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Updated: 01 नवम्बर, 2022 12:18 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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काश, टीम इंडिया में भी आरक्षण लागू होता! अगर ऐसा होता, तो क्या और कैसे होता? इस पर बात करने से पहले ये जानना जरूरी है कि मुझे ये ख्याल क्यों आया? दरअसल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर दिलीप मंडल नाम का एक यूजर है. दिलीप मंडल के एक ट्वीट से पता चला कि दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट बोर्ड ने अपने यहां पर टीम सेलेक्शन में डायवर्सिटी पॉलिसी के तहत आरक्षण लागू कर रखा है. इस डायवर्सिटी पॉलिसी के अनुसार दक्षिण अफ्रीकी टीम में कम से कम 5 खिलाड़ी नॉन व्हाइट होने ही चाहिए. वैसे, दिलीप मंडल ने अपने ट्वीट में टीम इंडिया में डायवर्सिटी पॉलिसी या आरक्षण लागू करने की मांग नहीं की है. लेकिन, मुझे इस बात को कहने भी बिल्कुल भी गुरेज नहीं है कि 'काश, टीम इंडिया में भी आरक्षण लागू होता' का आईडिया वहीं से आया है. 

...तो, कैसी होती टीम इंडिया?

अभी तक वैसे तो खेलों में आरक्षण नहीं आया है. लेकिन, दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम के टीम इंडिया के खिलाफ शानदार प्रदर्शन के बाद से ऐसा लग रहा है कि आरक्षण लागू कर ही देना चाहिए. वैसे, दिलीप मंडल निश्चित रूप से क्रिकेट का बड़ा प्रशंसक नजर आता है. उसकी ट्विटर वॉल पर सूर्यकुमार यादव के क्रिकेट करियर को लेकर चिंता भरे ट्वीट इसका मुजाहिरा करने के लिए काफी हैं. खैर, वापस टीम इंडिया और उसमें आरक्षण लागू किए जाने पर आते हैं. अगर टीम इंडिया में आरक्षण लागू होता है, तो वो कैसी नजर आएगी? संविधान के अनुसार, अनुसूचित जाति (SC) को 15, अनुसूचित जनजाति को 7.5 और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 फीसदी आरक्षण दिया गया है. बाकी का 50.5 फीसदी जनरल कैटेगरी के लिए रखा गया है. जो SC/ST/OBC के लिए भी खुला है.

South Africa Cricket Team has Quota for Non White Players I wish reservation would be applicable in Team India tooभारत में फिलहाल खेलों में आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं हुई है.

इस हिसाब से देखा जाए, तो टीम इंडिया में ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के 3 खिलाड़ियों की जगह बनती है. अनुसूचित जाति के 2 और अनुसूचित जनजाति के 1 खिलाड़ी को स्थान तय किया जा सकता है. तो, टीम इंडिया में सूर्यकुमार यादव, उमेश यादव और कुलदीप यादव की जगह पक्की मानी जा सकती है. सूर्यकुमार यादव जहां बेहतरीन बैंटिग करते हैं. वहीं, चाइनामैन कुलदीप यादव अपनी स्पिन गेंदबाजी और उमेश यादव अपनी तेज गेंदबाजी से टीम इंडिया की तीनों अहम जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. हालांकि, ये जगहें ओबीसी में आने वाली अन्य जातियों के खिलाड़ियों से भी भरी जा सकती हैं.

वैसे, भारत जैसे देश में आरक्षण वगैरह से बड़ी चीज उसका धर्मनिरपेक्ष यानी सेकुलर होना है. तो, इस हिसाब से टीम इंडिया के पेस अटैक में दो मुस्लिम खिलाड़ियों को रखना जरूरी माना जा सकता है. मेरे हिसाब से मोहम्मद शमी और मोहम्मद सिराज इस जगह के लिए फिलवक्त सर्वश्रेष्ठ रहेंगे. विकेटकीपर और कप्तान के लिए अनुसूचित जनजाति के खिलाड़ी को वरीयता दी जानी चाहिए. वहीं, अनुसूचित जाति के दो खिलाड़ियों में से एक को उपकप्तान और दूसरे को ओपनिंग बल्लेबाज के तौर पर वरीयता मिलनी चाहिए.

रही बात जनरल कैटेगरी के बाकी के 3 खिलाड़ियों की. तो, उन्हें जरूरत पड़ने पर ही बैटिंग और बॉलिंग दी जानी चाहिए. और, ज्यादा से ज्यादा मौके आरक्षित वर्ग के खिलाड़ियों को ही मिलने चाहिए. वैसे, भारत में क्रिकेट के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण की भावना को मजबूत करने के लिए इतना तो किया ही जा सकता है. खैर, वो अलग बात है कि दक्षिण अफ्रीका में खेलों में आरक्षण को लागू करने से पहले बाकायदा जमीनी स्तर से खिलाड़ियों को खोजने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. लेकिन, भारत में यह तुरंत ही होना चाहिए. क्योंकि, अन्य जगहों पर आरक्षण पहले से ही लागू है.

हालांकि, इसमें कुछ दिक्कतें भी आ सकती है. क्योंकि, महिलाओं के 33 फीसदी आरक्षण के साथ ही जेंडर इक्वैलिटी पर भी जोर दिया जाना जरूरी है. खैर, आरक्षण पर मेरे लिखी बातों से दिक्कत हो, तो दिलीप मंडल से संपर्क कर लें. वो शानदार और प्रतिभावान ऑफ द ग्राउंड 'खिलाड़ी' हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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