हंगामा है क्यों बरपा? पेट्रोल की थोड़ी सी कीमत ही तो बढ़ी है...
पहले राजस्थान का श्रीगंगानगर फिर एमपी का भोपाल पेट्रोल ने कीमत के मामले में शतक जड़ दिया है. हो हल्ला शुरू हो गया है और बढ़ी हुई कीमतों के मद्देनजर केंद्र सरकार-पीएम मोदी की आलोचना हो रही है. आलोचक जो कहें लेकिन सच्चाई बस यही है कि देश का विकास यूं ही होगा. बाकी पूर्व की सरकारों ने पेट्रोल का खूब शोषण किया है. अब और नहीं.
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श्रीगंगानगर के बाद कल भोपाल में भी पेट्रोल ने कीमत के मामले में शतक लगा ही दिया. अतुल्य भारत की बानगी है. कीमतों का बढ़ना आदि कुछ ऐसे मसले जहां क्रिकेट के मैच के अलावा पूरा भारत एक होता है. यानी सब के लिए एक समान. कुछ नाशपीटे महंगाई कहकर इस पर भी मीम बना रहे हैं, मोदी सरकार को घेरने में इसका सहारा ले रहे. बताइए जिस देश में गो मूत्र का अर्क 100 रुपए लीटर से ज्यादा दाम पर लोग हंसी खुशी खरीद लेते है वहां 100 रुपए का पेट्रोल बिकने पर इतनी हाय तौबा क्यों. डर्टी पीपल! जो तेल देश की अर्थव्यवस्था से लेकर गृहस्थी की गाड़ी तक खींचता हो उसकी कीमत तो अनमोल होनी चाहिए. यहां तो तेल कंपनियों ने महज 100 रुपए लीटर ही इसका दाम किया है और लोगों को इसमें भी दिक्कत है. मैं तो पेट्रोल के बारे में सोच रहा कि कितना गौरवान्वित महसूस कर रहा होगा कि कम से कम अब गोमूत्र के आगे उस शर्म तो नहीं आएगी. करोड़ों साल में बनकर तैयार होने की कीमत क्या यही है. अरे भाड़ में गई महंगाई. एक अकेला पेट्रोल पूरे देश की कितनी जिम्मेदारी उठाकर चल रहा है भाई लोगों को इसका अंदाजा नहीं है.केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल में टैक्स मिलाकर कितनी समाज सेवा कर रही आप सुनेंगे तो आंखों से आंसू न निकल आए तो पेट्रोल का नाम बदलकर मिट्टी का तेल रख दीजियेगा.
पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों ने आम आदमी का जीना मुहाल कर दिया है
आप तो जानते नहीं होंगे कि लगभग 32 रुपए की कीमत पर रिफायनरी से निकलने वाले पेट्रोल पर सेंट्रल एक्साइज कर से लेकर तमाम उपकरों और डीलरों के कमीशन के कारण बेचारे पेट्रोल की कीमत 168 % तक बढ़ जाती है. वो पैसा क्या पेट्रोल अपने घर ले जाता है . बहुत दानवीर है अपना पेट्रोल भाई साहब! दारू से कम कमाकर सरकार को नहीं देता है. ये जो चकाचक सड़के और तमाम सरकारी योजनाएं आपको दिखती है वह सब इसी पेट्रोल ने खुद को जलाकर कमाई है. आज के युग का दधीचि है दधीचि. आप लोग भी ग़ज़ब करते है साहब. बिना जाने सुने बस गरियाना है तो गरियाना है.
क्या बीतती होगी बेचारे पेट्रोल के दिल पर कभी सोचा है. उसका क्या उसकी तो नियति है बिकना और फिर किसी इंजन को अपनी जान देकर हंसते हंसते जल जाना. जलते जलते बेचारा देश को आगे बढ़ाता है आपको आगे बढ़ाता है कितनों को अपनी मंजिल तक पहुंचाता है आप क्या समझोगे मुकेश बाबू. सोचकर देखो खुद को धुआं करके कितनों को सुबह स्कूल, ऑफिस, अस्पताल और न जाने कहां कहां पहुचानें वाले पेट्रोल ने अपनी कीमत थोड़ी बढ़ा ली तो लगे आप सब उसे कोसने.
पूछिए उन नई उमर के लड़कों से जिन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड को बाइक पर बिठाकर कभी 100 या 200 का पेट्रोल भरवाकर अपने प्रेम को परवान चढ़ाया होगा. जनाब आप पेट्रोल के बड़प्पन को देखिए क्या पुरानी क्या नई. क्या स्कूटर क्या हार्ले डेविडसन, क्या खटारा कार क्या ऑडी सब के इंजन में घुसकर बिना किसी भेदभाव के खुद को जलाया. उस समय भी उसी भाव से जलता था जब उसकी कीमत जमीन पर थी और आज भी उसी ईमानदारी से बिना भेदभाव के जल रहा है जब उसकी कीमत को लोग कह रहे कि आसमान पर है. देखिए कतई घमंड नहीं है.
आदर्श है भाई आदर्श. तो भइया पेट्रोल की अंतर्कथा और राष्ट्र के प्रगति में उसकी इस भूमिका को देखते हुए मैं तो चाहता हूं कि उसकी कीमत पर कोई अंकुश ही न हो. किसी ने कहा है कि ये तो उन जिलों का सौभाग्य है कि उन्हें पेट्रोल ने देश सेवा का यह अनूठा अवसर दिया है. अरे आपको तो अपनी जेब से कुछ पैसे ही देने है लेकिन जलना तो पेट्रोल को ही है. सोचिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उस सपने को जो अन्तिम व्यक्ति के आंसू को पोछने के लिए देखा गया था आप सब उस सपने को पूरा करने में कितना योगदान दे रहे.
अरे कहने दीजिए लोगो को कि सरकार तेल के दाम पर अंकुश नहीं लगा पा रही है. लगाकर करेगी भी क्या ? महंगाई तो अब हम भारतीय लोगों के लिए आदत सी हो गई है. अरे एकाध समय पिज्जा बर्गर न सही. गरीब की थाली से एकाध रोटी या सब्जी थोड़ी कम हो जाएगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा. आखिर इन्हीं पैसों से तो सरकार दूसरी ओर 2 रुपए किलो चावल और गेंहू भी बांट रही. रही बात मध्यवर्ग की तो थोड़ा है थोड़े की जरूरत है के बीच झूलना उसकी नियति है.
क्या श्रीगंगानगर क्या भोपाल मैं तो कहता हूं कि इस महायज्ञ में कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से मिजोरम तक देश के सभी जिलों को हंसी खुशी भाग लेना चाहिए. आइए हम सब प्रण ले कि पेट्रोल के इस जिम्मेदारी और अप्रतिम त्याग को उसका वाज़िब हक़ दिलवा के रहेंगे.
हम कोशिश करेंगे और सरकार बहादुर से गुज़ारिश भी कि दाम इस शतक को रोकना नहीं है. दोहरे तिहरे शतक में इसे बदलने का प्रयास करना होगा. राज्य सरकारें भी इस काम में आपका भरपूर सहयोग करेगी. आम आदमी तो वैसे ही मुर्दा हो चुका है उसके ऊपर दो मन माटी पड़े या चार मन क्या फ़र्क है जी. आप देशहित राष्ट्रहित को आगे बढ़ाए. जय हिन्द जय भारत.
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