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Updated: 04 अगस्त, 2015 03:17 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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जो काम ऑल पार्टी मीट बुलाकर नहीं हो सका. जो काम स्पीकर द्वारा कांग्रेस के 25 सांसदों को सस्पेंड करके नहीं हो सका. जो काम एक राज्य सभा सांसद की लेट नाइट पार्टी से नहीं बन सका. उसे एक कॉल और फिर कॉन्फ्रेंस पर दो और नेताओँ के आने के साथ ही हो गया.

आखिर ये सब मुमकिन हुआ कैसे? आइए विस्तार से जानते हैं.

ठंडई पीकर चलते बने

ऑल पार्टी मीट में तो किसी समस्या के हल की शायद ही किसी को उम्मीद रहती हो. पहले तो कोई आने को भी तैयार न था. जब पता चला कि मेहमानों के लिए खास तौर पर बनारस से ठंडई मंगाई गई है तो लोग पहुंचे. खाए पीये मस्ती किये लेकिन जैसे ही संसद की चर्चा छिड़ी विपक्ष के सारे नेता निकल लिए.

एक सांसद की पार्टी

राज्य सभा के एक सांसद के घर बुलाई गई पार्टी में सभी ने जी भर कर मस्ती की. जिसे खाना था वो खूब खाया. जिन्हें पीना था उन्होंने छक कर पी. जिन्हें डांस करना था वो जम कर थिरके.

किसी टेबल पर हंसी-मजाक के दौर चल रहा था. कई जगह ठहाके लग रहे थे. कुछ लोग डांस फ्लोर पर झूम रहे थे, तो कई पीछे खड़े होकर सीटी भी बजा रहे थे. आखिरी दौर में जब मुद्दे की बात आई तो सबके सब पार्टीलाइन पर आ गए.

"जब तक इस्तीफा नहीं होगा, संसद तो चलने से रही," एक ने कहा दूजे ने मानी फिर बाकियों ने भी वही बात दोहराई. बात बन नहीं पाई.

और वो फोन कॉल...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्रीन सिग्नल मिलते ही उस शख्स ने डायल्ड लिस्ट के एक नंबर पर टैप किया फिर हरे बटन को टच. हाल फिलहाल इस तरह का दूसरा मौका था.

"हेलो!" दूसरी तरफ फोन पर सोनिया गांधी थीं.

"हेलो, मैडम, मैं..."

"ओह, यस. यू डोन्ट नीड टू... आई नो... बताइए कैसे याद किया?"

"बस कुछ खास नहीं..."

"ओके..."

कुछ इधर उधर की बातें हुईं. पिछली चर्चा का भी जिक्र हुआ.

"वो तो अच्छा रहा... " आशय नीतीश को नेता बनाए जाने और लालू के साथ महागठबंधन से था. वो मामला भी बस फोन पर ही फाइनल हो गया था. ये तो सबको पता है कि लालू किसी भी सूरत में नीतीश से हाथ मिलाने को तैयार न थे, लेकिन वो एक फोन कॉल ही रहा जो जहर पीने को मजबूर होना पड़ा.

"हां, जरूरी भी था. वैसे वो तो आपकी ही मेहरबानी रही."

"तो ठीक है फिर, या कोई और बात है?"

"हां, है ना..."

"बताइए... "

"अरे मैडम संसद का चलना जरूरी है. ऐसे कब तक चलेगा?"

"देखिए, चाहते तो हम भी हैं. वो थरूर वाली बात तो 'मिसकोट' का मामला था."

"पता है, मुझे मालूम है. मैं कह रहा हूं. मैंने एक रास्ता निकाला है. बस आपके हामी भरने का इंतजार है."

"बताइए."

"देखिए जिस तरह बांग्लादेश और भारत में बस्तियों की अदलाबदली का मामला सुलझ गया, उसी तरह संसद का गतिरोध भी खत्म हो सकता है."

"क्या बात करते हैं? बस्तियों और संसद का आपस में क्या वास्ता."

"देखिए, आपके यहां एक नेता है जो चाहता है कि संसद चले. बीजेपी में भी एक नेता ऐसा है जो उसी की तरह पार्टीलाइन से अलग राय रखता है. पार्टीलाइन को लेकर दोनों नेता एक जैसे हैं. फांसी के मुद्दे पर भी दोनों की निजी राय कॉमन है."

"सी, सरजी. आप साफ साफ बोलो. मेरी भी उम्र हो रही है. मुझसे अब इतना..."

"मैडम मैं शशि थरूर और वरुण गांधी की बात कर रहा हूं. ये दोनों ही अपनी अपनी पार्टियों में लाएबिलिटी बन गए हैं. जिस तरह थरूर का बीजेपी के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर डेवलप हो चुका है, उसी तरह वरुण का कांग्रेस के प्रति. अगर बात बन जाए तो दोनों ही अपनी अपनी जिद छोड़ कर नए सिरे से राजनीति करने को तैयार हैं."

"आप चाहते क्या हैं?"

"मैं तो सबकी खुशी चाहता हूं. मैं इन दोनों नेताओं को लेकर आपको एक्सचेंज ऑफर दे रहा हूं. आप वरुण गांधी को कांग्रेस में ले लीजिए और शशि थरूर को बीजेपी में जाने दीजिए. बाकी मेरे ऊपर छोड़ दीजिए."

"लेकिन राहुल..."

"फिकर ना कीजिए मैडम. मैंने राहुल ही नहीं प्रियंका जी से भी बात कर ली है. बस आपके डर से कोई कुछ नहीं बोल रहा. राहुल, प्रियंका और वरुण - तीनों बच्चे बाकी जिंदगी मिलजुल कर गुजारना चाहते हैं. और राहुल तो प्रधानमंत्री बनने को भी तैयार हैं. बस एक ही शर्त है उन्हें पार्टी की कमान न संभालनी पड़े. अगर ठीक लगे तो आप ये जिम्मेदारी वरुण को भी थमा सकती हैं, ऐसा मैं नहीं, राहुल और प्रियंका चाहते हैं."

"क्या बात कर रहे हैं!"

"आप तो जानती ही हैं. मैं कंसेंट पहले लेता हूं दलील और जिरह का नंबर बाद में आता है. तो नक्की कर दिया जाए?"

"ठीक है फिर. मानना पड़ेगा जेठमलानी जी आपको."

"बस एक मिनट और मैडम... मोदी जी और सुमित्रा महाजन भी लाइन पर हैं. मैं कॉन्फ्रेंस करा रहा हूं."

फिर सभी ने बात की और बात बन गई. कांग्रेस ने सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज के इस्तीफे की जिद छोड़ दी. स्पीकर ने कांग्रेस सांसदों का सस्पेंशन वापस ले लिया.

अब वरुण गांधी और शशि थरूर की अदलाबदली की औपचारिकता बची है. वो भी जल्द ही हकीकत बन जाएगी.

ये सब उस एक कॉल का कमाल रहा. वाकई, मानना पड़ेगा.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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