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Updated: 30 मई, 2015 06:01 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सब कुछ वैसा था. रास्ते. गेट. फूल. बस कुछ गार्ड बदल गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बुलावे पर जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 7, रेस कोर्स रोड पहुंचे तो यादों में खोते चले गए. "सर! गुड मॉर्निंग," रघुराम राजन सामने से चले आ रहे थे, "सर, आपका वेट कर रहे हैं."

जब मनमोहन सिंह कमरे में दाखिल हुए तो कुर्सी खाली थी. कुर्सी ही क्या पूरा कमरा खाली था. मोदी जी कहीं नजर नहीं आ रहे थे. एक बार तो उन्हें लगा गलत कमरे में घुस गए. तभी आवाज आई, "आइए, आइए मनमोहन जी. मैं आप ही की प्रतीक्षा कर रहा था." तब जाकर उन्हें समझ में आया कि मोदी जी खिड़की के पास खड़े होकर सेल्फी ले रहे थे.

"और बताइए. कैसा लग रहा है?"

मनमोहन सिंह को फिर हैरानी हुई. मोदी जी आखिर कहना क्या चाहते हैं? क्या इसी सबके लिए बुलाया है. पता होता तो टाल देता. लेकिन अब क्या करें? चलो जो भी होगा देखी जाएगी. 'ऐसे तो बहुत लम्हे आए और गए जिंदगी में.' ऐसी कई बातें दिमाग में एक साथ चल रही थीं.

"जी?"

"मेरा मतलब है. ये आप ही वाला कमरा है. आप तो यहां 10 साल रहे हैं. मैंने यहां कुछ भी नहीं बदला. सब वैसे का वैसे ही है. पर्दे तक देख लीजिए. सब वही हैं. मुझे रहना ही कितनी देर होता है. बस सोने के लिए दो-तीन घंटे चाहिए होते हैं. वो भी तब जब दिल्ली में रहना हो."

"जी!"

आप तो जानते ही हैं. मैं कभी छुट्टी नहीं लेता. कई बार बाहर कुछ ज्यादा बोल दिया तो उसे भी देखना होता है. अब बोल दिया तो अमल तो करना ही पड़ेगा ना. पड़ेगा कि नहीं?

"जी."

"अब मथुरा में मैंने बोल दिया कि हमारी सरकार हर पल काम करती रही. हर घंटे हमने फैसले लिए. अब बोल दिया तो वैसा करना भी तो पड़ेगा ना. क्यों, पड़ेगा कि नहीं?"

"जी. हूं."

"और बताइए, कैसे हैं आप? भाभीजी ठीक हैं? देखा नहीं बहुत दिन से टीवी पर. बस उसी दिन देखा था जब सोनिया जी पैदल आपके घर पहुंची थीं. अच्छा ये अचानक पैदल क्यों चलने लगी हैं? कोई खास वजह? आप भी कुछ बोलिए, आप तो बोलते ही नहीं. अरे अब भी? खैर."

"नहीं, वो... "

"अच्छा छोड़िए वो सब. मुद्दे पर आते हैं. असल में अर्थव्यवस्था को लेकर मेरे पास कुछ आइडिया हैं. बाकी चीजों में तो मैं अप्लाई कर लेता हूं. लेकिन इस मामले में आप पुराने आदमी हैं. इसलिए सोचा डिस्कस कर लेते हैं. आपके पास भी कोई नया आइडिया है क्या? होगा ही दस साल तक तो वो काम आए नहीं होंगे. बताइए कुछ देश के लिए अच्छा आइडिया हो तो. बताइए क्या किया जा सकता है?"

"एक आइडिया है. अगर... "

"मै सोच रहा हूं नोट, सिक्के, चेक, ड्राफ्ट सब बंद करा दें. इसमें जो मैन-पॉवर है उसका कहीं और इस्तेमाल करते हैं. खर्च भी बचेगा. वैसे भी हमें तो डिजिटल इंडिया ही ठीक से लागू करना है. आज नहीं तो कल. क्यों, है कि नहीं?"

"देखिए नोट खत्म करना... मेरे हिसाब से... "

"मित्रवर, मैंने चुनावों में डिजिटल इंडिया बात की थी. वादा किया था कि सरकार बनी तो हर हाथ में मोबाइल होगा. इसीलिए सबसे पहले मैंने जन धन योजना शुरू की और जैसे ही खाते में पैसा पहुंचा लोगों ने मोबाइल खरीद लिया. आज सबके हाथ में मोबाइल है. इसी से तो डिजिटल इंडिया को दुनिया भर में पहचान मिली है. अब लैंडलाइन का जमाना गया. ये मेरी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है. मानते हैं कि नहीं? अच्छा, आप मोबाइल नहीं रखते?"

"नहीं."

"कोई बात नहीं मैं आपको मोबाइल गिफ्ट करता हूं. मैं आपको सेल्फी लेना भी सिखा दूंगा. मैंने बहुतों के सिखाया है. अखबार में पढ़े होंगे अभी मैंने उसको... क्या नाम है... ली... ली को अभी अभी सिखाया था. वायरल हुआ था वो सेल्फी."

"जी. वो जी नोट..."

"हां, वो सब फिक्र मत कीजिए. चाहे वो 2जी के नोट हों या फिर कोल ब्लॉक के. मैं जानता हूं. आपको कहने की जरूरत नहीं. आपने अपने परिवार के लिए कुछ नहीं किया. उस पर आपको सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है. हां, कुछ आइडिया हो तो बताइए."

"मुझे लगता है. आप चाहें तो..."

"बिलकुल. आप बस बताइए. वो रघुराम है ना. सब लागू कर देगा. अरे वो तो आप का ही चेला है. मैं जानता था उसे आपने ट्रेन किया है. जेटली को नहीं पसंद है, मैं जानता हूं. लेकिन..."

"मेरी राय में... "

"देखिए आपकी राय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. आप पार्टी लाइन के बारे में मत परेशान होइए. अब रिमोट की बैटरी डिस्चार्ज हो गई है. आप अपनी राय दीजिए, हम उसे लागू करेंगे. बोलिए."

"मैं वही तो..."

"देखिए अब खामोशी नहीं चलेगी. भूल जाइए उस दौर को. वैसे ये हुनर आप में पहले से था या यहां आकर इसकी तालीम ली. यहां से मेरा मतलब इसी 7, आरसीआर से ही है."

"हा-हा-हा."

"चलिए. आपका बहुत बहुत धन्यवाद. प्लीज डू कम. प्लीज."

"सर!"

मोदी से मिलकर कर मनमोहन सिंह को पहली बार लगा कि प्रधानमंत्री का पद कितना बड़ा होता है. अब ये व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो इसे नौकरशाह की तरह लेता है या तानाशाह की तरह. ये सारी बातें पूर्व प्रधानमंत्री की आने वाली किताब 'दोज साइलेंट डेज' में विस्तार से पढ़ने को मिलेंगी. ये किताब जून के पहले हफ्ते में आने वाली है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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