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Updated: 23 फरवरी, 2016 06:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बतौर गवाह उस दिन अच्छेलाल का भी बयान दर्ज होना था. तारीख पर मिलती तारीख से बेफिक्र अच्छेलाल ठीक वक्त पर पटियाला हाउस कोर्ट पहुंचा. अभी गेट के अंदर दाखिल होने ही वाला था कि कुछ वकीलों को मारो मारो चिल्लाते हुए अपनी ही ओर आते देखा. अच्छेलाल के सामने एक बार फिर वैसा ही सीन घूम गया जिसको लेकर वो गवाही देने पहुंचा था. पुलिस कार्रवाई में हुई एक शख्स की मौत के मामले में उसकी गवाही थी.

कोर्ट परिसर में...

अच्छेलाल दूसरे गेट पर पहुंचा तो वही नजारा था. तभी उसकी नजर एक कैदी पर पड़ी. उसे पेशी के लिए कोर्ट में लाया जा रहा था. अच्छे लाल को तरकीब सूझी. वो कैदी के पीछे पीछे लग गया. उसने सोचा कैदी के साथ पुलिसवाले हैं. कैदी के पीछे पीछे सुरक्षित कोर्ट में जा सकता है.

तभी वकीलों का एक जत्था कैदी पर टूट पड़ा. वे मिलकर कैदी को पीटने लगे. कुछ वकील पीछे खड़े थे. उनके हाथ कैदी तक नहीं पहुंच पा रहे थे. उन्हें अच्छे लाल मिल गया - और उन्होंने अच्छेलाल पर ही हाथ साफ कर लिया.

अस्पताल में...

पिटाई में जख्मी अच्छेलाल ने सोचा अस्पताल जाकर मरहम पट्टी करा लेते हैं. वो कचहरी से सीधे अस्पताल पहुंचा. डॉक्टर ने पूछा चोट कैसे लगी. अच्छे लाल की बात सुनते ही डॉक्टर ने उसे पीटना शुरू कर दिया. जैसे ही डॉक्टर कमरे से बाहर निकला अच्छे लाल ने नर्स से पिटाई की वजह पूछी. नर्स ने बताया कि उस अस्पताल में किसी देशद्रोही का इलाज नहीं होता. उसे मालूम हुआ डॉक्टर साब चेक कर रहे थे कि वो देशद्रोही है या देशभक्त!

डॉक्टर लौटे उससे पहले ही अच्छे लाल भाग खड़ा हुआ. उसे बहुत जोर से भूख लगी थी. सोचा मरहम पट्टी होती रहेगी पहले कुछ खा लेते हैं.

होटल में...

अच्छेलाल पास के ही एक होटल में पहुंचा. वेटर ऑर्डर लेने आया तो अच्छे लाल की हालत देख कर बड़ा दुखी लगा. वेटर को लगा किसी गाड़ी ने धक्का मार दिया होगा. जब उसे पता चला कि अच्छेलाल की ये हालत पिटाई से हुई है तो वो सीधे मालिक के पास पहुंचा. वेटर के साथ मालिक को आते देख अच्छेलाल को लगा वे उसकी मदद के लिए आ रहे होंगे.

अभी अच्छे लाल ठीक से कुछ समझ पाता कि मालिक और वेटर दोनों मिल कर उसे पीटने लगे. "स्सा... तेरी... की... " "देशद्रोही भूखे मरते हैं खाना खाकर नहीं... समझे कि नईं!"

स्टेशन पर...

भूखा-प्यासा बुरी तरह जख्मी अच्छेलाल बस अड्डे पहुंचा. पता चला - बस खुलने ही वाली है. जल्दी जल्दी वो बस में घुस गया. कंडक्टर पैसा लेने आया तो अच्छेलाल के चेहरे पर खून देखे.

"तैने चोट कैसे खाए?" अच्छेलाल ने सोचा अब पिटाई की बात तो भूल कर भी नहीं बतानी. उसने झूठ बोला, "गाड़ी ने धक्का मार दिया." कंडक्टर ने झूठ पकड़ लिया और पकड़ कर पीटने लगा. "झूठ बोलता है, पिट कर आया है... देशद्रोही..." देखते देखते पास के कुछ पैसेंजर भी उस पर टूट पड़े.

जैसे तैसे भाग कर वो रेलवे स्टेशन पहुंचा. सोचा लोकल ले लेते हैं. वहां उसे कुलियों ने दौड़ा लिया, "पकड़ो-पकड़ो... देशद्रोही है..." इधर उधर छिपते वो गार्ड के डिब्बे में घुस गया. उसकी किस्मत अच्छी थी गार्ड मौजूद नहीं था. ये बात भी उसे बाद में समझ आई - क्योंकि आते ही गार्ड ने अच्छेलाल से चोट का कारण पूछा. अच्छेलाल ने गार्ड को सच बता दिया. सुनते ही गार्ड ने फोन मिला दिया. कोई और मुसीबत आ पड़े उससे पहले ही अच्छे लाल ट्रेन से कूद गया.

हाय री किस्मत! जहां अच्छे लाल गिरा वहां कुछ पॉकेटमार अपना हिस्सा बांट रहे थे. अच्छे लाल को देखा तो पॉकेटमारों ने भी 'देशद्रोही-देशद्रोही...' चिल्लाते हुए उसे को दौड़ा लिया...

भागते भागते अच्छेलाल एक दुकान के पास पहुंचा. वहां काफी लोग टीवी देख रहे थे. टीवी पर कचहरी वाली घटना की रिपोर्ट दिखाई जा रही थी. अच्छेलाल चुपचाप पीछे खड़ा हो गया. तभी एंकर का चेहरा सामने आया - और अगले ही पल ब्रेकिंग न्यूज के स्क्रीन में वो पीछे छिप गई.

राष्ट्रश्री, राष्ट्रभूषण और...

अब सिर्फ एंकर की आवाज सुनाई दे रही थी. सरकार इस साल कुछ नये अवॉर्ड शुरू करने जा रही है. ये अवॉर्ड मेक इन इंडिया के तहत देश में ही तैयार किये जाएंगे. इस साल 15 अगस्त को नये अवॉर्ड - राष्ट्रश्री, राष्ट्रभूषण और राष्ट्रविभूषण दिये जाएंगे.

संभावितों की सूची में अच्छे लाल को कुछ नाम भी सुनाई दिये - अनुपम खेर, विक्रम सिंह चौहान...

खबर में बताया जा रहा था - अवॉर्ड लेने वालों को एक बॉन्ड भी भरना होगा - किसी भी सूरत में अवॉर्ड वापसी नहीं होगी. भले ही सरकार किसी भी पार्टी की क्यों न हो.

भीड़ में से फिर किसी की नजर उस पर पड़े उससे पहले अच्छे लाल फुट लेने फैसला किया. तब से अच्छे ला लगातार भाग रहा है. उसे नहीं पता कि हर कोई उसे क्यों पीट या दौड़ा ले रहा है?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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