धनिया मिर्च और खत्म होते आटे की चिंता करूं या फिर बिग बॉस देखूं ??
बिग बॉस सीजन 12 को लेकर हर जगह बात हो रही है. ऐसे में तब क्या होता है जब कोई पहली बार इस शो को देखता है? क्या वो इसे भी औरों की तरह एन्जॉय कर पाता होगा ?
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जहां देखो वही अनूप जलोटा और जसलीन. जिधर नजर डालो वहीं सलमान और बिग बाॉस की बातें. बिग बॉस का सीजन 12 शुरू हो गया है. महफ़िल से लेकर मेले तक, छोटे मोटे गेट टूगेदर से लेकर बड़ी बड़ी पार्टियों तक, कोई न कोई ऐसा जरूर होगा जो अवश्य ही बिग बॉस को लेकर अपना ज्ञान बांट रहा होगा. ये बात आपको जितना विचलित करेगी उससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण मेरे लिए है कि, अब तक मैंने बिग बॉस का सीजन तो छोड़िये...एक भी एपिसोड नहीं देखा.
आजकल जहां देखो वही बिग बॉस से जुड़ी बातें हो रही हैं
चूंकि मैं बिग बॉस नहीं देखता हूं अतः मेरे जानने वालों ने मुझे अपने से जुदा कर दिया है. वो मुझे अति पिछड़ा कहते हैं. बिना पल गंवाए मेरी बातों को खारिज कर देते हैं. मेरी बिग बॉस से कोई दुश्मनी नहीं है. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि मैं बिग बॉस नहीं देखना चाहता. या मुझे उसमें कोई रूचि नहीं है. बात बस इतनी है कि मुझे समय नहीं मिल पाता.
घर से ऑफिस. ऑफिस से घर. इन दोनों के बीच में बाजार और उस बाजार में घर के जरूरी सामानों की खरीदारी. बस यही मेरी ज़िन्दगी है. मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि बिग बॉस के इस सीजन में करणवीर को जेल की हवा क्यों खानी पड़ी. या फिर ऐसा क्या हुआ जिसके चलते श्रीसंत को अपना मुंह काला करवाना पड़ा. मेरी चिंता इस बात की है कि मेरे घर में पहले खत्म क्या हो रहा है? आलू या आटा. मैं शक्कर के दानों में नमी देखकर या फिर फ्रिज में पड़ी सूखी हुई धनिया या मिर्चों को देखकर परेशान होने वाला आदमी हूं. अब आप ही बताइए ऐसा आदमी सदी का महानतम शो बिग बॉस देखे भी तो कैसे देखे ?
आज आदमी को इससे मतलब नहीं है उसके घर में क्या चल रहा है मगर उसे बिग बॉस के घर की बातें जाननी हैं
खैर, मैंने अब तक बिग बॉस नहीं देखा और इस कारण मेरे दोस्तों ने अपने बीच से मेरा हुक्का पानी बंद कर दिया था तो मैंने भी उन्हें सबक सिखाने की सोची. बहुत सोच विचार के बाद मैंने बिग बॉस देखने का सोचा. शायद वीकेंड था. बाजार से सौदा लाने के बाद कपड़े बदल कर हाथ में टीवी का रिमोट पकड़े मैं अपने टीवी की स्क्रीन के सामने था. शो शुरू हुआ. एक आध गाने बजे फिर सलमान आए और शायरी जैसा कुछ सुनाया फिर इधर उधर की बातें की और कुछ देर के बाद घर के अन्दर का रुख किया.
मैं पहली बार बिग बॉस का घर देख रहा था. अजीब सा घर था. नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि मुझे घर पसंद नहीं आया. बात बस इतनी थी कि एक निम्न मध्यम वर्गीय होने के कारण मैं अपने आपको बिग बॉस के उस घर से जोड़ नहीं पाया. असल में हम जिन घरों में रहते हैं या जिन घरों को देखते हैं वहां पेंट उखड़ी दीवारें होती हैं. अलमारी जर्जर होती है. दरवाजों पर कपड़े इस बेतरतीबी से पड़े होते हैं कि क्या कहा जाए. रही गयी कसर बच्चों द्वारा दीवार में की गयी पेंटिंग पूरी कर देती हैं जिसमें बच्चे हाथ में पेंसिल लेकर दीवार पर कुत्ता या चिड़िया बनाते हैं.
शो देखकर महसूस हुआ कि बिग बॉस का घर आम आदमी से बिल्कुल अलग है
शो का घर और उस घर में रहने वाले लोग शो जैसे थे एकदम सॉफिस्टिकेटेड. हम घर में लोअर टीशर्ट या फिर बनियान लुंगी पहन कर रहने वाले लोग हैं. यहां रहने वाले लोगों के महंगे महंगे कपड़े. स्टाइलिश लुक, जैल लगे बाल, उम्दा क्वालिटी का मेकअप. मैंने ऐसा घर और घर में रहने वाले ऐसे लोग बिल्कुल नहीं देखे थे. मैं इन्हें देख रहा था और असहज हो रहा था.
शो शुरू हुए पंद्रह मिनट हो चुके थे. 15 मिनट में लड़ाई से लेकर प्यार तक सब आ गया. इस बीच दो बार ऐड भी आ चुका था मगर मैं ये समझ नहीं पाया कि कवि की कल्पना क्या है? आखिर निर्देशक महोदय दिखाना क्या चाह रहे हैं ? उस समय तक मैं शो देखकर पूरी तरह उकता गया था और रिमोट उठाकर चैनल चेंज कर दिया.
अगला चैनल सेट मैक्स था. उसपर हमेशा कि तरह सूर्यवंशम आ रही थी. हीरा ठाकुर खेती किसानी कर रहे थे. उनकी बीवी कलेक्टर बनने के लिए पढ़ाई कर रही थी. मुझे पता था कुछ देर में बाबू जी जहर पड़ी खीर खाने वाले हैं मगर तब भी मैं फिल्म एन्जॉय कर रहा था और ये सोच रहा था कि भले ही मेरे दोस्त मुझे अति पिछड़ा कहें मगर हम जैसों के लिए इस टाइप का मनोरंजन ही अच्छा है. कम से कम इसे हम अपने से रिलेट तो कर ही लेते हैं.
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