जाएंगे.
R Surjewala,Congress: Rahul Gandhi has gone in the past from time to time on a meditational visit, on which he is currently there, this entire programme (35 PCs from 1-8 Nov against Central govt over economic situation) was drafted as per his direction & in consultation with him. pic.twitter.com/5Y4bK2XjCB
— ANI (@ANI) October 30, 2019
राहुल गांधी विदेश हैं मगर पार्टी उनसे मिली प्रेरणा को आधार बनाकर देश की गिरती इकॉनमी के विरोध में प्रदर्शन करने वाली है. अगर देश की इकॉनमी और राहुल गांधी दोनों का एक साथ अवलोकन किया जाए तो ये कहना कहीं से भी गलटी नहीं है कि मौजूदा वक़्त में जो हाल देश की अर्थव्यवस्था का है उसी से मिलता जुलता हाल राहुल गांधी का है. यानी अर्थव्यवस्था और राहुल गांधी दोनों ही मंदी की मार झेल रहे हैं.
तो आइये नजर डालें उन कारणों पर जो राहुल गांधी और अर्थव्यवस्था में छाई मंदी में गहरी समानता दिखाएंगे और बताएंगे कि कैसे दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे या ये कहें कि बिछड़े भाई हैं.
अर्थव्यवस्था और राहुल गांधी कहां हैं किसी को नहीं है खबर
देश की वित्त मंत्री भले ही पावर पॉइंट पर स्लाइड बना बनाकर मीडिया के माध्यम से देश की जनता को समझा रही हों कि सब कुछ ठीक है मगर ऐसा है नहीं. वर्तमान में या तो देश की जनता के पास रोजगार है नहीं या फिर जिनके पास है उन्हें लगातार ये डर बना हुआ है कि किसी भी क्षण उनकी नौकरी जा सकती है.
बात अगर कंपनियों की हो तो बड़ी बड़ी कम्पनियां बंद हो गई हैं जिस कारण अर्थव्यवस्था पर संकट छाया हुआ है. जैसे अर्थव्यवस्था में क्या चल रहा है बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों को नहीं पता उसी तरह लोकसभा चुनाव में मिली शर्मनाक हार के बाद राहुल गांधी कहां हैं? ये कोई नहीं जानता.
अब जबकि खबर आई है कि राहुल गांधी ध्यान करने विदेश गए हैं तो ये वित्त मंत्री केउस कथन की तरह है जिसमें बताया गया है कि देश की अर्थव्यवस्था के अंतर्गत सब चंगा सी.
अर्थव्यवस्था और राहुल गांधी दोनों मंदी की ओर
नई सरकार आने के बाद देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है ऐसा ही कुछ हाल राहुल गांधी का भी है. लोकसभा चुनाव के वक़्त जो मुद्दे उन्होंने उठाए थे सब खोखले कारतूस साबित हुए और फुस्स हो गए. अब जबकि महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजे हमारे सामने हैं और इन नतीजों में कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी जिस मुकाम पर हैं, कोई कितना भी साबित कर ले मगर सिद्ध अपने आप ही हो गया है कि दोनों ही मंदी की मार खेल रहे हैं.
अर्थव्यवस्था और राहुल गांधी में आरोप प्रत्यारोप की समानता
बात अगर सरकार के चलते देश की अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की हो तो ऐसा बिलकुल नहीं है कि नई सरकार के आने के साथ ही अर्थव्यवस्था ढलान पर आई. जैसे देश के हालत हैं माना यही जा रहा है कि यदि अर्थव्यवस्था की आज ऐसी स्थिति हुई है तो इसका कारण नोट बंदी और जीएसटी हैं. इसके अलावा जैसे एक के बाद एक रिज़र्व बैंक से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों ने अपने पद छोड़े और आरोप प्रत्यारोप लगाए उसने तब ही बता दिया था कि अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन देश और देश की जनता के लिए दूर की कौड़ी हैं.
अब बात राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की. यहां भी हाल कुछ ऐसा ही है. बात अगर सबसे ताजा उदाहरण की हो तो हम हाल में ही संपन्न हुए महाराष्ट्र चुनाव का रुख कर सकते हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में भी वही रिज़र्व बैंक वाला खेल चल रहा है.
महाराष्ट्र में कांग्रेसी नेता पृथ्वीराज चह्वाण ने शिव सेना के साथ गठबंधन को लेकर कोई बात कही थी इसपर कांग्रेस के ही दूसरे नेता और महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व प्रमुख अशोक चह्वाण ने कहा है कि जो पृथ्वीराज चह्वाण ने कहा है वो उनका निजी मत है.
यानी दोनों ही नेताओं ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस एकमत नहीं है. ऐसा क्यों हुआ अगर सवाल इसपर हो तो इसकी भी एक बड़ी वजह राहुल गांधी ही हैं जो बकौल सुरजेवाला ध्यान लगाने विदेश गए हैं.
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