व्यंग्य: जब बेंगलुरु से लौटे केजरीवाल
दस दिन की मेडिकल लीव से लौटने के बाद अरविंद केजरीवाल पाते हैं कि घर में चारों तरफ अफरातफरी मची हुई है. हॉल का आधा हिस्सा डिब्बों से भरा हुआ है. भीतर के कमरों में जगह नहीं है इसलिए बाहर रखने पड़े हैं. जब पता चलता है कि सभी डिब्बों में स्टिंग ऑपरेशन के टेप हैं तो मुस्कराते हैं और आगे बढ़ जाते हैं.
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दस दिन की मेडिकल लीव से लौटने के बाद अरविंद केजरीवाल पाते हैं कि घर में चारों तरफ अफरातफरी मची हुई है. हॉल का आधा हिस्सा डिब्बों से भरा हुआ है. भीतर के कमरों में जगह नहीं है इसलिए बाहर रखने पड़े हैं. जब पता चलता है कि सभी डिब्बों में स्टिंग ऑपरेशन के टेप हैं तो मुस्कराते हैं और आगे बढ़ जाते हैं. लेकिन असली मुसीबत तो आगे इंतजार कर रही है.
ये बात तो जगजाहिर है कि केजरीवाल की ईश्वर में गहरी आस्था है. इसी के बूते उन्होंने इंसानी सुरक्षा व्यवस्था को ठुकरा दिया था. जाने से पहले भी उन्होंने सत्ता की चाबी अपने भरत समान भाई मनीष सिसोदिया को सौंप दी थी. लौटकर केजरीवाल पाते हैं कि सब कुछ उल्टा हो रहा है. रामायण काल में राम के वन जाने से पहले कैकेयी कोप भवन में चली गई थीं. यहां पता चलता है कि उनके लौट के आने पर उनकी पत्नी सुनीता कोप भवन में चली गई हैं. खैर, जिनकी बदौलत वो यहां तक पहुंचे हैं, तो उन्हें मनाने कोप भवन भी जाते हैं. लेकिन पत्नी की शर्त सुनकर उनका माथा घूम जाता है.
दरअसल, सुनीता ने भी राजनीति में आने की जिद पकड़ ली हैं. उन्हें लगता है कि अगर ऐसा नहीं किया तो केजरीवाल की अब तक की खून पसीने की सारी कमाई बर्बाद हो जाएगी. सारा किया धरा मिट्टी में मिल जाएगा. असल में, केजरीवाल की छुट्टी के दौरान किसी ने सुनीता को समझा दिया है कि अगर वो राजनीति में होतीं तो सत्ता की चाबी तो उन्हीं के हाथ में होती न कि मनीष सिसोदिया के. समझाने वाले ने राबड़ी देवी का उदाहरण भी दे दिया है. इतना ही नहीं संभावित खतरों से आगाह करने के लिए उसने बिहार में नीतीश कुमार के 'मांझी एक्सपेरिमेंट' का हवाला दे डाला. लाख कोशिशों के बावजूद सुनीता पति केजरीवाल की कोई बात सुनने को तैयार नहीं हैं. खैर, फिर से बातचीत करने की बात कह कर वो बाहर निकलते हैं.
केजरीवाल को योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण वाली घटना का पता चलता है तो उन्हें मना कर वापस लाने का फैसला करते हैं. केजरीवाल फोन कर बात करते हैं लेकिन बात नहीं बनती. दोनों की एक ही शर्त हैं - पहले तीनों को निकालो. "कौन तीनों भई?" योगेंद्र यादव अपनी स्टाइल में समझाने की कोशिश करते हैं, "अरे भई, वे ही तीनों - ब्रह्मा, विष्णु और महेश." फिर भी केजरीवाल को समझ में नहीं आता. "अरे वे ही आपके आशुतोष, आशीष और संजय," प्रशांत भूषण तस्वीर से पर्दा हटाते हैं, फिर फुसफुसाते हैं, "संजय ने तो आपको इसी उम्र में धृतराष्ट्र बना दिया है." केजरीवाल सुन तो लेते हैं, लेकिन चुप रहते हैं.
दिमाग काफी उलझ जाता है इसलिए बाथरुम की ओर बढ़ जाते हैं. बाहर आते हैं तो तीनों ड्राइंग रुम में डटे हुए हैं.
संजय सिंह, "सर, एक धांसू आइडिया है. पिछले 10 दिन से हम लोग उसी पर दिन रात काम भी कर रहे थे."
केजरीवाल बारी बारी सबकी ओर देखते हैं फिर संजय से बोलते हैं, "बोलो."
"आशीष ने एक प्रजेंटेशन तैयार किया है," कहते हुए संजय सिंह आशीष खेतान को इशारा करते हैं. आशीष अपना आईपैड झटके से बैग से निकालते हैं.
प्रजेंटेशन में समझाया गया है कि अगर लग कर मेहनत की जाए तो केजरीवाल जल्द ही देश के प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव का उदाहरण पेश किया गया है कि किस तरह उन्होंने अपनी अल्पमत की सरकार को बहुमत में बदल दिया था. आशीष कहते हैं, "हमने राव साहब का बस उदाहरण दिया है. उन्होंने कौन सा जादू चलाया हमें उसमें नहीं पड़ना. हम तो बस ये कहेंगे कि मछलियां छटपटा रही हैं. बस चारा फेंकने की देर है."
फिर आशीष बताते हैं कि कई सांसदों से तो संजय सिंह की बात भी हो चुकी है. संजय सिंह सिर हिलाकर हामी भरते हैं. केजरीवाल एक बार आशुतोष की ओर देखते हैं. आशुतोष को कुछ बोलने की जरूरत नहीं पड़ती. आखिर रणनीतिकार तो वही हैं. केजरीवाल भी इस बात को समझ रहे हैं. वो फिर से कोप भवन का रुख कर लेते हैं. "मनीष, जरा जल्दी आओ यार. यहां तो सबने रायता फैला रखा है. यान सुनीता भी," फोन पर बात करते सुनाई देता है.
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