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Updated: 16 जुलाई, 2015 11:39 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मुजफ्फरपुर रैली की तैयारियों का जायजा लेने मोदी जी पटना पहुंचे थे. अमित शाह वहां पहले से ही डटे हुए थे. मोदी जी लोकल मुद्दों को लेकर मतदाताओं का मूड डिस्कस करना चाहते थे. असल में अमित शाह के फीडबैक पर ही मोदी जी अपने चुनावी भाषण का खाका तैयार करते हैं.

"हां तो, अमित भाई..." बीच में ही अमित शाह ने मोदी की बात काट दी - और... उन्हें एक टक घूरे जा रहे थे.

"साहेब, आपो ले ही लीजिए..."

"क्या? क्या ले लें, अमित भाई?"

"भारत रत्न."

"भारत रत्न!"

मोदी को समझ नहीं आ रहा था, ये अमित शाह को हो क्या गया? कहां रैली को लेकर बात करनी थी - और क्या ले के बैठ गए.

"अरे ऊ आपके दोस्त बराक ने भी तो अइसहीं नोबेल ले ही लिया था न."

"हां, तो..."

"का मालूम ई सब कौन कौन तमासा करेंगे. हमको तो अब डर लगने लगा है, साहेब."

मोदी जी चुपचाप उनकी बातें सुन रहे थे.

"ई देखिए रहे हैं. ललित मोदिया नरक मचाए हुए है. दिल्ली-जयपुर-मुंबई ई सभिए को बुलेट ट्रेन से भी तेज दौड़ा रहा है."

"ई देखिए. सुसमा जी, बसुंधरा जी आ अब सिवराज... सबके सब रायता फैला रखे हैं. ई तो केजरीवाल को भी फेल कर दिए हैं. साल भर की कमाई को अइसेही माटी में मिला दिए... "

मोदी थोड़े पसोपेश में तो थे, फिर भी चुपचाप उनकी बातें सुने जा रहे थे.

"आ ई थोड़ा ईरानी जी को भी समझा दीजिए... इनको बहुत पढ़ा लिखा बनने की का जरूरत है. अरे बहू हैं, जरा अपनी हद में रहें. ई का मतलब है... अरे उनको करना क्या है... जो संघ बताएगा ओहिए न करना है... आपना दिमाग लगाने का जरूरत का है... "

मोदी को लगा शाह मजाकिया तौर पर बिहारी टोन में बोल रहे हैं. लेकिन लगातार उसी अंदाज में. रुकने का नाम ही नहीं ले रहे. फिर मोदी को कुछ शक हुआ.

अभी कुछ सोचते कि जीतन राम मांझी आ धमके. मोदी जी ने सामने वाले सोफे पर बैठने को कहा. मोदी को लगा कि मांझी कुछ कहना चाह रहे हैं इसलिए बोलने का इशारा किया.

"साहेब जी... ऊ... कास्ट सेंसस... " मांझी को बीच में ही रोक कर अमित शाह टपक पड़े.

"धत्त बुड़बक... " मांझी को बात पूरी करने से पहले ही शाह ने उन्हें डांट दिया.

'धत्त बुड़बक' सुनते ही मोदी जी का माथा ठनका. उन्हें लग गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ तो है. फिर उन्होंने किसी को डॉक्टर बाबू को बुलाने के लिए भेजा.

फरमान सुनते ही डॉक्टर सीपी ठाकुर दौड़े दौड़े आए, "का हुआ... का हुआ साहेब... "

"अरे हुआ क्या, ये देखिए अमित भाई की तबीयत हमें कुछ ठीक नहीं लग रही. चेहरे की भी आक्रुति थोड़ी बदली हुई है. इनकी बोलचाल पर आप भी जरा गौर कीजिए."

"का बात है... सब ठीक तो है... " डॉक्टर बाबू को भी कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि शाह तो उन्हीं के लहजे में बोल रहे थे.

"अरे ये हमारे पांच करोड़ भाइयों में से हैं. लेकिन अभी ये आपकी तरह बोल रहे हैं." फिर डॉक्टर बाबू भी सोच में पड़ गए.

बगल में बैठे-बैठे ही अजीत डोवाल ने पता कर लिया कि माजरा क्या है. खुफिया सूचनाओं के आधार पर डोवाल ने बताया कि अमित शाह और लालू की एक मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात में लालू ने अमित का हाथ पीके के आमिर खान की तरह पकड़ा और उल्टी गंगा बहा दी. लालू ने अमित शाह की बोली और भाषा लेने की जगह उनके अंदर अपने बोलचाल का लहजा डाल दिया. अब समस्या ये खड़ी हो गई कि इस फॉल्ट को ठीक कैसे किया जाए?

"अब अमित बाबू का सिस्टम फॉर्मैट करके फिर से री-इंस्टॉल करना पड़ेगा." लगे हाथ संबित पात्रा ने सुझाव भी दे डाला. संबित पात्रा बीजेपी की आईटी टीम के बिहार प्रभारी बनाए गए हैं.

"अरे ये अच्छे खासे इंसान हैं... तुम्हारे कंप्यूटर नहीं." मोदी ने थोड़ा सख्त होते हुए कहा.

"साहेब आप ही तो उन्हें कंप्यूटर बताते रहते हैं. आप ही तो कहते हैं कि अमित भाई का दिमाग कंप्यूटर की तरह चलता है." संबित पात्रा ने बड़े ही मासूमियत से कहा.

वैसे तो मोदी अक्सर लोगों से सुझाव मांगते हैं, लेकिन खास मौकों पर खुद ही फैसला लेते हैं. फिर खुद ही उन्होंने बाबा रामदेव को फोन लगाया. जब फोन नहीं उठा तो व्हाट्सएप कर दिया. कुछ ही देर बाद बाबा रामदेव स्काइप पर अपीअर हुए. सारी बातें समझ लेने के बाद अमित शाह को आश्रम भेजने को कहा.

डायग्नोसिस के दौरान आचार्य बालकृष्ण ने पाया कि जब भी अमित शाह के सामने छाछ पेश किया जाता वो उसे मट्ठा बता रहे हैं. यही बात उनके इलाज की अहम कड़ी बना. बालकृष्ण की रिपोर्ट पर बाबा रामदेव ने अमित शाह के लिए छाछ-नेति, छाछ-स्नान, छाछ-मसाज, छाछ-पान जैसे कई उपाय आजमाने की सलाह दी. ये क्रियाएं अमित शाह को तब तक कराई गईं जब तक उन्होंने 'मट्ठा' को फिर से 'छाछ' बोलना नहीं शुरू कर दिया.

अब अमित शाह की तबीयत ठीक बताई जा रही है. हालांकि, अभी उन्हें आश्रम में ही आराम की सलाह दी गई है. आचार्य बालकृष्ण के मुताबिक जल्द ही अमित भाई अपने ओरिजिनल फॉर्म में परफॉर्म करते नजर आएंगे.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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