व्यंग्य: जब जेल से छूट कर ऑटो से जेएनयू पहुंचे कन्हैया
चर्चा के बीच ही कन्हैया के घरवालों को भी बुला लिया गया था. सोचा गया कि कन्हैया के परिवार वालों को जो आइडिया सबसे सही लगेगा उसी पर अमल होगा.
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जोर शोर से नारेबाजी चल रही थी. कन्हैया कुमार के साथी विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. तभी व्हाट्सऐप पर अपडेट आया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने जमानत मंजूर कर ली है. अब तक तो नारेबाजी के साथ सिर्फ हाथ उठ रहे थे - खबर सुनकर सबके पैर भी थिरकने लगे. चेहरे पर गुस्से का भाव खुशी और सेलीब्रेशन मोड में तब्दील हो गया.
कुछ देर तो सेलीब्रेशन चलता रहा - फिर एक साथी ने आगे आकर कहा कि भई अब तैयारी होनी चाहिए कि कैसे कन्हैया को सुरक्षित बाहर निकाला जाए. सभी ने एक सुर में हामी भरी. इसके लिए अगली सुबह कम से कम एक आइडिया के साथ साबरमती ढाबे पर इकट्ठा होने को कहा गया. जब कई लोग तय वक्त से पहले ही जुट गये तो चर्चा शुरू हो गई.
दंगारोधी किट - पहला सुझाव आया कि दिल्ली पुलिस से ही कहा जाए कि जेल से जेएनयू तक के रास्ते के लिए वो हमे दंगारोधी 50 किट उपलब्ध करा दे. ठीक वैसे ही जैसे पुलिस ने कोर्ट से कन्हैया को सुरक्षित जेल ले जाने के लिए किया था. इस पर ऑब्जेक्शन ये उठा कि जब दिल्ली पुलिस इस जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी है, फिर वो ऐसा क्यों करेगी? किसी ने सुझाव दिया कि उसके लिए जो फीस होगी दे दी जाएगी. मामला जमा नहीं और आखिरकार ये आइडिया रिजेक्ट हो गया.
काले कोट में - दुश्मन को दुश्मन के दांव से ही मात देनी चाहिए. इस थ्योरी के साथ सुझाव आया कि क्यों न कन्हैया को वकीलों के ही ड्रेस में बाहर लाया जाए. जैसे दिल्ली पुलिस ने कन्हैया सहित पुलिसवालों को भी एक सा ड्रेस पहना दिया था - उसी तरह कन्हैया के साथ कुछ और भी साथी काला कोट पहन लें - और फिर उसे सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाएगा. पहली दफा में ही सुझाव दमदार लगा. कन्हैया के संभावित हमलावरों को चकमा देने के लिए ये कारगर आइडिया लगा. फिर भी सोचा गया कि अगर कुछ और उपाय हों तो उन पर चर्चा कर ली जाए.
रामदेव स्टाइल - एक सुझाव आया कि कन्हैया को समीज सलवार पहना कर रिहा कराया जाए. साथ में कुछ लड़कियां भी रहेंगी - और लड़कियों को देख कर कोई हमला नहीं करेगा. पहली आपत्ति तो यही दर्ज हुई कि सलवार समीज पहनने के बाद भी कन्हैया सबको दूर से ही नजर आ जाएगा - और अगर वकीलों ने महिला ब्रिगेड को मोर्चे पर लगा दिया तो? सुझाव देने वाला चुप था, इसलिए ये आइडिया ऑटो-रिजेक्ट हो गया.
मोदी मास्क - एक आइडिया ये भी उछला कि क्यों न कुछ लोग मोदी का मास्क लगा लें और कन्हैया को भी वैसा ही मास्क पहना दिया जाए. मास्क लगाने के साथ ही लोग मोदी-मोदी नारे लगाते रहेंगे - और कन्हैया को सुरक्षित बाहर निकाल लाएंगे. जिस छात्र ने ये सुझाव दिया उसे जोर से डांट पड़ी. लाजिमी भी था - जहां विचारधारा की लड़ाई लड़ी जा रही हो वहां ऐसी बातों का क्या मतलब भला. इसी आधार पर 'आप की कैप' पहनाकर निकालने का आइडिया भी रिजेक्ट हो गया.
डुप्लीकेट - कन्हैया के एक सीनियर साथी ने सुझाव दिया कि जैसे अमेरिका और यूरोप में वीआईपी को सेफ पैसेज देने के लिए डुप्लीकेट की सेवाएं ली जाती हैं. या फिर हीरो को सुरक्षित रखने के लिए फिल्मों में स्टंटों की मदद ली जाती है - वैसे ही क्यों न कन्हैया का भी डुप्लीकेट खोजा जाए. ये आइडिया भी कई लोगों को ठीक लगा. डुप्लीकेट या स्टंट दोनों में से कोई भी चलेगा. अब सवाल ये था कि इन तक पहुंचा कैसे जाए. वक्त तो कम था ही पैसा अलग मसला था. यहां तो बात बात पर चंदा जुटाना पड़ता है - डुप्लीकेट हायर करने के लिए तो अच्छी खासी रकम चाहिए. इस आइडिया पर भी बात आगे नहीं बढ़ पाई.
बैठक शुरू तो सुबह ही हुई थी, लेकिन दोपहर भी बीत गई और शाम होने को आई थी. बैठक तब भी चलती रही. एक से बढ़कर एक आइडिया आते और फिर कोई न कोई उस पर आपत्ति जता कर रिजेक्ट करा देता.
चर्चा के बीच ही कन्हैया के घरवालों को भी बुला लिया गया था. सोचा गया कि कन्हैया के परिवार वालों को जो आइडिया सबसे सही लगेगा उसी पर अमल होगा.
अगर कोई आइडिया पसंद भी आता तो ये होता कि कुछ और भी देख लिया जाए - शायद और बेहतर आइडिया मिले. बुद्धिजीवियों की बैठक का आलम तो यही होता है बाल की खाल निकलती रहती है - बस नतीजा नहीं निकलता. इसी बीच एक ऑटो उसी तरफ आते दिखा.
ऑटो सीधे ढाबे पर ही आकर रुका. देखकर सब लोग चौंक पड़े - कन्हैया कुमार ही थे.
असल में मीटिंग के चक्कर में कन्हैया को लेने कोई पहुंचा ही नहीं. जेल में सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी थीं. जेल वाले भी कन्हैया को जल्द से जल्द बाहर करने पर आमादा थे. बंदा फिर क्या करता - ऑटो किया और चला आया.
[फोटो साभार : हिंदुस्तान टाइम्स]
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