Live Reporting: आइये सीधे चलते हैं Rhea के घर और देखें क्या नजारा है वहां...
एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत (Sushant Singh Rajput Death) के बाद मीडिया (Media) जिस तरह इस मामले के पीछे पड़ी है वो विचलित करने वाला है. टीआरपी (TRP) के नाम पर ऐसे ऐसे सवाल हो रहे हैं जिससे कहीं न कहीं पत्रकारिता और पत्रकार दोनों ही शर्मसार हो रहे हैं.
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जैसे जैसे दिन बीत रहे हैं सुशांत की मौत (Sushant Singh Rajput Death) का मामला गहराता जा रहा है. चाहे सुशांत का हो या फिर रिया (Rhea Chakraborty) का जो जो इस मामले में शामिल है सभी के घर के बाहर कैमरे लगे हैं और रिपोर्टर (Reporter) अपनी अपनी आईडी लिए खड़े हैं. ऐसे में रिया के घर के बाहर लाइव रिपोर्टिंग (Sushant Case Live Reporting) हो रही है तो आइये देखें वहां का क्या दृश्य है. साथ ही समझें कि कैसे इस पूरे मामले में तिल का ताड़ बनाकर चीजों को एक दूसरे से उलझाया जा रहा है.
'ये आप देख सकते हैं हमारे सामने वो शख्स है जो बराबर रिया के संपर्क में रहा है.' ये बात एक रिपोर्टर ने कही और वहां मौजूद बाकियों ने इसे छोटी क्लास के बच्चों की तरह दोहराया.
'हालांकि ये अपनी पहचान बताने से कतरा रहा है लेकिन यहां मौजूद बहुत से लोगों ने इसे अक्सर रिया के साथ देखा है.'
'बताओ तुमने रिया से क्या बातें की?' फास्ट बॉल की तरह एक सवाल सामने से उछला.
'हम...' इतना ही बोल पाया था सामने वाला.
सुशांत मामले में रिपोर्टिंग के नाम पर मीडिया भी अति करता नजर आ रहा है
'गौर से सुनिए इसने कहा हम...' हम यानी ये और रिया, रिया और ये. इसका मतलब है इन दोनों के बीच रिश्ते गहरा रिश्ता है.'
'अरे नहीं हम...'
'तो क्या तुम रिया के खास हो ?'
'ऐसे चुप नहीं रह सकते तुम, तुम्हें बोलना पड़ेगा.' तुम्हें किसने चुप रहने को कहा है?
'अरे भईया जी हम भिखारी हैं, यहां गेट के बाहर बैठते हैं. दिन में यहां सौ लोग गुज़रते हैं सबसे एक ही बात कहते हैं 'भगवान के नाम पर कुछ दे दो. आपकी रिया से भी यही कहे होंगे.' भिखारी के भिखारी बताने पर भी खोजी पत्रकार पीछे नहीं हट रहे. एक को नया सवाल सूझा.
'क्या रिया ने कभी तुमको 500, 2000 के नोट दिए ?'
'अरे नहीं भाई, इतना हमको मिल रहा होता तो कोई काम धंधा ना खोल लेते.'
'क्या उसके दिए किसी नोट में किसी तरह का कोई चिप लगा था?' एक मैडम ने भिखारी के मुंह में माइक घुसाते हुए पूछा.
'अब ये चिप क्या होता है? हमको कोई चिप उप नहीं मिला कभी. अब हमको जाने दीजिए भूख लगा है हमको.'
'खाना ही है, खा लेना पहले सवालों के जवाब दो हमें. हम भी तो धूप में खड़े हैं भूखे प्यासे, दर्शक टीवी के आगे बैठे हैं भूखे प्यासे.'
'बताओ तुमने कभी सुशांत को यहां आते देखा?'
'अब ये सुसांत कौन है भईया? ए भईया हमको चक्कर आ रहा है. भूख से मर जाएंगे. जाने दो हमको.'
मर भी गये तो हमारे न्यूज़ चैनल सॉरी देश के लिए कुछ कर के मरोगे. रिपोर्टर की बात खत्म होते होते भिखारी बेहोश हो के गिर पड़ा.
'तो देखा आपने कैसे रिया के घर के बाहर एक भिखारी भूख से तड़प कर मर गया. इतनी देर में दूसरी तरफ पत्रकारों का शोर उठा 'इधर कुछ मिला है.'
ये देखिए कचरे वाले से रिया के घर का कूड़ा बरामद किया गया है. जैसा कि आप देख सकते हैं यहां खाने के पैकेट हैं जिसमें मुर्गे की टांग है. जिस बेरहमी से इसे कुरेदा गया है उससे साफ होता है कि खाने वाले की मानसिकता क्या होगी.'
'अरे ये भी देखिए इसमें जमा हुआ खून मिला है जो सूख कर पीला पड़ गया है.'
'ए सुबोध, वो बच्चे का डाइपर है और उस पर टट्टी लगी है बे. फेंक उसको. कैमरामैन की धीरे से आवाज़ आई.
इसी तरह देश के तूफानी और खोजी पत्रकार कचरे तक से सच जमा करने में लगे हुए हैं. वो भिखारी शायद मर गया होगा मगर रिपोर्टिंग जारी है. ये रिपोर्टर अगर इसी तरह काम करते रहे तो सीबीआई से पहले सच ज़रूर सामने आएगा. हमारे कई रिपोर्टर अब चांद नवाब और अमीन हाफ़ीज़ को टक्कर देने लगे हैं.
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