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Updated: 03 अप्रिल, 2015 09:54 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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लो भई. एक ही झटके में दिल्ली के दाग धुल गए. अगर दाग लगने से कुछ अच्छा हो - फिर तो वाकई दाग अच्छे हैं. बिहार में जो भी नतीजे आएं - कोई फर्क नहीं पड़ता. बाद में जो भी हो बला से.

मानना पड़ेगा. कुछ भी हो, जब किरपा बरसती है तो ऐसे ही. 10 करोड़ मिस्ड कॉल यूं ही नहीं आते राजनाथ जी. मौका तो आपको भी दिया गया. आपने क्या किया? बस बीजेपी को केंद्र में सत्ता तक पहुंचा दिया. माना कि पहली बार बीजेपी को इतनी सीटें मिलीं, लेकिन सत्ता की राह तो यूपी से होकर जाती है. राजनाथ जी आप तो यूपी के ही रहनेवाले हैं और गुजरात से आकर अमित बाबू ने उतनी सीटें दिलवा दीं. वो थोड़ी सी तो इसलिए छोड़ दी क्योंकि परिवार का मामला था, वरना दिल्ली में 'आप' की बात कभी नहीं होती. अब आप ही बताइए. 10 करोड़ मिस्ड कॉल के मुकाबले 17 करोड़ वोट के क्या मायने हैं.

आपने तो सुना ही होगा - 'हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा'. अमित बाबू ऐसे ही दीदावर हैं. पिछले जन्म में दीनदयाल उपाध्याय से उनका जरूर कोई न कोई रिश्ता रहा होगा. यकीन न हो तो आप उनका सच का सामना कराइए - पिछले जन्म की सारी बातें मालूम हो जाएंगी.

शुक्र मनाइए मोदी जी को कहीं जाना था. इसलिए अमित बाबू की तुलना में सिर्फ गांधी और लोहिया का ही नाम ले पाए. हां, दीनदयाल जी का नहीं भूले. अगर थोड़ा वक्त और रहता तो चमत्कारिकता के मामले में अमित बाबू मार्क्स, लेनिन और चे गेवारा को भी पीछे छोड़ दिए रहते.

हर नेता अपने दौर के हिसाब से चलता है. गांधी और जेपी लोगों को जेल जाने के लिए बोलते थे - और लोग उनकी बात पर दौड़ पड़ते थे. अब किसकी औकात है जो ऐसा कर पाए. ज्यादा दिन की बात नहीं है. रामलीला आंदोलन के वक्त अन्ना की भी जबान थोड़ी फिसली थी - और आस-पास जो भी मौजूद थे उनकी औकात चेहरे बता रहे थे. उसके बाद अन्ना ने भी कभी जेल भरने का नाम नहीं लिया.

वक्त के साथ चलना बहुत जरूरी होता है. आप जनता से उतना ही उम्मीद रखिए जिससे काम आसानी से हो जाए. जब लोग मिस्ड कॉल की भाषा समझते हैं तो उसी में रास्ता निकालिए. सुबह की मिस्ड कॉल का मतलब कुछ और होता है, शाम का कुछ और. हर बात के लिए मिस्ड कॉल है. हर मिस्ड कॉल का मतलब अलग अलग है. बस मिस्ड कॉल का इंतजाम करना भर है. नतीजे आपके सामने हैं.

वैसे इस मिस्ड कॉल की हकीकत कोई दिल्ली के उस स्कूल के टीचिंग स्टाफ से पूछे, जिसकी सैलरी रोक दी गई थी. गुनाह सिर्फ इतना था कि वे अपने छात्रों के मां-बाप को बीजेपी का सदस्य बनवाने में नाकाम रहे थे.

बीजेपी के सदस्यता अभियान पर सबसे दिलचस्प तो एक अखबार की वो रिपोर्ट रही जिसमें पत्रकार ने पूरी आपबीती सुनाई. पेशेवराना आदत के चलते जब उन्होंने अपने मोबाइल के एक मिस कॉल पर कॉल बैक किया तो बीजेपी की ओर से स्वागत का मैसेज आ गया - और मैसेज के रिप्लाई में उन्होंने भेजा कि ऐसी सदस्यता में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है तो उत्तर मिला - बीजेपी में आपका स्वागत है, अब आप बस वोटर आईडी मेल कर दें.

ये तो उन्हीं इंटरनैशनल कॉल की तरह है जिन पर कॉल बैक न करने के लिए मोबाइल कंपनियां वैसे ही चेतावनी देती हैं जैसे बैंक किसी से अपने डिटेल्स न शेयर करने की सलाह देते रहते हैं. अगर किसी ने उस मिस्ड कॉल पर अपने प्रीपेड मोबाइल से फोन किया तो सारा बैलेंस फौरन साफ हो जाता है.

मतलब ये कि आपने किसी मिस्ड कॉल पर कॉल बैक कर दिया तो गए काम से. अब जाइए कोर्ट में दावा कीजिए कि आप बीजेपी के सदस्य नहीं हैं. बाकी कोई जो भी कहे - दुनिया में जब भी मिस्ड कॉल की बात होगी - सबसे बड़ी पार्टी का नाम बीजेपी ही होगा. वाकई. जब आप नसीबवाले के साथ रहेंगे तो 'किरपा' तो बरसेगी ही. मोदी जी ने ठप्पा जो लगा दिया है. फैसला पहले ही सुना दिया गया फिर तो कार्यकारिणी में अब न बहस की गुंजाइश बची है न सुनवाई की.

सही मायने में अमित बाबू के साम, दाम, दंड और भेद से बीजेपी को जो 'मिस्ड कॉल' कामयाबी मिली है वो 'न भूतो, न भविष्यति' है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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