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Updated: 26 मार्च, 2015 07:24 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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पद्म पुरस्कारों को लेकर योग गुरु बाबा रामदेव हाल में खासे चर्चा में रहे. पहले एक अखबार में खबर छपी. फिर किरण बेदी ने उन्हें बधाई दे डाली. हालांकि, उन्होंने आडवाणी जी को भी बधाई दी थी, जिन्हें पद्म विभूषण वास्तव में देने की घोषणा की गई है.

सरकार की ओर से भी बार बार सफाई दी गई कि मीडिया में छपी खबरें महज अटकलें हैं. फिर भी सोशल मीडिया पर विवाद बढ़ते देख रामदेव ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिख डाली . चिट्ठी में रामदेव ने खुद को इससे अलग रखने की सलाह दी थी. बाद में पता चला कि बाबा रामदेव का नाम तो उस सूची में था ही नहीं .

रिपोर्टर – स्वामी जी आपको कब लगा कि आपको पद्म विभूषण दिया जाने वाला है?बाबा रामदेव – मैं साधना से उठा था, तभी किरणजी का फोन आया. किरणजी ने बधाई दी और कहा कि अखबार में खबर छपी है. फिर मैंने उन्हें आशीर्वाद दिया लेकिन आगाह भी किया कि वो अखबारों की रिपोर्ट पर आंख मूंद कर भरोसा न करें. मैंने किरण को बोला कि चूंकि वो कह रही हैं इसलिए मैं पुरस्कार की बात मान ले रहा हूं, वरना, मुझे अखबारों की रिपोर्ट पर कतई भरोसा नहीं है.

रिपोर्टर – स्वामीजी, अफवाहों के बीच आपने इस आधार पर पद्म पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया कि आप संन्यासी हैं. राजनाथ सिंह को लिखे पत्र में तो आपने यही लिखा था, क्यों?बाबा रामदेव – बिल्कुल. बिल्कुल यही लिखा था.

रिपोर्टर – यानी आप ये मैसेज देना चाहते थे कि आपके लिए पुरस्कार कोई मायने नहीं रखते. या फिर आप मौके का फायदा उठाना चाहते थे. आखिर आप पुरस्कारों की घोषणा के बाद भी तो लेने से मना कर सकते थे.बाबा रामदेव – देखो, इतना घुमा-फिरा के मत पूछो. जो तुम मेरे मुंह से कहलवाना चाहते हो – वो मैं नहीं बोलने वाला. मैं मीडिया वालों को ठीक से जानता हूं.

रिपोर्टर - पद्म पुरस्कारों के लिए क्या आपका नाम जान-बूझ कर उछाला गया? बाबा रामदेव - देखिये, ये प्लांटेड खबर थी. मीडियावालों को तो आप जानते ही होंगे. इस लाइन में हैं तो आपको पेज न्यूज़ के बारे में भी पता होगा ही.

रिपोर्टर - प्लांटेड से आपका मतलब?बाबा रामदेव - मतलब ये कि बाकी खबर तो सही थी, मेरा नाम जान बूझ कर उसमें डाला गया. यहां तक कि श्री श्री रविशंकर भी शॉर्ट लिस्ट किये गये थे. जब मुझे पता चला कि उन्होंने मना कर दिया है तो मैंने भी मना कर दिया.

रिपोर्टर – वैसे कौन कर सकता है ऐसा? बाबा रामदेव - विरोधी हैं. बहुत सारे विरोधी लोग हैं. सारे काला दिलवाले हैं. वे ऐसा कर सकते हैं.

रिपोर्टर – काला दिलवाले...बाबा रामदेव – अरे भई काला धन वाले. जो लोग देश में काला धन नहीं आने देना चाहते. वे चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जी और मैं इस काम को अधूरा छोड़ दें. ऐसे लोग हो सकते हैं.

रिपोर्टर - तो क्या ये राजनीतिक लोग हैं. और अगर हैं तो कांग्रेस के या बीजेपी के अंदर भी हो सकते हैं.बाबा रामदेव - कहीं भी हो सकते हैं. जिस किसी का भी इंटरेस्ट है वो मुझे अपनी राह में बाधा समझ सकता है. राजनीति में बिजनेस में. कहीं भी हो सकते हैं.

रिपोर्टर – स्वामी जी मन में एक जिज्ञासा है. अगर आप संन्यासी हैं तो आपको ‘जेड’ सुरक्षा की क्या जरूरत है? आपने सुरक्षा लेने से क्यों नहीं इंकार कर दिया.बाबा रामदेव – देखोजी, अपने सवालों में न उलझाओ. सुरक्षा मैंने नहीं मांगी थी, इसे सरकार ने दिया है. अगर सरकार को लगता है कि देश को मेरी जरूरत है तो सरकार ने ऐसा किया होगा. आप उन्हीं से पूछ लो.

रिपोर्टर – ये बात तो पद्म पुरस्कार पर भी लागू होती है. सरकार पर छोड़ देते. पत्र लिखने की क्या जरूरत आ पड़ी?बाबा रामदेव – मुझे कुछ नहीं बोलना इस बारे में. अब बस करो. मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है.

रिपोर्टर – बाबाजी मुझे आशीर्वाद नहीं, फिलहाल सवालों के जवाब दे दीजिए. एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार 2012 में पतंजलि आर्युवेद का सालाना टर्नओवर करीब 450 करोड़ था. साल 2013 में ये टर्नओवर दोगुने से थोड़ा कम 850 करोड़ पहुंचा और 2014 में 1200 करोड़ पहुंच गया. अब 2014-15 के वित्तीय वर्ष में कंपनी का सालाना टर्नओवर 67 फीसदी की छलांग के साथ 2000 करोड़ पहुंचने की उम्मीद जताई गई है. स्वामीजी इस रिपोर्ट के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे.बाबा रामदेव – नो कमेंट्स. [थोड़ी देर चुप रहने के बाद] ये सब गलत है. हमारा सबकुछ ऑडिट होता है. ऐसा कुछ भी नहीं है. ये खबर भी प्लांटेड है.

रिपोर्टर – स्वामीजी आप योग गुरु हैं, एफएमसीजी के बड़े ब्रांड हैं, बीजेपी के कैंपेनेर हैं या महज एक संन्यासी.बाबा रामदेव – ‘जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखीय तिन तैसी.’ मैं बस इतना ही कहूंगा. बाकी लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात कहने और सवाल पूछने की आजादी है. धन्यवाद.

सवालों का सिलसिला अभी चलता लेकिन बाबा रामदेव अपनी रुटीन साधना के नाम पर धन्यवाद बोलकर उठ खड़े हुए और चलते बने.

#बाबा रामदेव, #पद्म पुरस्कार, #लालकृष्ण आडवाणी, व्यंग्य: बाबा रामदेव से 12 सवाल, जो पूछे न जा सके

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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