राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से देश नहीं जुड़ा, पूर्वोत्तर तो बिल्कुल भी नहीं!
नागालैंड में 1, मेघालय और त्रिपुरा में 60-60 सीटों में से कांग्रेस पार्टी ने 4 सीटों पर लीड दर्ज की है. तीनों ही राज्यों में जैसी परफॉरमेंस कांग्रेस की रही, साफ़ हो गया कि भले ही राहुल गांधी की इमेज बिल्डिंग हो गयी हो लेकिन भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ. यात्रा अपने से देश को नहीं जोड़ पाई. पूर्वोत्तर को तो बिल्कुल भी नहीं.
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बकौल दास कबीर 'निरंतर अभ्यास करने से मूर्ख आदमी भी बुद्धिमान बन सकता है. लेकिन राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा देश की सबसे पुरानी पाल्टी कांग्रेस पार्टी को फायदा पहुंचाएगी, कांग्रेस के बुद्धिजीवियों की ये बात खोखली निकली. 3 राज्यों यानी त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड के चुनाव परिणामों ने न केवल कांग्रेस को बल्कि बाल दाढ़ी काटकर लेक्चर देने विदेश गए राहुल गांधी को आईना दिखा दिया है. बतौर जनता समझ में आ गया है कि जिस तरह हर पीली चीज सोना नहीं होती उसी तरह देश जोड़ने के नाम पर घूमने निकलने को भारत जोड़ो यात्रा नहीं कह सकते.
नागालैंड में सिर्फ 1 मेघालय और त्रिपुरा में 60 में से 4 सीटों पर कांग्रेस की लीड हमें कई सन्देश देती है. अधर में फंसी कांग्रेस पार्टी की तीनों ही राज्यों में ये परफॉरमेंस हमें ये बताती है कि भले ही घूमने टहलने और लोगों से मिलने जुलने से राहुल गांधी की इमेज बिल्डिंग हुई हो. लेकिन भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को वही फायदा हुआ, जो उस पनीर को होता है. जिसे छत्तीस आइटम लगाकर घंटों मेरिनेट किया जाता है और जब डिश बनकर तैयार होती है तो पनीर पूर्व की तरह फीकी ही रहती है.
राहुल गांधी पनीर हैं, मेरिनेशन हैं, या फिर मसाले हैं इसका फैसला हर बार की तरह इस बार फिर जनता की कोर्ट ने कर दिया. मतलब वाक़ई हैरत होती है ये देखकर कि आखिर राहुल गांधी के केस में जनता कैसे इतनी निष्ठुर, इतनी निर्मोही हो सकती है?
त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड ने भारत जोड़ो यात्रा करने वाले राहुल गांधी को आईना दिखा दिया है
मतलब नागालैंड में 1, मेघालय में 4, और त्रिपुरा में 4 सीटों पर कांग्रेस को मिली लीड ने ये साफ़ कर दिया है कि राहुल गांधी बाल दाढ़ी के अलावा जो बढ़ाना चाहें बढ़ा लें, जितना घूमना फिरना हो घूम फिर लें, लेकिन कांग्रेस को लेकर जो छवि देश की जनता के सामने 2014 के बाद बन गयी है वो शायद ही बदले. कह सकते हैं कि लोग मान चुके हैं कि मौजूदा राजनितिक परिदृश्य में कांग्रेस पार्टी को वोट करना और कुछ नहीं बस अपने बेशकीमती वोट को ख़राब करना है.
जिक्र राहुल गांधी और उनकी भारत जोड़ो यात्रा का हुआ है, साथ ही बात चुनावों पर भी चली है. तो बता दें कि बात सिर्फ इस चुनाव की नहीं है. पूर्व में भी जो चुनाव हुए हैं वहां भी जनता ने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी. तब भी जनता ने बताया था कि वो किसी भी तरह के झांसे में नहीं आने वाली. और सबसे बड़ी बात जनता ने कांग्रेस को ये स्पष्ट सन्देश दिया था कि वो बेवक़ूफ़ नहीं है जैसा कि उसे कांग्रेस और उसके हुक्मरानों ने समझ लिया था.
तो भइया कोई कुछ कह ले कितनी भी बड़ी बड़ी बातें क्यों न हो जाएं. लेकिन 180 सीटों पर अगर देश की सबसे पुरानी पार्टी जीत तो छोड़ ही दीजिये अगर लीड में भी अगर दहाई का आंकड़ा न पार कर पाए तो सवाल तो उठेंगे ही. हमारा सवाल तो उन लोगों से भी है जिन्होंने चुनावों में कांग्रेस पार्टी का टिकट लिया था. इससे अच्छा तो ये होता कि ये लोग निर्दलीय चुनाव लड़ते कम से कम ईमानदारी से शीशे में अपना मुंह तो ये लोग देख ही सकते थे.
कोई कुछ कह ले लेकिन बुरा लगता है, दिल से बुरा लगता है ये देखकर कि खुद कांग्रेस के लोगों ने कांग्रेस की हालत धोबी के कुत्ते वाली की है. विचलित करता है कांग्रेस से जुड़े लोगों का अड़ियल रवैया. राहुल गांधी ने जब पार्टी को जोड़ने के बाम पर जब अपनी यात्रा की शुरुआत की तो लगा स्थिति कुछ अलग रहेगी मगर जब हम राहुल गांधी की यात्रा का अवलोकन करते हैं तो मिलता है कि इसमें ऐसा कुछ नहीं था जिससे देश का आम आदमी अपने को जोड़ सके और रिलेट कर सके.
कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की समझना सिंपल है. इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं है. चाहे पार्टी हो या फिर पार्टी के शहजादे दोनों को ही इस बात को समझना होगा कि यूं दौड़ने भागने और बोल बच्चन से काम नहीं चलने वाला. लाभ लेना है तो जनता के बीच आना होगा. पूर्वोत्तर में कमल इसलिए खिला कि पीएम मोदी और भाजपा ने लगातार मेहनत की. माना होगा कांग्रेस पार्टी ने पूर्वोत्तर को देश का अलग हिस्सा. पीएम मोदी ने अपने शुरूआती दिन से लेकर आज तक न केवल अपना माना बल्कि एक के बाद एक यहां कई यात्राएं की. राहुल को समझना होगा कि संवाद कभी एक तरफ़ा नहीं होता,
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