व्यंग्य: आप स्वतंत्र तो हैं, लेकिन नियम और शर्तें लागू...
जी हां, आप स्वतंत्र हैं. स्वतंत्रता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है और आप इसे ले चुके हैं. अपनी इस आजादी को महसूस करने का हक भी आपको देश का संविधान देता है.
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जी हां, आप स्वतंत्र हैं. स्वतंत्रता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है और आप इसे ले चुके हैं. अपनी इस आजादी को महसूस करने का हक भी आपको देश का संविधान देता है - और उसमें भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तो आपके मौलिक अधिकारों का सबसे अहम हिस्सा माना गया है. आपको तो ये भी मालूम ही होगा कि अभिव्यक्ति की आजादी इंसान का एक सार्वभौमिक और कुदरती हक है. मान के चलिए कि इसे कोई भी आपसे छीन तो नहीं सकता. बस. ध्यान रहे - कुछ शर्तें लागू हैं.
आप किसी टॉपिक पर डॉक्युमेंट्री बनाना चाहते हैं तो बेशक बना डालिए. शूटिंग के लिए होम मिनिस्ट्री से बाकायदा परमिशन भी मिल जाएगी. डॉक्युमेंट्री बना लेने के बाद आप उसे खुद तो देखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन दूसरों को दिखाना संभवत: संभव न हो. ध्यान रहे, शर्तें लागू हैं.
अगर आप फिल्म लाइन में जाना चाहते हैं या पहले से ही हैं तो सीन या स्टोरी की मांग के हिसाब से आप को तमाम सिक्वेंस फिल्माने की छूट है. लेकिन अगर 36 शब्दों में से कोई एक भी बोले दिए तो बाबूजी गये काम से. सेंसर बोर्ड ने इन्हें गाली की संज्ञा दी है. ध्यान रहे, शर्तें लागू हैं.
आपको कार्टून बनाने का शौक है तो बिलकुल भी फिक्र नहीं करने का. अब आपको पुलिस फौरन तो नहीं गिरफ्तार कर पाएगी. लेकिन अगर आप पश्चिम बंगाल में हैं तो जरा संभल के. वहां तो किसी और का बनाया कार्टून भी शेयर करने से पहले दो बार जरूर सोचें. पुलिस आपको कभी भी, कहीं से भी, उठा सकती है. ध्यान रहे वहां अलग शर्तें लागू हैं. अगर आपको पेंटिंग का शौक है तो खूब बनाइए. चेहरे बनाइए, लैंडस्केप बनाइए, मॉडर्न आर्ट में एक्सपेरिमेंट भी खूब कीजिए. अगर आप ऐब्स्ट्रैक्ट में कुछ देखते हैं और कैनवास पर उतार लेते हैं तो इससे खूबसूरत बात आखिर हो भी क्या सकती है? पर कुछ नया करके दिखाने से पहले जरूर सोचिए. ये जरूरी नहीं कि आपकी कूची ने किसी को टारगेट किया है या नहीं, अगर आप किसी के निशाने पर आ गए - फिर तो मुल्क में रहने का ख्याल भी भूल जाइए जनाब. माइंड योर ब्रश प्लीज, शर्तें लागू हैं.
आपको देश में कहीं भी घूमने फिरने, कुछ भी पढ़ने लिखने की आजादी है. मगर ध्यान रहे, आप कभी भी लाल बत्ती जंप करने की गुस्ताखी न करें. कॉमरेड अगर आपके झोले में कुछ ऐसी किताबें हैं जिन्हें, उन्हें पढ़ने का शौक नहीं जिनके हाथों में आपके अभिव्यक्ति की आजादी तय करने की चाबुक है. आपका चालान कभी भी कट सकता है. मुमकिन है बरसों आपको जमानत भी न मिले. पता है क्यों? शर्तें लागू हैं.
आप जो चाहें लिख सकते हैं. लिख भी डालिए. अगर आप उन चीजों के बारे में लिखते हैं जिन्हें लोग नहीं जानते तो कोई बात नहीं, खूब लिखें. पर आप उस बात के बारे में लिखते वक्त सतर्क रहें - जिसे सब लोग जानते हैं, उत्सव मनाते हैं. बेहतर होगा ऐसी बातों पर तो भूल कर भी कलम मत चलाइए. नहीं तो आपको भी किसी दिन फेसबुक पर 'मुरुगन मर गया' जैसा स्टेटस अपडेट पोस्ट करना पड़ सकता है. माइंड योर पेन, प्लीज - शर्तें लागू हैं.
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